बचपन मे हम क्रिकेट खेलते तो येन केन प्रकारेण पहले बैटिंग करने की कोशिश करते थे, कि क्या पता बाद मे बैटिंग मिले ना मिले। अब बचपन की यादों को हमने फिर से ताजा किया कर्नाटक राज्य मे बीजेपी और जेडीयू की बीच की उठापटक, ये एकदम बचपन की बैटिंग/फील्डिंग वाली कहानी है। अच्छा ये जेडीयू कौन? अरे वही अपने पूर्व प्रधानमंत्री देवीगौड़ा, जो ऐसा (धीरे और अबूझ) बोलते है कि बगल मे बैठा भी समझ ना पाए। ऐसा नही कि ऐसी भाषा बोलने वाले हमारे देश मे ये अकेले है, राजनीति मे इनके भी पिताजी बैठे है मूपनार तो टहल लिए, लेकिन बचे हैं डीएमके के करुणानिधि, वो बोलते है तो खुद ही नही समझ पाते है, बगल मे बैठा बन्दा क्या खाक समझेगा? खैर हमे क्या, इनकी पार्टी के कार्यकर्ता समझ जाए ये ही बड़ी बात है। अभी ऐसा ही हुआ था, करुणानिधि बेचारे बोले कि भूख हड़ताल करेंगे, पार्टी के कार्यकर्ताओं ने समझ लिया हड़ताल सो तमिलनाडू बन्द। अब इसमे बेचारे करुणानिधि की क्या मिस्टेक है?
खैर बात जेडीयू की हो रही थी, इनके नेता कुमारस्वामी (जो देवगोड़ा के पुत्र है) ने कुछ साल पहले बीजेपी से डील की, पहले हम लूटेंगे सॉरी बैटिंग करेंगे तुम पवेलियन मे बैठो, बाद मे तुम बैटिंग करना और हम पवेलियन मे बैठेंगे। बीजेपी वाले मान गए, मानते नही तो जाते कहाँ, बड़ी मुश्किल से दक्षिण मे झंडा लहराया था, ऐसा मौका हाथ से जाने देते क्या। लेकिन देवीगौड़ा ( जो बीजेपी के इस डील के समय बहुत नाटक और नौटंकी किए थे, बाद मे एस यूजुवल, मान गए थे।) अब सत्ता हस्तानान्तरण करना ही नही चाहते, बोलते है रिनिगोशिएट करो। हमको इन राजनीतिज्ञों की बात आजतक समझ में नही आयी कि रिनिगोशिएट का क्या मतलब होता है। कुछ मिलाकर वही हाल है जो बचपन मे हम धीरू के साथ करते थे, सात ओवर की बैटिंग के बाद हम बोलिंग के रन-अप पर जाते जाते, ऐसे गायब हो जाते कि बेचारा धीरु ढूढता ही रह जाता। अब बॉल हमारे पास थी तो बैटिंग वो क्या खाक करता, ऊपर से हम उसकी मम्मी को शिकायत लगा आते थे कि धीरु क्रिकेट खेलते वक्त सबसे लड़ता है, इसलिए हम लोग उसको अकेला छोड़ आए है, आप उसको बुलवा लो, कंही झगड़ा ना हो जाए। कुछ यही कर्नाटक मे भी हो रहा है। जब तक आप यह पोस्ट पढ रहे होगें या तो कोई रिनिगोशिएशन हो चुका होगा या फिर बीजेपी, भन्नाए हुए मूड से, जेडीयू की लानत-मलामत करते हुए, लूट के इस खेल से बाहर हो चुकी होगी।
अब ये लूट का खेल केवल भारत मे हो रहा हो, ऐसा नही है। पड़ोसी देश पाकिस्तान मे भी परवेज मुशर्रफ़ ने बेनज़ीर को बुलावा भेजा था कि आओ मिलकर देश को लूटे सॉरी चलाएं। अब बेनज़ीर ठहरी पुरानी खिलाड़ी, बोली पहले पिछली पारी के रनो का हिसाब किताब चुकता करो, तब आगे बात करेंगे। मुशर्रफ़ भी बेचारा क्या करता, आलू यानि इन्ज़्मामुल हक की तरह भी उसके पास आप्शन बहुत कम बचे थे, ऊपर से अंकल सैम का भी रोज रोज फोन आ रहा था कि मांडवली करो। मियां नवाज शरीफ़ से बेनज़ीर भली, कम से कम (पाकिस्तानी)पंजाब मे तो मुशर्रफ़ भी धाक बनी रहेगी, सिंध मे बेनजीर की पार्टी जीत लेगी, कराची वाले क्षेत्र मे एमक्यूएम वाले साथ है ही, बलूचिस्तान और बाकी के सीमावर्ती क्षेत्र तो कभी भी किसी के कंट्रोल मे नही रहे, तो अब कौन तीर मार लेगा। वहाँ तो जिरगा ही फैसला करती है इस बार किसके पाले मे जाना है।खैर अब बेनज़ीर से डील हो गयी है मसौदा बन गया है, वो जल्द ही मुल्क मे तशरीफ़ आएंगी, मियां साहब भी सुना है अपनी शेरवानी धुलवाने को दिए है, मतलब है कि वो भी दम ठोकने आ रहे है, पिछली बार तो बारस्ता सऊदी, वापस लदवा दिए गए थे।
इधर नेपाल मे भी सुना है…. क्या यार! एक ही पोस्ट मे पूरे साउथ एशिया का हाल ले लोगे? दूसरी पोस्ट भी लिखने दोगे कि नही। इसलिए अब इसको यही पर समाप्त करते है, बाकी बतिया अगली पोस्ट मे करेंगे, ठीक है ना? अरे बोलो ना? ह्म्म।
अच्छा भाई पढते रहिए आप सभी का पन्ना।
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