अमां यार! आजकल तो हिन्दुस्तान मे जीना मुहाल है, बाल बाँधो तो परेशानी, खोलो तो परेशानी। अपने भज्जी को ही लो, भज्जी कौन? अरे अपना हरभजन सिंह, वही जो चैम्पियन ट्राफी मे श्रीशान्स से पिल गया था, अब ससुरा गुस्से पर काबू नही ना होता। अब उसी गुस्से पर काबू पाने के लिए भज्जी किसी दारू के विज्ञापन मे आ गए, आ गए तो आ गए, कौनो परेशानी नही। अमां नही, यही तो परेशानी थी, शिरोमणी गुरद्वारा प्रबन्धक कमेटी को परेशानी है, किससे दारू से, नही यार! दारु तो सभी पीते है, उनको परेशानी है भज्जी के बाल खुले रखने से। आयं इसे बोलते है हाथी निकल गया, पूँछ अटक गयी।
अब गुरद्वारा कमेटी बोलती है कि इस विज्ञापन से सिखों का अपमान हुआ है, काहे हुआ है भई, अपने बाल खुले रखना अगर अपमान है तो भाई नहाना भी छोड़ो। अमां लोगो को भी बैठे बिठाए पंगे लेने की आदत है, भज्जी ठहरे शरीफ आदमी, दन्न से माफी मांग ली, लेकिन अब गुरद्वारा कमेटी बोलती है कि लिखित मे मांगो। ये भी कोई बात हुई।
मै गुरद्वारा प्रबन्धक कमेटी से पूछना चाहता ये जब सिनेमा मे सरदार भाई लोग बाल कटवाकर एक्टिंग करते है, तब किसी को काहे परेशानी नही हुई, सिख दंगो के दौरान कई सिख साथियों ने बाल कटवाए, तब इनको परेशानी नही हुई तो अब भज्जी के बालों को लेकर परेशान काहे की परेशानी? बाल भज्जी है, प्रबन्धक कमेटी के थोड़े ही है, भज्जी की मर्जी, चाहे तो खोले चाहे तो बांधे। ये लोग कौन होते है पंगा लेने वाले?
कहने को हो हिन्दुस्तान मे लोकतन्त्र है लेकिन आजकल इतने सारे पीआईएल,फतवे, फरमान और इत्ते सारे लफड़े होने लगे है कि डर लगता है, कंही कल को ब्लॉग लिखने के खिलाफ भी कोई फतवा दे दे तो कौनो बड़ी बात नही। का कहते हो फुरसतिया?
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