शुरु हो गयी जंग

अरे नही, ये कोई अमरीका-उत्तर कोरिया या अमरीका-ईरान की जंग नही है। ये जंग तो भारत के खुदरा उद्योग मे एक नयी जंग है। आज यानि ३ नवम्बर से मुकेश अंबानी की रिलायंस रिटेल ने काम करना शुरु कर दिया है। हैदराबाद मे अपने पहले स्टोर के साथ रिलायंस ने तमाम उन अटकलों को विराम लगा दिया है, जिनमे कहा जा रहा था, कि रिलायंस इस साल काम नही शुरु करेगा। इस जंग मे लड़े कोई भी फायदा तो उपभोक्ता का ही होना है। निश्चय ही इसे उपभोक्ता क्रांति के रुप मे देखा जाना चाहिए।

reliancefreshरिलायंस रिटेल के जरिए उपभोक्ताताओं को रोजमर्रा की जरुरी चीजे, जैसे सब्जी, फल दाले और इत्यादि रिलायंस फ्रेश मे मिलना शुरु हो जाएंगी। रिलायंस २५ हजार करोड़ की पूँजी के साथ भारत के ७८४ शहरों मे ६००० से ज्यादा स्टोर्स की स्थापना करेगा। ऐसा नही है कि रिलायंस इस क्षेत्र मे उतरने वाली अकेली कम्पनी है, अभी तक पैंटलून इन्डिया अपने बिग बाजार और शापर्स स्टॉप के साथ और विशाल मेगा मार्ट इस क्षेत्र मे काम कर रहे है। लेकिन इसके साथ साथ एयरटेल वाले भारती मित्तल ब्रिटेन की फ्रेस्को के साथ और अमरीकी वालमार्ट और ब्रिटिश जे सैंसबरी भी अपने अपने भारतीय पार्टनर के साथ बाजार मे उतरने के लिए लगभग तैयार खड़े है।

सभी भारत मे उपभोक्ता खर्चे मे हुई बढोत्तरी को भुनाना चाहते है, लेकिन क्या इतना बड़ा बाजार है भारत में? इस बारे मे रिलायंस रिटेल के मुख्य कार्यकारी और अध्यक्ष कहते है:

किराने का सामान बेचने वाले और छोटे विक्रेताओं को हमारी पहल से फ़ायदा होगा. हम उन्हें नुकसान नहीं पहुँचा रहे क्योंकि बाज़ार आठ प्रतिशत की दर यानि लगभग 1200 अरब रुपए की दर से बढ़ रहा है।

खुदरा बाजार के स्थापित खिलाड़ी

BigBazaar

vishalmegamart

अब भविष्य ही बताएगा कि इन सभी को बाजार का कितना हिस्सा मिलता है, हम तो बस इतना ही कहेंगे कि उपभोक्ता को ही ज्यादा से ज्यादा फायदा पहुँचे।

2 responses to “शुरु हो गयी जंग”

  1. समीर लाल Avatar

    वैसे जिस हिसाब से खरीदी क्षमता बढ़ रही है, लगता तो नहीं कि छोटे व्यापारियों को इससे बहुत विशेष प्रभाव पडेगा, मगर पडेगा तो जरुर.

  2. नीरज दीवान Avatar

    पूंजी का सघन केंद्रीयकरण जहां हो, वहां परिणाम घातक होते हैं. हमारा आर्थिक ढांचा पाश्चात्य सरीखा नहीं है. जो थोक-चिल्हर विक्रेता हैं और किसानों से माल ख़रीदकर अंतिम उपभोक्ता तक पहुंचाते हैं, ऐसे में इन लाखों दुकानदारों का क्या होगा? पटरियों पर सब्ज़ी बेचने वाले विक्रेताओं का क्या होगा? जब कम क़ीमत पर सब्ज़ी मिलेगी तो क्या छोटे-मोटे दुकानदार घाटे में धंधा करेंगे? यह ठीक है कि किसानों को अपनी फसल का उचित मूल्य मिलेगा किंतु रिलायंस और ऐसे ही अन्य रिटेलर्स उचित मूल्य देते रहेंगे यह कैसे तय होगा? इन्हीं ख़बरो में यह भी जुड़ा है कि कारपोरेट जगत की ताक़तें उपभोक्ता को फ़ायदा दिलाने के नाम पर अनुपात से अधिक करोड़ों का मुनाफ़ा कमा रही हैं. व्यवसाय के अंतिम सिरे के दो बिंदुओं के बीच सीधा सौदा लाभकारी तो होगा किंतु बीच की कड़ियों जिसे हम बिचौलिया, अढ़ातिया या थोक व्यापारी कहते हैं- के लिए जीवन-मरण का सवाल बन जाएगा. ये पिरामिड तोड़कर तो कारपोरेट जगत की हस्तियां लाखों लोगों के के गल्ले में डाका डालेंगी.
    मेरा तो यह मानना है कि सीधे अंतिम उपभोक्ता तक पहुंचने की बजाय थोक व्यापारी की भूमिका निभानी चाहिए जिससे किसानों को भी अच्छी क़ीमत भी मिलेगी और छोटे-मोटे दुकानदारों के सामने रोज़ी रोटी का संकट नहीं खड़ा होगा. साथ ही बेहतर अधोसंरचना विकसित कर रिलायंस किसानों की फसलों को सुरक्षित रख सकता है. जिसे उत्पादन में बढ़ोतरी के तौर पर ही देखा जाएगा

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