क्या आपको पता है, दीपावली की पूर्व संध्या पर हजारो उल्लू बलि चढाए जाते है। लक्ष्मी देवी के वाहन उल्लू की बलि लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिये दी जाती है। ये कैसी देवी है जो अपने वाहन की बलि पर प्रसन्न होती है। हर साल हजारो उल्लू जिन्हे हिमालय की तराई, मध्य प्रदेश, बिहार और पूर्वांचल के जंगलों से पकड़कर लाया जाता है। उल्लुओं की बलि देने के पीछे तर्क यह दिया जाता है कि लक्ष्मी जी ऐसी बलि से प्रसन्न होकर धनवान बनने का वरदान देती है।
वैसे भी उल्लू तांत्रिको का मनपसन्द बलि जीव है। इसके लिए जीतोड़ मेहनत करके उल्लू को ढूंढा जाता है और उसे दीवाली के एक दिन पूर्व बलि चढा दी जाती है। आज के वैज्ञानिक युग मे भी ऐसे अंधविश्वासी लोगो की कमी नही जो इस घृणित कार्य मे लिप्त है। दिल्ली मे उल्लू की मन्डी लाल किले के सामने, जामा मस्जिद के पीछे , मूलचन्द फ़्लाई ओवर, मिन्टो ब्रिज, महरौली गुड़गांवा रोड और आई एन ए मार्केट मे लगती है। इस सीजन मे उल्लू की कीमतें १५ हजार से लेकर ८० हजार तक पहुँच जाती है।
आखिर हम कब सुधरेंगे? कब बन्द करेंगे बेजुबान जानवरों पर जुल्म ढाना? अव्वल तो मै नही मानता कि इससे लक्ष्मी जी प्रसन्न होंगी, ये सब तांत्रिको, पंडितो का किया धरा है। एक परसेन्ट भी यदि इस बात मे सच्चाई है तो लानत है ऐसे इन्सान पर जो अपने स्वार्थ के लिए बेजुबान जानवरों का खून बहाता है। हम अंधविश्वासी लोग कब जागेंगे? कब फैलेगा ज्ञान का उजाला? जिस दिन हम ढोंगी तांत्रिको और पंडितो के जाल से निकलेंगे वही दिन हमारे लिए असली दीपावली होगी।
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