अब रचना ने जब लिखने के लिए फँसा ही दिया है, तो हम भी लिख ही डाले, कंही ऐसा ना हो कि हमे फाँसने के लिए मुर्गे सॉरी ब्लॉगर ही ना मिलें। इसके पहले हम आपको जीतू जी से जीतू भाई बनने की कहानी बता ही दें। थोड़ा अतीत मे चलते है, ब्लॉगिंग जब शुरु हुई तो भाई लोग आपस मे बहुत सोच समझकर और नाप तौल कर आपस मे बात करते थे। बहुत ही शिष्टता से और औपचारिकता के साथ। हमसे पहले आलोक,देबू, पंकज नरुला, अतुल अरोरा, ठलुआ और शुकुल लिखते थे। कुछ और भी थे, लेकिन बहुत कम दिखते थे, एक बहन जी थी, जिनका ब्लॉग देबू ने बनाया था, बहन जी का हिन्दी मे इन्टरेस्ट खत्म हुआ, तो वो ब्लॉग आज भी सूनी मांग की तरह सजा हुआ है। आलोक का तो सभी जानते है ही है, अपना ब्लॉग लिखते है तो टेलीग्रामिया तार की तरह, लगता है लोकल ट्रेन मे बैठकर लिखते है, टेशन आने की जल्दी मे पोस्ट समेटते है। खैर हम जब देखे शुकुल अपना ब्लॉग लिखे, फिर नेट पर अतुल के बाद दूसरा ब्लॉगिया दिखा तो हम भी कमेन्ट डाल दिए। पहली कमेन्ट भी कुछ ऐसी ही थी…बिना लाग लपेट के:
वाह… शुक्ल भाई, तुम्हारा ब्लाग पढकर तो कनपुरिया दिन याद आ गये.
जियो प्यारे लाल जियो.तनिक वक्त मिले तो हमरा ब्लाग भी पढ डाला जाये…. ज्यादा दूर नही है…
http://merapanna.blogspot.comएक कनपुरिया ही दूसरे कनपुरिया को ठीक से समझ सकता है.
उसके बाद जवाबी कमेन्ट, ये पोस्ट, वो पोस्ट, पोस्ट का जवाबी कीर्तन, फिर तो जैसे शुरु ही हो गया।
रचना की बात भी कर लें, वैसे तो लगभग सभी चिट्ठाकारों को हम व्यक्तिगत रुप से जानते है, उनको भी जिनके नाम जगजाहिर है और उनको भी जिन्हे दुनिया छद्म नामों से जानती है। ये सब कुछ ऐसी ही नही हो गया। कई कई ब्लॉगरों को तो हमने अंगुली पकड़कर ब्लॉग बनाना सिखाया है, इसके लिए हम कोई श्रेय नही ले रहे, बल्कि सिर्फ़ इतना बताना चाहते है कि वो ब्लॉगर जो आपके साथ ब्लॉग जगत मे पहला कदम रखता है आपसे जाने अन्जाने रिश्ता बना ही लेता है। आज भी मेरी चैट विन्डो ना जाने कितने भावी चिट्ठाकारों के लिए सूचना स्त्रोत है। समस्या तकनीकी हो या सामाजिक, पारिवरिक हो या व्यक्तिगत, हर ब्लॉगर मेरे से व्यक्तिगत रुप से जुड़ा है। ना जाने कितने ब्लॉगरों की तकनीकी समस्याओं के समाधान के लिए रातें काली की हैं, ना जाने कितने छुट्टी के दिन इन्टरनैट पर हिन्दी के प्रोजेक्ट्स को दिए हैं। रचना ने हमे सम्पर्क तब किया था जब नारद डाउन हुआ था, रचना की बहुत ही मर्मस्पर्शी चिट्ठी मेरे पास आयी थी, जिसमे रचना ने नारद के लिए सहयोग करने के लिए इच्छा जाहिर की थी। रचना की चिट्ठी इतनी भावभीनी और मर्मस्पर्शी थी कि मै भी रचना को जवाबी चिट्ठी लिखने के लिए मजबूर हुआ। इस चिट्ठी के बाद रचना को ब्लॉग जगत मे एक भाई मिला और मुझे एक प्यारी, नटखट और संवेदनशील बहन। वो रिश्ता आज तक कायम है और शायद ताउम्र रहे। कहने का मतलब है कि सम्मान, प्यार और स्नेह कमाया जाता है, मांगा नही जाता। मेरे विचार से उन्मुक्त भाई आपको आपके सवाल का जवाब मिल गया होगा।
कहते है विपत्ति मे ही परिवार के सद्स्यों की असली परख होती है, मुझे यह कहते हुए सचमुच खुशी होती है कि नारद के डाउन होने ने सारे परिवार को एकजुट किया, सभी मे एकजुट होने की भावना को और प्रोत्साहन दिया। परिवार के हर छोटे बड़े सद्स्य ने तकनीकी, आर्थिक और व्यक्तिगत रुप से सहयोग देकर नारद को दोबारा खड़ा किया। हिन्दी चिट्ठाकारों के इस परिवार के सद्स्यों के इस जज्बें को आप और कंही शायद ही देख सकें। बहुत सेन्टी सेन्टी बाते हो गयी…..आइए अब आगे बढते है। आइए बात करते है रचना के सवालों की।
१. आपके लिये चिट्ठाकारी के क्या मायने हैं?
ह्म्म! बहुत अच्छा सवाल है। चिट्ठाकारी मेरे लिए अभिव्यक्ति का माध्यम है। दिल मे और दिमाग मे उमड़ घुमड़ रहे विचारों को गति देने का माध्यम है। ब्लॉगिंग शुरु करने से पहले कभी नही सोचा था कि ब्लॉगिंग करते करते हम विश्वव्यापी चिट्ठाकारों के एक भरे पूरे परिवार के ताऊ बन जाएंगे। इतना सम्मान देखकर कभी कभी आंखे छलछला आती है। चिट्ठों की वजह से आज मेरे विचारों को पहचान मिली, मुझे अपनी लेखन क्षमता का अहसास हुआ। ब्लॉग लेखन सबसे महत्वपूर्ण बात हुई, मुझे
अपनी प्रिय भाषा हिन्दी और अपने देश की सेवा करने का मौका मिला।
२. यदि आप किसी साथी चिट्ठाकार से प्रत्यक्ष में मिलना चाहते हैं तो वो कौन है?
ये पूछो किससे नही मिलना चाहता। सबसे मिलना चाहते है, किसी एक का नाम उगलवाकर जूते खिलवाना चाहती हो? हम सब समझते है तुम्हारी चाल। जब भी मै भारत आता हूँ, तो भारत मे रह रहे सभी चिट्ठाकारों के सम्पर्क मे रहता हूँ, मोबाइल का एक नम्बर, विशेष तौर पर चिट्ठाकारों के लिए अलग से रखा हुआ है। अगले साल अमरीका प्रवास के दौरान मै सभी अमरीका/कनाडा वालों के यहाँ धमकने वाला हूँ। इस बार गर्मियों मे मै भारत आकर कुछ लोगों से जरुर मिलना चाहूंगा, सबसे पहले तो तुम्हारे (रचना) घर पर आने वाला हूँ, इसके देबू, बेंगानी बन्धु, सागर भाई, जगदीश भाटिया, प्रत्यक्षा, और मान्या से अवश्य मिलना चाहूंगा। (कई लोगों के नाम इसलिए नही लिखे कि उनसे मै मिल चुका हूँ)। इसके अतिरिक्त मै चाहूंगा कि हम सभी चिट्ठाकार देश मे किसी भी जगह पर इकट्ठा हों और अनौपचारिक रुप से एक दूसरे से मिलें, ताकि इस परिवार मे और आत्मीयता बढे।
३.क्या आप यह मानते हैं कि चिट्ठाकारी करने से व्यक्तित्व में किसी तरह का कोई बदलाव आता है?
जरुर आता है, निश्चय ही पाजिटिव बदलाव आता है। आपके सोचने के तरीके मे बदलाव आता है। आप जैसे जैसे लिखते है लोगों की टिप्पणियों और दूसरे लेखों से आपके लेखन को एक दिशा मिलती है। नयी नयी विचारधाराएं देखने को मिलती है और नए नए लोगों से सामना होता है।
४.आपकी अपने चिट्ठे की सबसे पसँदीदा पोस्ट और किसी साथी की लिखी हुई पसँदीदा पोस्ट कौन सी है?
ये तो असमंजस मे डाल दिया तुमने। मै तो अपना लिखा आज तक कंही छपने योग्य नही मानता। दिल और दिमाग मे घूम रहे विचारों को सिर्फ़ कीबोर्ड के जरिए, ब्लॉग पर उतारता चला जाता हूँ। लिखने को तो आज तक ६०० से ऊपर लेख लिखे है, लेकिन मुझे मोहल्ल पुराण के लेख लालू यादव पर लिखा लेख, और राष्ट्रीय गान से छेड़छाड़ वाला लेख मुझे पसन्द है।लेकिन आप मेरी मत मानना, मेरे सारे लेख यहाँ है इन्हे पढकर ही अपनी राय कायम करना। बहुत जल्द ही मै इनकी इबुक बनाकर आप सभी को पढाऊंगा, पढोगे नही तो जाओगे कहाँ?
शायद बहुत कम लोग जानते होंगे कि मै सबके लेख पढता हूँ, और जो पसन्द आते है उनपर टिप्पणी भी करता हूँ। सिवाय कविता वाले ब्लॉग को छोड़कर, लेकिन आजकल लोग पकड़ पकड़ कर कविता पढवाते है, साथ मे मतलब भी समझाते है। वो कहते है ना, आसान शिकार, लगभग वही स्थिति है मेरी। मेरे पसन्दीदा ब्लॉग लेखक किसका नाम लूं? शुकुल अच्छा लिखता, बल्कि बहुत अच्छा लिखता है, ठलुआ के लेखन मे जो बेफिक्री, निश्चिंतता लगती थी, वो कंही और नही दिखी। क्लास और विषय की परिपूरणता के के मामले मे हिन्दी ब्लॉगर शानदार लिखते है, काफी शोध करने के बाद लिखते है। अतुल का तो जवाब ही नही, कभी गमगीन बैठे हों तो अतुल के पुराने लेख पढ लीजिए, गम कब भाग जाएगा, पता ही नही चलेगा। किसी भी पसंदीदा चिट्ठाकार के एक लेख का नाम देना तो बहुत नाइन्साफ़ी होगी, इसलिए नाम नही दूंगा। नही तो सभी लोग घर बुला बुला कर पीटेंगे।
५.आपकी पसँद की कोई दो पुस्तकें जो आप बार बार पढते हैं.
अपनी खाली पासबुक और भरी चैकबुक। हीही… । रजनीश की किताबें, उडियो पंख पसार मुझे बहुत पसन्द आयी। शिव खेड़ा की लिविंग विद ऑनर मुझे अच्छी लगी। लेकिन बार बार नही पढता, आजकल समय ही नही मिलता। आफिस, चिट्ठाकारी और घर के बाद समय बचता ही कहाँ है। ऊपर से मिर्जा के यहाँ शाम की हुक्केबाजी, किरकिट स्वामी की घिटपिट समय ही कहाँ है। हाँ सफर करते समय मै काफी पढता हूँ, अक्सर पढता हूँ। कई कई बार मन मे ख्याल आता है कि अपनी मनपसन्द किताबे उठाकर किसी सुनसान द्वीप पर चला जाऊं, जहाँ समुन्दर की लहरें हो और साथ मे मेरी मनपसन्द किताबें (How unromantic?) । लेकिन शायद ये ख्बाव, ख्बाब ही रहेगा, हकीकत नही बन सकता। लेकिन क्या पता….भविष्य किसने देखा है।
अब आते है, इस खेल के अगले हिस्से का, मेरे शिकार है:
- नीरज दीवान (अब ये रोएगा, कि नाम के आगे भाई काहे नही लिखा, अबे ये सारे भाई बुजुर्ग है, तेरे को बुजुर्ग बनना है क्या? )
- भाई जगदीश भाटिया
- भाई संजय बैंगानी
- प्यारी सी मान्या
- भाई समीर लाल
इन सबके लिए सवाल भी बहुत आसान है। इन पाँच सवालों के जवाब दीजिए और फिर पाँच लोगों को पकड़िए और उनको सवाल टिकाइए।
- क्या चिट्ठाकारी ने आपके जीवन/व्यक्तित्व को प्रभावित किया है?
- आपने कितने लोगों को चिट्ठाकारी के लिए प्रेरित किया है।
- आपके मनपसन्द चिट्ठाकार कौन है और क्यों?
- आपको चिट्ठाकारी शुरु करते समय कैसा प्रोत्साहन और सहयोग मिला था?
- आप किन विषयों पर लिखना पसन्द/झिझकते है?
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