जुलाई 2012 में परिवार को लुधियाना में एक समारोह में जाना था, और मैं कुवैत में था। तभी अचानक प्रोग्राम बना कि क्यों न सभी लोग लेह में मिलें और लद्दाख की खूबसूरत वादियों में 10 दिन की छुट्टियों का आनंद लें। फैमिली वाले जम्मू से लेह आने वाले थे और मैंने कुवैत-दिल्ली-लेह का रूट तय किया। मैं, आपका हमसफ़र, जितेंद्र चौधरी, लेकर चल रहा हूँ आपको 2012 की लेह-लद्दाख यात्रा की यादों में।
यात्रा की शुरुआत:
कुवैत से रात की फ्लाइट पकड़कर सुबह-सवेरे दिल्ली पहुँचा। दिल्ली में लद्दाख की फ्लाइट के लिए थोड़ा समय था, इसलिए पहले अपनी बड़ी अटैची और अन्य सामान को ड्राइवर द्वारा घर भेजा और एक छोटे बैग में जरूरी सामान लेकर तैयार हो गया। दिल्ली की गर्मी को छोड़कर अब लद्दाख की ठंडी और सुकून भरी हवा का इंतजार था। जब हमारी फ्लाइट दिल्ली से लेह के कुशोक बकुला रिम्पोछे हवाई अड्डे के लिए उड़ान भर रही थी, तो दिल में एक अलग ही रोमांच था।
हवाई सफर और लद्दाख का हवाई अड्डा:
खिड़की वाली सीट मिलना एक अलग ही अनुभव था। जैसे-जैसे फ्लाइट ऊँचाई पकड़ती गई, हिमालय की बर्फीली चोटियाँ बादलों को चीरते हुए दिखने लगीं। नीचे फैले हरे-भरे मैदान और बर्फ से ढके पहाड़ जैसे किसी चित्रकार की कूची से बने नज़ारे लग रहे थे। लेह का कुशोक बकुला रिम्पोछे हवाई अड्डा, समुद्र तल से लगभग 3,256 मीटर की ऊँचाई पर स्थित, दुनिया के सबसे ऊँचे वाणिज्यिक हवाई अड्डों में से एक है। प्लेन घाटियों के बीच से गुजरता हुआ जब उतरने के लिए नीचे आ रहा था, तो वो आखिरी मोड़ दिल थाम लेने वाला था।
हवाई अड्डे पर उतरते ही ठंडी और ताज़ी हवा ने जैसे मन को शांत कर दिया। चारों ओर ऊँचे-ऊँचे पहाड़ और उनका आकर्षक सौंदर्य। एयरपोर्ट छोटा था, लेकिन साफ-सुथरा और बहुत सुव्यवस्थित। सुरक्षा कड़ी थी, और यात्रियों को ज्यादा समय वहाँ रुकने की अनुमति नहीं थी। मैंने बताया कि जम्मू से परिवार आ रहा है, तो उन्होंने रुकने की इजाजत दी। इस दौरान सुरक्षा कर्मियों और स्टाफ से बातें होती रहीं, और 25 मिनट कैसे बीत गए, पता ही नहीं चला।
लेह एयरपोर्ट के आस-पास का दृश्य:
एयरपोर्ट से बाहर निकलते ही जो दृश्य सामने आया, वो किसी चित्रकला की तरह था। चारों ओर बर्फीली चोटियाँ, तिब्बती प्रार्थना पताकाओं से सजे घर और दूर-दूर तक फैली शांति। पहाड़ों का रंग अद्वितीय था – भूरे, लाल, और हल्के सुनहरे, जो सूरज की किरणों के साथ रंग बदलते हुए दिखते थे। आसमान नीला और लगभग साफ था, कुछ छितरे बादल थे मानो रास्ता भटक कर इधर आ गए हों।
लेह की ठंडी हवा और अनोखा अनुभव:
एयरपोर्ट से बाहर आते ही पहले कदम से ही महसूस होता है कि आप एक अलग ही दुनिया में पहुँच गए हैं। यहाँ की हवा पतली और ठंडी थी, जिससे साँस लेने में शुरू में थोड़ी तकलीफ हुई, लेकिन जल्द ही इसकी आदत हो गई। उस शीतल हवा और शांत वातावरण ने सफर की थकान को मिटा दिया। हमारा ड्राइवर गाइड अपनी मिनी वैन लेकर तैयार था और अगले दस दिनों तक हमारे परिवार का हिस्सा बनने वाला था। अब सीधे होटल की ओर रवाना होने का समय था।
अभी के लिए इतना ही… कल की योजनाएँ सोचने से पहले अब बस आराम का वक्त था। लेह की सड़कों और वादियों में आगे के सफर की कहानियाँ जल्द ही सुनाऊँगा।
Photo :Leh 2012
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