परमाणु नीति पर वामपंथियों ने बेचारे मनमोहन सिंह की नींद हराम कर दी थी, ऊपर से सोनिया गांधी की ओर से भी संकेत पाजिटिव नही दिख रहे थे। अंकल सैम का जब जब फोन आता तो सरदारजी को जवाब देते नही बन रहा था। उनकी ये बेबसी कई जगहों पर जगजाहिर भी हुई। लेकिन अब मनमोहन सिंह मे ’सिंह’ वाली दहाड़ वापस आ जानी चाहिए, क्योंकि बीजेपी ने परमाणु करार पर सरकार का साथ देने का मन बना लिया है, उनका तो यहाँ तक कहना है कि अगर लेफ़्ट समर्थन वापस लेता है तो बीजेपी सरकार को गिरने नही देगी। इसी बारे मे वो लोग आज पीएम से मिलने भी वाले है।
जाहिर है इस समर्थन के बूते, कांग्रेस, लेफ़्ट की धमकी को दरकिनार करके, परमाणु करार पर आगे बढ सकती है और लेफ़्ट वाले, अब नींद हराम होने की बारी उनकी है। बीजेपी को इससे क्या फायदा होगा? अरे वाह! भूल गए, इस परमाणु करार की शुरुवात तो अटल बिहारी बाजपेयी के जमाने से ही हुई थी, नींव उन्होने रखी थी, बाद मे कांग्रेस ने इसे आगे बढाया। अब कांग्रेस किसी को क्रेडिट देना ही नही चाहती थी, इसलिए मुश्किल मे फंसी। अब बीजेपी वाले भी मौके का फायदा उठाने से नही चूकेंगे, पहले तो करार पर समर्थन देने का चारा देंगे, फिर सौदेबाजी होगी। अलबत्ता ये सब बन्द कमरे मे होगा, बाहर तो हम सबको खिले खिले चेहरे ही दिखेंगे। बीजेपी को दूसरा फायदा ये होगा कि वो अमरीका विरोधी नही दिखेगी, जो उसके हित मे ही होगा, परिपक्वता का परिचय देते हुए, खुले विचारों वाली पार्टी का नारा देगी।
लेकिन इस रातो रात ह्र्दय परिवर्तन की लहर कैसे दौड़ी, सुना है बीजेपी ने कोई सर्वे करवाया है, जिसमे बीजेपी के अधिकतर वोटरों ने करार के पक्ष मे मत दिया, अब ये पोल कहाँ और कब कैसे हुआ, हमसे ना पूछो, जाकर बीजेपी वालों से पूछो। वैसे मै तो अब भी मानता हूँ, करार होने की दशा मे भारत मे विदेशी निवेश बढेगा, निवेश बढेगा तो कारोबार बढेगा, कारोबार बढेगा तो रोजगार बढेगा, साथ ही दुनिया मे भारत की साख भी बढेगी। अब बॉल कांग्रेस के कोर्ट मे है, देखते है ऊंट किस करवट बैठता है। बेचारे लेफ़्ट वाले……..माया मिली ना राम।
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