होटल पहुँचने के बाद पूरा दिन आराम करने का इरादा था, इसलिए कमरे में बंद होकर घोड़े बेचकर सो गया। रात की सारी थकान थी जो गहरी नींद में उतर गई। जब उठा तो तरोताजा महसूस हुआ। शाम को थोड़ी देर के लिए लेह की मार्केट में टहलने निकला। अगले दिन का प्लान तैयार किया—अलची मठ और आस-पास के इलाकों को एक्सप्लोर करने का। मैं आपका साथी जितेंद्र चौधरी, आइए लद्दाख के दूसरे दिन का हाल साझा करते हैं।
लेह की सुबह जैसे ही आंख खुली, ठंडी हवा के झोंके और दिल को छू लेने वाली शांति ने मुझे घेर लिया। आज का दिन उस रोमांचक यात्रा का था, जिसका बेसब्री से इंतजार था—लद्दाख की रहस्यमयी घाटियों और पवित्र स्थलों को देखने का पहला मौका।
जैसे ही आप लेह से बाहर निकलते हैं, खाली सड़कों का लंबा सिलसिला आपका स्वागत करता है। मेरा मन किया मोटरसाइकिल उठा कर दूर-दूर तक घूम आऊं, ऐसी सड़कों पर कौन नहीं जाना चाहेगा? फिर सोचा, पहले दिन कोई जोखिम न लिया जाए, और परिवार के साथ सामंजस्य में शांति से घूमा।
आज के प्लान में था—सिंधु-ज़ांस्कर नदी संगम, अलची मठ, गुरुद्वारा पत्थर साहिब, मैग्नेटिक हिल, और जो भी रास्ते में मिले। यानी सफर जहां ले जाए, हम वहीं मुड़ते चले जाएं।
अलची मठ (Alchi Monastery): इस प्राचीन बौद्ध मठ में कदम रखते ही ऐसा लगा जैसे समय थम गया हो। दीवारों पर बने तिब्बती भित्ति चित्र और बुद्ध की प्रतिमाएं मन को अद्भुत शांति का अहसास करा रही थीं। हर चीज़ जैसे ठहर जाने का निमंत्रण दे रही थी। यह मठ तिब्बती संस्कृति और कला का जीवंत प्रमाण है। मन कर रहा था कि बस यहीं रुक जाऊं, लेकिन आगे की यात्रा इंतजार कर रही थी।
गुरुद्वारा पत्थर साहिब (Gurdwara Pathar Sahib): यह वही स्थान है जहां गुरु नानक जी ने एक विशाल पत्थर को अपने शरीर से टकराने से रोका था। लंगर की महक आई तो भूख खुद-ब-खुद जाग गई। यहां का शांत माहौल और सेवाभाव एक अनूठा अनुभव था। सभी धर्मों में मेरी आस्था है, इसलिए निवेदन है कि किसी भी नकारात्मक टिप्पणी से बचें।
इसके बाद हम पहुंचे मैग्नेटिक हिल (Magnetic Hill): यह जगह वाकई अद्भुत है! जब गाड़ी को न्यूट्रल में छोड़ दिया और वह खुद-ब-खुद आगे खिसकने लगी, तो अपनी आंखों पर यकीन करना मुश्किल हो गया। इस जगह की चुंबकीय ताकत ने सबको अचंभे में डाल दिया और यात्रा का रोमांच और बढ़ गया।
थोड़ी ही दूरी पर था लिकिर गोम्पा (Likir Gompa): पहाड़ों की ऊंचाई पर स्थित यह मठ, बादलों को छूता सा महसूस होता है। यहां की शांति और लामा की सरल मुस्कान ने मन को ठहराव दिया। बौद्ध संस्कृति के इस केंद्र में हर कोने से सकारात्मक ऊर्जा का अहसास होता है।
लंच में थुक्पा (नूडल सूप) का स्वाद चखा—यह सच में बेहतरीन था। बाकी लद्दाखी डिशेस को धीरे-धीरे आजमाने का इरादा किया।
आखिर में हम पहुंचे हॉल ऑफ फेम (Hall of Fame): भारतीय सेना के शौर्य और बलिदान को समर्पित यह म्यूजियम एक गर्व का अहसास कराता है। यहां की हर गैलरी, हर चित्र, हर कहानी हमारे सैनिकों की बहादुरी की याद दिलाती है। यहां कदम रखते ही दिल में एक गहरा सम्मान उमड़ा और आंखें नम हो गईं। यह जगह वीर जवानों की अनगिनत कहानियों को जीवंत बनाए रखती है, जिन्होंने देश की सुरक्षा के लिए अपनी जान न्योछावर की।
सिंधु-ज़ांस्कर नदी संगम: लेह से करीब 35 किलोमीटर दूर निम्मू में स्थित, लद्दाख की वादियों में दो नदियों का यह संगम एक अद्वितीय दृश्य है। सिंधु नदी नीले-हरे रंग में बहती है, जबकि ज़ांस्कर नदी हल्की मिट्टी के रंग की होती है। दोनों का मिलन जैसे प्रकृति का अनूठा चमत्कार हो। सर्दियों में ज़ांस्कर नदी जम जाती है, तब यहां चादर ट्रेक होता है, जहां साहसी पर्यटक बर्फ की नदी पर चलने का अनुभव करते हैं। पूरा दिन यहां बिताना पड़े, तो भी कोई शिकायत नहीं होगी।
पहले दिन की यह यात्रा केवल नई जगहों का ही अनुभव नहीं, बल्कि आत्मा को छू लेने वाली थी। अध्यात्म, रोमांच, और गर्व का एक अद्वितीय संगम। अब इंतजार है कल की यात्रा का, जो और भी रोमांचक होगी। जल्द ही मिलते हैं, अगले सफ़र पर। तब तक के लिए अलविदा।
Photo : Ladakh 2012
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