Are we a product?

सोचिए, क्या आपने कभी इस बारे में विचार किया है कि फेसबुक या सोशल मीडिया पर आप एक प्रोडक्ट बन चुके हैं? यह सवाल सुनने में अजीब लग सकता है, लेकिन हकीकत यही है। फेसबुक और बाकी बड़ी सोशल मीडिया कंपनियां आपकी हर गतिविधि पर नजर रखती हैं। आपके स्क्रॉल करने से लेकर आपके लाइक, डिसलाइक, दोस्त, दुश्मन, और यहां तक कि आपके सीक्रेट एडमायर तक—हर चीज़ का हिसाब रखा जाता है।

कैसे करती हैं कंपनियां आपका डेटा इस्तेमाल?

  1. हर मूवमेंट पर नजर: आप जब भी फेसबुक पर पोस्ट देखते हैं, किस जगह रुकते हैं, कहाँ आगे बढ़ जाते हैं, किस तरह के विषय की पोस्ट आपको पसंद आती है, कौन सी रील आपके चेहरे पर मुस्कराहट लाती है। और तो और शादी की पोस्ट/वीडियो में दूल्हे की किस साली पर आपकी नजर है, ये किसी बुआ/फूफी से ज्यादा बेहतर फेसबुक आपको बता सकता है। आपकी सारी जानकारियां फेसबुक के पास जमा हो रही हैं।
  2. हर नजर पर कड़ी नजर:
    कहते हैं औरतों के अंदर एक छठी इंद्री होती है। वो किसी भी पुरुष की नजर देखकर बता सकती हैं कि इसका चाल चलन कैसा होगा। याद है ना, माँ बोलती थी “इस आवारा धीरू की संगत मत कर”। फेसबुक उन सभी स्त्रियों की माँ है, ये आपकी पहली स्क्रॉल में बता सकता है कि आप किस किस्म के ऐबी या ठरकी हो। आपको सत्संग पसंद है या भोजपुरी द्विअर्थी गाने, फेसबुक सब देख रहा है।
  3. लाइक और डिसलाइक: आपने किन पोस्ट्स पर लाइक किया, किस पर कमेंट किया, और किन पर नहीं—ये सभी डेटा फेसबुक के एल्गोरिद्म में जाते हैं। इससे आपकी पसंद और नापसंद की जानकारी का बड़ा कैनवास तैयार होता है। आपको गांव की गोरी पसंद है या फिरंगी गोरा, ठुमके या झुमके। आप शायद अपने परिवार को धोखा दे सकते हैं, लेकिन फेसबुक को नहीं। इस सारी जानकारी का इस्तेमाल कंपनियां आपको टार्गेटेड ऐड्स दिखाने के लिए करती हैं।
  4. आपके रिश्ते: आपके दोस्त कौन हैं, आपका किससे ज्यादा इंटरेक्शन होता है, कौन आपका सबसे अच्छा दोस्त है, और कौन आपको सीक्रेट एडमायर कर रहा है, या कौन कौन आप पर नजर रख रहा है। किस चैट आप छिपाये घूमते हो —फेसबुक आपके सोशल ग्रुप्स को भी पूरी तरह से ट्रैक करता है। फिर WhatsApp के साथ आने से करेला ऊपर से नीम चढ़ा हो गया है।
  5. व्यक्तिगत भावनाएं: किसको ऑनलाइन देखकर आप खुश होते हैं, किसके दर (वॉल) पर जाकर आप रोज सुबह मत्था टेक कर आते हो। आपने किन पोस्ट्स को लाइक किया, आपकी खुशी, गुस्सा, उदासी—सभी भावनाओं का डेटा फेसबुक के पास जाता है। आप दिन में किस समय खुश रहते हो, किस समय गुस्से में, घर पर खुश या ऑफिस में चुप, सब कुछ रिकॉर्ड होता है। ये खाने से पहले फोटो खींचते हो ना, सब कुछ आप सोशल मीडिया को अर्पित करते हो। आप क्या खाते हो, क्या फेंकते हो, सबकुछ इसको पता है।

डरावनी सच्चाई: डेटा की कीमत

इस संसार में कुछ भी फ्री नहीं है, ना फ्री लंच, ना मुफ्त के डिनर। ये फेसबुक है, कोई मंदिर का भंडारा नहीं जो मुफ्त मिलेगा। फेसबुक जैसी कंपनियां मुफ्त में सेवा नहीं देतीं। वे आपके डेटा को एडवर्टाइजर्स को बेचती हैं ताकि आपको पर्सनलाइज़्ड विज्ञापन दिखाए जा सकें। जब आपका नाई आपके काटे हुए बाल बेच सकता है, तो फेसबुक आपकी जानकारी क्यों नहीं बेच सकता?

एक रिपोर्ट के अनुसार, फेसबुक के लगभग 2.98 बिलियन एक्टिव यूजर्स हैं। 2023 में फेसबुक की ऐड रेवेन्यू $113.64 बिलियन थी। अब रुपये में आप खुद जोड़ लें। ये रकम इसलिए संभव है क्योंकि कंपनियां आपकी प्रोफाइल पर आधारित डेटा खरीद रही हैं। मतलब, आप जाने-अनजाने खुद एक “डेटा प्रोडक्ट” बन चुके हैं।

आपको नहीं पता, लेकिन आपके पसंदीदा जूतों की ऐड या वेकेशन प्लान की डील्स आपकी जासूसी के आँकड़ों पर आधारित होती हैं। विश्वास नहीं होता? चलिए एक प्रयोग कर लेते हैं। आप अपने मोबाइल से बात करिए, “मुझे नया जूता खरीदने जाना है, लंदन की ट्रिप का फाइनल करना है और दोस्त के जन्मदिन के लिए एक इत्र लेना है।” ऐसा दिन में 4 या 5 बार बोलिए। बस हो गया, अब आपको उठते बैठते, सोते जागते, उन तीनों चीजों के विज्ञापन ही दिखेंगे, इसी को टार्गेट एडवर्टाइजिंग कहते हैं।

कौन खरीदते हैं ये डाटा?

बहुत सारे उपक्रमी और छोटे-बड़े व्यापारी। खुद फेसबुक आपको विज्ञापन दिखाने की सर्विस देता है। उदाहरणार्थ, मेरे इंडियन रेस्टोरेंट हैं, मैं फेसबुक को विज्ञापन दिखाने को बोलता हूँ, सिर्फ उन्हीं को मेरा विज्ञापन दिखाओ, जो:

  1. 18 से 36 साल वाले (यानी कमाऊ)
  2. भारतीय खाना पसंद करते हो (मेरे भावी ग्राहक)
  3. हफ्ते में 3 दिन खाना बाहर से मंगाते हो (बीवी के हाथ का पसंद नहीं)
  4. शाकाहारी (या माँसाहारी) हों (मेरे मेन्यू के अनुसार)
  5. डायटिंग नहीं कर रहे हों (हम सेव संतरे थोड़े ही बेच रहे हैं)
  6. अच्छा कमाते हों (माल खर्च करने वाले)
  7. बड़ी गाड़ी वाले हों (खर्चीले)
  8. मेरे रेस्टोरेंट के 5 किलोमीटर के दायरे में रिहाइश हो।
  9. विज्ञापन उसी समय दिखाओ, जब ये लोग खाने की तलाश में हों (भूखे को भोजन दिखाओ, ऑर्डर करेगा)

बस, हमने अपनी प्राथमिकताएं बता दीं, अब मेरे रेस्टोरेंट के विज्ञापन सही जगह जाएंगे। फेसबुक भी खुश, हम भी खुश, और जिसकी जानकारी बेची गई, वो तो पोस्ट पढ़कर ही खुश। ऊपर की जानकारी सिर्फ सन्दर्भ के लिए है। सोचिए, अगर मेरा इंडियन रेस्टोरेंट न होता, कोई डांस बार होता, तो मैं कैसे-कैसे ठरकी लोगों को ढूंढता? जरा सोच के देखो 😜

इसलिए अगली बार जब आपको विज्ञापन दिखे तो सोचिए कि आपको ही ऐसे विज्ञापन क्यों दिख रहे हैं। वो इसलिए क्योंकि आप खुद एक प्रॉडक्ट हैं…

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