अतीत के झरोखे से – ३

गतांक से आगे…

अफलातून जी ने पूछा है कि चिट्ठाकार मेलिंग लिस्ट और परिचर्चा फोरम आने में वक्त था क्या?

चिट्ठाकार मेलिंग लिस्ट
chithhakar भई चिट्ठाकार मेलिंग लिस्ट तो शुरु से ही मौजूद थी, सबसे पहला संचार माध्यम तो वही था। सारा संवाद तो चिट्ठाकार पर ही हुआ करता था आज भी सबसे ज्यादा संवाद वहीं होता है। बाकी के मंच तो बाद में ही बने। चिट्ठाकार ग्रुप की स्थापना देबू द्वारा जुलाई २००४ में हुई थी (अगर तारीख के बारे में कुछ गलती हो तो देबू दा सही करा दीजिएगा। पहली इमेल कुछ इस प्रकार थी :

हिन्दी चिट्ठों के संसार की अनंतर दास्तां प्रस्तुत करने के प्रयास में कुछ सुधार के बाद, चिट्ठा विश्व (http://www.myjavaserver.com/~hindi/) नए रुप में प्रस्तुत है, जिसमें चिट्ठाकार व चिट्ठा परिचय के स्तंभ जोड़े गए हैं। पद्मजा और नीरव का धन्यवाद करना चाहुँगा जिन्होने इस कार्य में योगदान दिया है। जनभागीदारी की अपेक्षा रखते हुए आपका भी सहयोग चाहता हूँ। अपनी राय से मुझे अवगत करावेंगे तो खुशी होगी। चिट्ठाकारों के परिचय के लिए मैं व्यक्तिगत रूप से चिट्ठाकारों को लिख रहा हूँ, पर कई दफा ईमेंल पता उपलब्ध न होने के कारण हो सकता है सभी को न लिख पाऊं, इस लेख को आमंत्रण मान कर आप मुझे चिट्ठा विश्व पर मौजूद विधि द्वारा संपर्क कर सकते हैं। यदि आप किसी हिन्दी चिट्ठे की समीक्षा करना चाहें तो उत्तम, कुछ और विषय पर सार गर्भित लेख लिखना चाहें तो संकोच न करें। चौपाल में चर्चा करना चाहें तो अक्षरग्राम तो है ही।

इस इमेल का जवाब मिर्ची सेठ और विनय भाई ने दिया था। दोनों बहुत पुराने चिट्ठाकार है और आज तक एक्टिव है।

आइए कुछ बात करते है हिन्दी चिट्ठाकारों के कुछ अनूठे प्रयासों की। शुरु के चिट्ठाकारों ने तकनीकी समस्याओं से जूझते हुए बहुत सारे प्रयोग किए, कुछ प्रयोग सफ़ल हुए, कुछ असफ़ल, लेकिन हम लोगों ने हिम्मत नही हारी। हर असफलता के बाद हम दोगुने उत्साह के साथ अगले प्रोजेक्ट में जुट जाते। कई कई बार तो हमको लगता कि हम ये सब किसके लिए कर रहे है, लेकिन शायद भविष्य को ध्यान में रखते हुए, हमने वो कार्य किया। नए चिट्ठाकारों से भी उम्मीद है कि हमारे पिछले प्रोजेक्टस को देखें और उनमें भाग लें। आप सभी की सहभागिता के बिना वे सभी प्रोजेक्ट्स अधूरे है।

बुनो कहानी
bunokahani बुनो कहानी का आइडिया देबू के दिमाग की देन था। हम लोगों को आइडिया क्लिक किया और आनन फानन में साइट बन गयी। बुनो कहानी अपने आप में एक अनूठा प्रोजेक्ट था। इसमें एक चिट्ठाकार (कहानीकार) कहानी का एक हिस्सा लिखता, दूसरा उसको आगे बढाता, कहानी तीन या चार भाग में समाप्त होती। बुनो कहानी की पहली कहानी बनी मरीचिका जिसका पहला हिस्सा “यादें ३१ दिसम्बर २००४ को मेंरे द्वारा लिखा गया। इस कहानी को अतुल अरोरा और अनूप शुक्ला ने आगे बढाया। देबू ने संपादन और साज सज्जा का काम सम्भाला। इसे करने में सबको मजा आया। सभी ने अपनी कहानीकारी के स्किल का प्रयोग किया। परस्पर सहयोग की भावना को विकसित करने में यह कारगर तरीका था। अब तक बुनो कहानी पर छह कहानियां लिखी गयी है। समयाभाव की वजह से कुछ अधूरी कहानियों को आगे नही बढाया जा सका। हो सकता है आप में से कुछ साथी उन कहानियों को आगे बढा सकें या नयी कहानियां बुन सकें। बुनो कहानी की सदस्यता के लिए देबाशीष अथवा मुझे लिखिएगा।

सर्वज्ञ (विकी)
sarvagya सभी एक दूसरे से अपना ज्ञान बाँट रहे थे, लेकिन कुछ सवाल थे, जो अक्सर नए चिट्ठाकार पूछते थे। यूं तो हम में से सभी लोग इन्टरनेट पर पूछे जाने वाले हर सवाल का जवाब देने की कोशिश करते, लेकिन अक्सर लगता कि क्यों ना कोई एक ज्ञान-कोष बनाया जाए, ताकि सभी नए चिट्ठाकारों को पहले वहाँ पर भेजा जाए। उसके बाद भी यदि कोई प्रश्न अनुत्तरित रहते है तो उनका जवाब दिया जाए, इससे हमारा ज्ञान कोष समृद्द भी होगा और आने वाले समय में हम रहे अथवा ना रहे, लेकिन हमारा ज्ञान भावी चिट्ठाकारों के लिए एक धरोहर की तरह सुरक्षित रहेगा। मिर्ची सेठ ने ज्ञान कोष के स्थापन की जिम्मेंदारी सम्भाली। ज्ञान बाँटने के लिए मिर्ची सेठ ने विकी का साफ़्टवेयर लगा दिया था, जिसका नाम सर्वज्ञ रखा गया। इस ज्ञानकोष में लगभग सभी पुराने चिट्ठाकारों ने सहयोग दिया जिनमें मिर्ची सेठ, रमण कौल, देबाशीष, आलोक भाई, अनूप शुक्ला, अनुनाद भाई, रवि रतलामी, ईस्वामी, और अतुल अरोरा के नाम उल्लेखनीय है। आज भी यदि आप सर्वज्ञ को देखें तो इतना ज्ञान वहाँ पर मौजूद है कि आपके सारे सवालों के जवाब आपको वहीं पर मिल सकते है। आजकल श्रीश भाई इसका कार्य देख रहे है। सर्वज्ञ आपका अपना ज्ञानकोष है आप दिल खोलकर इसमें ज्ञान-दान करिए। ध्यान रखिए, आपके द्वारा किया गया ज्ञान-दान भावी चिट्ठाकारी पीढी के लिए अनमोल धरोहर होगा।

ब्लॉग-नाद
blognaad पुराने चिट्ठाकारों ने ब्लॉगिंग की हर विधा पर काम किया चाहे वो लेखन हो, अथवा श्रवन (Audio), दृश्य (Photo) अथवा वीडियो (Video वगैरह) ब्लॉग-नाद हिन्दी चिट्ठाकारों का आधिकारिक रेडियो हुआ करता था। कई चिट्ठाकारों ने अपने लेख अपनी आवाज में रिकार्ड करके दुनिया को सुनाए। यह एक अनूठा अनुभव था। अक्सर यह उन लोगों के लिए बहुत अच्छा होता जिनको (बॉलीवुड की बदौलत) हिन्दी समझ में तो आती, लेकिन वे ना तो हिन्दी पढना जानते थे और ना ही लिखना। ऐसे लोगों ने ब्लॉग-नाद का भरपूर मजा लिया। आप विश्वास नही करेंगे कई अंग्रेजों/जापानियों ने हमें अपने हिन्दी में आडियो भेजे थे। आप इनको ब्लॉग नाद पर सुन सकते है। इस ब्लॉग रेडियो को बनाने में अतुल अरोरा, ईस्वामी और मेरा महत्वपूर्ण योगदान था। ब्लॉग-नाद की लोकप्रियता का आलम यह था कि अमरीका के कई रेडियो स्टेशनों पर हमारे पॉडकास्ट प्रसारित होते थे। शायद इसकी अति लोकप्रियता ही इसके बन्द होने का कारण भी बनी। इसकी साइट के ओवरलोडिंग होने की वजह से इसको बन्द करने का निर्णय लेना पड़ा, क्योंकि हमारे होस्ट ने लगातार बढते हुए ट्रेफ़िक को देखकर इसके लिए हाथ खड़े कर दिए थे। आज भी पुराने कुछ पॉडकास्ट आप यहाँ पर सुन सकते है। ब्लॉग-नाद के नए संस्करण पर काम लगभग पूरा हो चुका है जल्द ही यह आपके सामने प्रस्तुत होगा। फिर आप अपने पीसी, लैपटाप और आइ-पॉड पर हिन्दी पॉडकास्ट का मजा ले सकेंगे, बस थोड़ा इन्तज़ार करिए।

निरंतर
niratnar २००५ में हिन्दी चिट्ठाकारों ने विश्व की पहली हिन्दी ब्लॉगजीन निरन्तर का प्रकाशन किया। इस प्रोजेक्ट के सूत्रधार थे, देबाशीष भाई। इस पत्रिका में सभी लोगों ने समान रुप से योगदान दिया। निरन्तर के अंकों देखकर आपको कतई नही लेगा कि यह प्रोजेक्ट किन्ही अन-प्रोफ़ेशनल लोगों ने बनाया था। वर्डप्रेस व जल समस्या जैसे विषयों पर हमने कई विशेषांक निकाले, जो काफी सफ़ल भी रहे। इस प्रोजेक्ट में देबाशीष, रमण कौल, अनूप शुक्ला, मिर्ची सेठ, रवि रतलामी का विशेष योगदान था। आज भी यह पत्रिका देबू के जिम्मेदार कन्धों पर टिकी है, इसकी गुणवत्ता में निरंतर सुधार होता जा रहा है। इन्टरनेट पर हिन्दी के लिए यह एक मील का पत्थर है। निरन्तर के बारे में ज्यादा जानकारी यहाँ और यहाँ पर है। निरन्तर की मौजूदा टीम से मिलने के लिये यहाँ पर देखिए।

निपुण
इसके अलावा कुछ हिन्दी चिट्ठाकारों ने कई साफ़्टवेयर के स्थानीयकरण मे सामूहिक रुप से भाग लिया, जिसमे वर्डप्रेस, द्रुपल, गूगल और कई अन्य शामिल है। दूसरे साफ़्टवेयर को हिन्दी में रूपान्तर करने के लिए अक्षरग्राम पर निपुण लगाया गया, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग स्थानीयकरण और अनुवाद के काम में सामूहिक रुप से हाथ बँटा सकें।

अनुगूँज

anugunj अब चिट्ठाकार बढ रहे थे, इसलिए सबको विभिन्न विषयों पर आवाज बुलन्द कराने के लिए अनुगूँज का आयोजन किया गया। २४ अक्टुबर २००४ को अनुगूँज की शुरुवात हुई। इस बारे में ज्यादा जानकारी यहाँ पर देखिए।

अभी भी हमारे पास ग्राफिक्स वाले बन्दों का अकाल सा था, हम लोग ग्राफिक्स में इतने मास्टर नही थे। इसलिए जैसे तैसे इधर उधर से जुगाड़ करके काम चला रहे थे। हमेंशा ग्राफिक्स वाले बन्दे की कमी खलती थी, लेकिन किसे पता भविष्य में क्या होने वाला था। कहते है आप अगर अच्छे काम के लिए आगे बढो, तो ईश्वर भी आपकी मदद करने के लिए आगे आता है। हिम्मते मर्दा, मददे खुदा, वही कुछ हुआ हमारे साथ भी। इस बीच अहमदाबाद से ब्लॉगरों की एक नयी खेप आयी, संजय, पंकज, रवि कामदार और कई अन्य लोग आकर जुड़े। इन लोगों ने तरकश शुरु किया। धीरे धीरे तरकश के सारे तीर हिन्दी चिट्ठाकारी से जुड़ते गए, जुड़ते क्या गए, हम सबमें घुल मिल गए। जिस चीज में इनकी महारत थी (यानि ग्राफिक्स) वो हमारी कमजोरी थी, और जो इनकी कमजोरी (प्रोग्रामिंग, CMS वगैरहा) उसमें हम लोगों की महारत। दोनो ने अपनी अपनी विशेषज्ञता एक दूसरे के साथ बाँटी तो कमजोरिया अपने आप दुम दबाकर भाग खड़ी हुई। तब से लेकर अब तक बैंगानी बन्धु हमारे समूह के स्तम्भ बने हुए है। हर प्रोजेक्ट में बैगानी बन्धु कन्धे से कन्धा मिलाकर साथ खड़े रहते है। हिन्दी चिट्ठाकारी में बैंगानी भाइयों का योगदान सराहनीय है।

अब फिर लेख की साइज देखकर इसको अगले हिस्से में बाँटने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। खैर अगला भाग भी लगभग तैयार है। अगले भाग मे बात करते है परिचर्चा की, नारद के डाउन होने की, चिट्ठाकारों के सामूहिक सहयोग की और नारद को दोबारा खड़ा करने वाली जुझारू टीम नारद की।

अभी जारी है आगे…………………

15 responses to “अतीत के झरोखे से – ३”

  1. अफ़लातून Avatar

    इस इतिहास को ई-पुस्तक के रूप में और विकी पर डालना चाहिए।बधाई ।

  2. pankaj bengani Avatar
    pankaj bengani

    ताऊ को हिन्दी चिट्ठाजगत का महासचिव बना देना चाहिए भाई.. वे इतनी बखूबी से सबको साथ लेकर चलते हैं..

    बहुत सही कार्य कर रहे हो ताऊ, वैसे अफलातुनजी सही कह रहे हैं , इसे दस्तावेज के रूप मे सुरक्षित करना चाहिए..

    वैसे अक्षरग्राम ने जो कार्य किए हैं वे अतुलनीय है. अक्षरग्राम के बिना इंटरनेट पर हिन्दी की कल्पना करना मुश्किल है.

    मिर्ची सेठ, ई स्वामी, फुरसतियाजी और देबुदा, अतुल भाई और लास्ट बट नोट लीस्ट ताऊ आप .. .. इनके बिना इतना कुछ कभी नही होता.

    सलाम.

  3. pankaj bengani Avatar
    pankaj bengani

    राष्ट्रपति पद के लिए देबुदा उपयुक्त है. 😉

    हमको भी कोई राज्य कक्षा का मंत्री संत्री बना देना ताऊ… नही तो चपरासी भी चलेगा. 😉

  4. प्रियंकर Avatar

    सच में इस इतिहास को ई-पुस्तिका के रूप में प्रकाशित करना चाहिए . इसे ‘निरंतर’ में भी धारावाहिक रूप से देना चाहिए कुछ सुंदर ग्राफ़िक्स और तस्वीरों के साथ .

  5. PRAMENDRA PRATAP SINGH Avatar

    मै भी अफलातून जी और प्रियकर जी से सहमत हूँ।

  6. अनूप शुक्ला Avatar

    सही है। पुराने ग्राफिक डालो बच्चा। हम भी कह रहे हैं।

  7. समीर लाल Avatar

    बहुत अच्छा रहा इतिहास को जानना. इसे कहीं सुरक्षित करें.

  8. SHUAIB Avatar

    दुआ है आप एक साएबां की तरह हम सब हिन्दी चि्टठाकारों पर साया बने रहें।

  9. अतुल शर्मा Avatar

    अद्भुत! इतिहास के इस दस्तावेज़ में जिनका उल्लेख है वे संभवत: अपने चिट्ठे शुरु करने के पहले एक दूसरे को न जानते हों, परंतु इन सभी ने एकजुट होकर निस्वार्थ भाव से हिन्दी के लिए जो किया है उसके लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं। इस कार्य के लिए निश्चित रूप से उन्होंने वह समय खर्च किया होगा जो उनके परिवार के लिए होगा। जीतू भैया यह सब पढ़ कर लगता है कि काश उस दौर में मुझे हिन्दी चिट्ठों के बारे में पता चल जाता तो मैं चिट्ठाजगत के पौधे को प्रत्यक्ष पल्लवित होते देख पाता। फिर भी मुझे खुशी है कि वर्ष 2006 के फरवरी माह में पहली बार हिन्दी चिट्ठों (सबसे पहले अतुलजी अरोरा का लाइफ़ इन ए एचओवी लेन देखा था) को देखा था और बहुत से चिट्ठों को ब्लॉगर से वर्डप्रेस डॉट कॉम पर होते हुए स्वयं के घर में जाते देखा है।
    सभी का सुझाव है कि ये सभी आलेख संकलित करके सजा संवार के कहीं पर रखे जाएँ। मैं इसमें एक बात और जोड़ना चाहता हूँ कि यदि चिट्ठाकार अपने चिट्ठे इस इतिहास (संकलन, संपादन के बाद) का लिंक दें तो बहुत अच्छा होगा, क्योंकि किसी भी चिट्ठे पर आने वाले नए व्यक्ति के लिए यह बहुत लाभदायक होगा और वह इंटरनेट हिन्दी की विकासगाथा को जान सकेगा।

  10. राजीव Avatar
    राजीव

    अच्छा प्रस्तुतीकरण है जीतू भाई, अरे पूरा का पूरा एक ही साथ छाप दो ना, काहे प्रतीक्षा करवाते हो। वो है ना… आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का “हिन्दी साहित्य का इतिहास” हाँ वैसे ही, यह भी… हिन्दी चिट्ठाकरी का…!

    झाड़े रहो कलक्टरगंज!

  11. पाठक Avatar
    पाठक

    विभिन्न प्रोजेक्ट्स की स्टार कास्ट से मिलते चलिये:
    परिक्लपना, निर्देशनः देवाशीष चक्रवर्ती, जीतेंद्र चौधरी
    क्रियान्वयनः जीतेंद्र चौधरी, ईस्वामी , पंकज नरूला,रमण कौल, देवाशीष चक्रवर्ती, रवि रतलामी
    कला निर्देशनः टीम तरकश, रमण कौल
    जनसंपर्क,प्रचार प्रसारः जीतेंद्र चौधरी
    सामग्री सहयोगः अनूप शुक्ला, रवि रतलामी, देवाशीष चक्रवर्ती
    कनफ्यूजन एवं बलवा संयोजकः अतुल अरोरा
    फायर बिग्रेड संयोजकःरमण कौल और अनूप शुक्ला

  12. राजेश कुमार Avatar

    शानदार वर्णन। समीर लाल जी कि बात बिल्कुल पते की है, अब इसका का भी एक आधिकारिक स्थान तय किया जाना चाहिए।
    राजेश कुमार

  13. notepad Avatar
    notepad

    बहुत बढिया काम सर अंजाम दिया है आपने।
    सबसे काम की चीज़ है यह नारद पर।
    इसे नरद के मुख्य पेज पर डालिए।

  14. श्रीश शर्मा 'ई-पंडित' Avatar

    बहुत खूब ताऊ बढ़िया रामायण छेड़ी। इधर से काम का माल चुरा कर सर्वज्ञ पर डालेंगे। 🙂

    अरे पूरा का पूरा एक ही साथ छाप दो ना, काहे प्रतीक्षा करवाते हो।

    नहीं जी धारावाहिक ही चलने दो। इकट्ठे लिखने में बहुत सी बातें छूट जाती हैं। ऐसे ही मजे से लिखते रहिए।

  15. नीरज दीवान Avatar

    भगीरथ प्रयास के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति और संकल्प की आवश्यकता है. इस महायज्ञ में रमे लोगों को दिल से बधाई देता हूं. जीतूभाई ने यह अनमोल वचन कहा कि सचमुच हिन्दी ब्लॉगजगत एक परिवार की भांति हो चुका है. कुछ भाई तो कुछ यार दोस्त बन गए हैं. अभिन्न हिस्सा..

    यह यात्रा चलती रहे. इन तीनों लेखों के पढ़ने के उपरांत जाना कि अथक परिश्रम हुआ और आज जो हम देख रहे हैं वह उसी का प्रतिफल है. किंतु नींव के पत्थर रखने का साहस और बनने का साहस आप लोगों ने ही किया.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *