हाय! हाय! जे कैसा कलजुग! भरी दोपहरिया, बीच बजरिया, लुट गयी गगरिया। दिन दहाड़े डकैती। वो भी हिन्दी चिट्ठाकारों पर।
आजकल बहुत लूटपाट होने लगी है, लोग दूसरे के लेख उठा उठा कर चैंप देते है, पत्रिका के रुप मे छाप देते है। अब इन हिन्दी कैफ़े वाले साहबान को ही लें, सारे हिन्दी चिट्ठाकारों के लेख, बिना पूर्वानुमति के चैंप दिए है। हाँ ईमानदारी तो इतनी दिखायी है कि लेखकों के नाम वही रखे है, अब बदलने का समय नही था, ये इनको ईमानदारी चोरी ही पसन्द है, ये तो हमे नही मालूम। लेकिन हम इत्ता जरुर कहेंगे कि इनको सम्बंधित लेखकों से पूर्वानुमति जरुर लेनी चाहिए थी, भले ही मौखिक रुप से ही। अभी तो ये सीधा सीधा चोरी चपाटी का मामला बनता है।
हमने दरोगा जी से पूछा कि क्या किया जा सकता है, तो वो बोले कि सबसे पहले तो पता लगाओ कि ये श्रीमान कौन है, हमने पता लगाया कि कोई मैथली गुप्ता ( अरे वो महान कवि मैथिली शरण गुप्त नही, वो तो अब नही रहे) दिल्ली मे ईस्ट आफ कैलाश मे पाए जाते है। अब चिट्ठाकारों को इस पर क्या एक्शन लेना है वे सम्बंधित चिट्ठाकार डिसाइड करें, हमारी रचनाएं तो इन्होने छापने लायक समझी नही। खैर! अपनी अपनी लूट की रिपोर्ट यहाँ टिप्पणी मे दर्ज कराएं।
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