हरिद्वार का नाम सुनते ही मन में गंगा की कलकल ध्वनि और हर की पौड़ी की दिव्यता उभर आती है। हर की पौड़ी वह स्थान है जहाँ गंगा माँ का आशीर्वाद लेने हज़ारों श्रद्धालु आते हैं, पवित्र जल में डुबकी लगाकर धन्य होते हैं और यहाँ की पावन आरती में खो जाते हैं। गंगा आरती पर पहले भी लिख चुका हूँ, मैं, जितेंद्र चौधरी, आपका हमसफर। आइए, आज बात करते हैं हरिद्वार के पंडा समाज और उनके बहीखातों की।
विदेशों में लोग “Know your family roots” जानने के लिए पैसे खर्च करते हैं, जबकि हमारे देश में यह सेवा निःशुल्क उपलब्ध है। एक जिज्ञासु यायावर की कोशिश होती है ज्यादा से ज्यादा जानने और समझने की। आइए, आज समझते हैं सैकड़ों वर्षों से पंडों-पुरोहितों द्वारा लिखे जा रहे इन बहीखातों के बारे में। पिछली हरिद्वार यात्रा में मुझे कुछ ऐसे पुरोहितों से मिलने का मौका मिला, जिन्होंने मुझे अपने बहीखाते दिखाए, उन्हें पढ़ने का अवसर दिया, पूरा प्रक्रिया समझाई, और मेरे सवालों का तन्मयता से जवाब दिया।
हर की पौड़ी में पंडा समाज की सबसे अनोखी परंपरा उनके द्वारा सदियों से की जा रही वंशावली का संकलन है। ये पंडा पुरोहित देशभर से आने वाले परिवारों का पीढ़ी दर पीढ़ी रिकॉर्ड रखते हैं, जिसे बहीखाते कहा जाता है। ये बहीखाते किसी आधुनिक डेटाबेस से कम नहीं हैं। चाहे आप किसी भी गाँव या शहर से हों, यदि आप हिन्दू समाज से हैं और आपके पूर्वज कभी हरिद्वार आए हैं, तो आपकी पूरी वंशावली यहाँ मिल सकती है। सदियों से पंडा समाज इस जानकारी को बड़ी निष्ठा और आस्था के साथ संभालते आ रहे हैं।
पंडा समाज की यह प्राचीन परंपरा लगभग 500 साल (शायद उससे भी अधिक) पुरानी मानी जाती है। यह एक अद्वितीय प्रणाली है, जिसमें हर परिवार का नाम, गाँव, गोत्र, और वंश के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दर्ज की जाती है। यह सेवा केवल धार्मिक नहीं, बल्कि ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि ये रिकॉर्ड उस समय से संरक्षित हैं जब न कोई आधुनिक दस्तावेज़ प्रणाली थी और न ही डिजिटल टेक्नोलॉजी। पंडा समाज इन बहीखातों को पीढ़ी दर पीढ़ी सँभालते आ रहे हैं, और आज भी यह परंपरा जीवित है। हरिद्वार आने वाले यात्रियों के लिए अपने वंश का इतिहास खोजना न केवल एक धार्मिक अनुभव होता है, बल्कि यह भावनात्मक और सांस्कृतिक रूप से भी गहरे जुड़ाव का प्रतीक है। पंडा पुरोहित आपको आपकी जड़ों से जोड़ने का काम करते हैं।
तो जब भी आप हर की पौड़ी जाएँ, गंगा स्नान और पूजा के साथ अपने पंडा से अपनी वंशावली की जानकारी लेना न भूलें—यह आपकी जड़ों से जुड़ने का एक सुनहरा अवसर हो सकता है।
उम्मीद है कि आपको यह लेख पसंद आया होगा। यादों का कारवाँ यूं ही जारी रहेगा। जल्द मिलते हैं, किसी नए अनजाने सफ़र पर।
Photo : हरिद्वार जून 2023
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