अब का कहा जाए। कहाँ तो राजस्थान का रण बूंद बूंद पानी को तरसता था। हर साल सूखा पड़ता था, अब देखो हर तरफ़ पानी ही पानी है। जिधर निगाह डालो पानी ही पानी। बाड़मेड़ और जैसलमेर तो बाढ से त्रस्त जिले हो गए है। इन्द्र देवता को भी पता नही क्या सूझी कि दे मारा, शायद वो भी आजकल एक के साथ एक फ्री वाली स्कीम चला रहे है। लेकिन भई वसुन्धरा राजे का तो सोचो, वैसे ही शक्ल से इतनी थकी थकी लगती है (लोग बाग कहते है आंखे चढी चढी रहती है) ऊपर से बेचारी को घुटनो घुटनो पानी मे जाना पड़ रहा है। चार दिन बाद ही सही बेचारी बाढग्रस्त इलाके मे आयी तो सही। फिर भी लोग उसके खिलाफ नारेबाजी कर रहे है। एक महिला मुख्यमन्त्री के साथ ऐसी नाइन्साफ़ी ठीक नही। अब जब बात महिला मुख्यमन्त्री की हो रही हो तो उत्तर प्रदेश की भूतपूर्व मुख्यमन्त्री माननीय(?) सुश्री मायावती की बात ना हो तो गलत है।
अब सुना है कि वो फिर से पार्टी अध्यक्ष पद के लिए चुन ली गयी है। अब शुकुल पूछेगा, इसमे कौन सी नयी बात है? उसके अलावा पार्टी मे है ही कौन? अरे नही भाई, अब खोज शुरु हो गयी है। कांशीराम तो लम्बी छुट्टी पर है, अब बहन मायावती अगर अगले चुनाव मे मुख्यमन्त्री बन गयी तो पार्टी चलाने वाला भी तो कोई चाहिए ना। आखिर बहन जी की इत्ती बड़ी सम्म्पत्ति (सॉरी पार्टी की ढेर सारी सम्पत्ति) की देखरेख करने वाला कोई चाहिए ना? अब सुनिए बहन जी का कहती है :
मायावती ने कहा कि वह अभी बूढ़ी नहीं हुई हैं लेकिन एक दिन सभी को मरना है। ऐसे में किसी न किसी को राजनीतिक उत्तराधिकारी बनाएंगी। बसपा प्रमुख ने स्पष्ट किया कि वह किसी रिश्तेदार के बजाय दलित वर्ग से किसी ऐसे व्यक्ति को राजनीतिक उत्तराधिकारी बनाएंगी जो उनसे 30-35 साल छोटा हो। ऐसे व्यक्ति को पार्टी के लिए काम करने का ज्यादा वक्त मिलेगा।
आप समझ रहे है ना, बहन मायावती के इरादे क्या है? कोई है क्या आपकी नजर में? परेशान मायावती की समस्या हल करो भई।
अकेली मायावती परेशान नही है, बहुत सारे और लोग परेशान है। अब ज्योतिषियों को ही लो, जब से प्लूटो से ग्रह का दर्जा छिन गया है वे लोग मारे मारे फिर रहे है, कोई घास भी नही डाल रहा इनको। काहे? अरे भई जो ज्योतिषी अपने ग्रह की भविष्यवाणी ना कर सके वो लोगो को क्या भविष्य बताएंगे? फिर एक ग्रह के जाने से कैलकुलेशन मे भी तो परेशानी आयेगी ना। इसलिए वो ज्यादा परेशान है। लेकिन उनसे ज्यादा परेशान है खगोलशास्त्र की किताबें छापने वाले प्रकाशक, वैसे तो हर साल जस की तस किताबे छाप देते थे, थोड़ा बहुत पन्ने इधर से उधर करके, क्योंकि पता था, कुछ भी नही बदलने वाला, लेकिन मार पड़े वैज्ञानिको को कि प्लूटो को ग्रह से तारा बना दिया, अब इन प्रकाशकों के दिन भी फिर गए है। अब इनको पल्ले से पैसे डालकर दोबारा किताबें लिखवानी होंगी, जो इनके बाप दादाओं ने भी कभी नही सोचा होगा। अब प्लूटो के अच्छे दिन नही रहे तो इनके भी बुरे दिन शुरु हो गए है। लेकिन बच्चे खुश है काहे? उनको एक ग्रह कम जो पढना पड़ेगा। अब अर्जुन सिंह जी सोच रहे होंगे कि कोई विधेयक लाया जाए, ताकि वैज्ञानिक ग्रहों के साथ छेड़छाड़ ना कर सके। काहे? क्योंकि बने बनाए सिस्टम से छेड़छाड़ का कापीराइट तो इनके ही पास है ना। अब इनके शैतानी दिमाग मे कोई नया आइडिया चल रहा है वो ये कि आरक्षित वर्ग के बच्चों को सिर्फ़ चार ग्रह ही पढाए जाने चाहिए। अब देखिए ये कब तक इम्प्लीमेन्ट होता है।
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