पिछले अंक से आगे
सबसे पहले तो माफ़ी चाहूंगा कि इतने दिनो बाद लिखा, क्या करें आजकल आफिस मे काम कुछ ज्यादा ही है, आजकल हम ही मैनेजर, हम ही सेक्रेटरी और हम ही चपरासी, आल इन वन का काम कर रहे है।घर पहुँचकर भी ढेर सारे काम होते है, इसलिए घर पर भी नही लिख पा रहे थे। खैर…
हमारी गाड़ी, फुल स्पीड से जयपुर की तरफ़ दौड़ रही थी।मिश्रा जो कि अब तक खा पी(?????) कर टुन्न हो चुके थे।खबरदार जो किसी ने मिश्राजी के मुताल्लिक कुछ ऐसी वैसी बात सोची। वो पानी पीकर भी टुन्न हो सकते है। अब बारी थी अपने अपने किस्से सुनाने की।मोर्चा सम्भाला अपने नीरज ने। वे बेखटके बे-लगाम बोलते रहे, नेता, राजनीति और मीडिया।इधर मिश्राजी भारतीय संस्कृति और इटैलियन संस्कृति मे फर्क समझा रहे थे,संयत भाषा मे। हमने देखा भाई लोग बहुत मुश्किल से संयत भाषा का प्रयोग कर पा रहे है तो हमने नान वेज चुटकुलों का भन्डार खोल दिया, बस फिर क्या था। मिश्रा जी इटली की अन्दर की बाते बताने लगे और नीरज भाई नेताओं की शाम के बाद की बातें। काफी मजा आया। सारी बाते यहाँ लिखेंगे तो नेता लोग संसद मे विधेयक पारित करके इस ब्लॉग को बैन कर देंगे, इसलिए इस बारे मे जानने के लिए अगली ब्लॉगर मीट पर जरुर आइएगा।इधर अमित भाई ने मौका देखकर, एक झपकी मार ली।
अब अमित झपकी मारे, और हम जागे रहे ऐसा कैसे हो सकता था, सो हमने एक वैब टैक्नोलाजी से सम्बंधित मुद्दा छेड़ा और अमित को झिझोड़कर जगाया गया और अमित से इस बारे मे राय मांगी गयी।अमित ने बोलना शुरु किया, तब जाकर हमे चैन पड़ा और हम थोड़ी देर के लिये नींद के आगोश मे गुम हो गए। लेकिन मार पड़े इन खुर्राटों को, जिन्होने हमारी नींद की गोताखोरी को जगजाहिर कर दिया। और हमे भी झिंझोड़कर जगा दिया गया, और आगे ना सोए, इसके लिये हमारे मुँह मे चाय भी उड़ेली गयी।इस तरह से जागते जागते हम जयपुर पहुँचे।
जयपुर पहुँचकर, भटकते भटकते हमने जयपुर क्लब पहुँचकर देखा तो वहाँ तो ताला लगा पड़ा था, हमने अमित की तरफ़ टेड़ी नजर से देखा(क्यों? और किसकी तरफ़ देखते? अमित ने ही तो बुकिंग करवायी थी।खैर जनाब थोड़ी देर मे ही हमे पता चल गया कि एक छोटा सा गेट खुला था, हम कमरे (अभी बारह बजे तक एक ही कमरा था) तक पहुँचे और चाय के लिए आर्डर किया गया। चाय तो नही आयी, अलबत्ता आगरा से प्रतीक पान्डे आ गए, वो आगरा का मशहूर पंक्षी पेठा लाए थे।सुबह सुबह हम लोगों ने पेठे के साथ चाय का आनन्द लिया।हम नीचे निकल गए तो पता चला कि क्लब मे बहुत सारी सुविधाएं है, हमने टेबिल टैनिस खेलने की सोची, लेकिन चाभी नही मिली। सो क्लब वालों ने सांत्वना पुरस्कार मे तरणताल का रास्ता दिखाया। अमित ने पानी मे उतरने से मना कर दिया(अन्दर की बात मै बताता हूँ, तरणताल वालों ने ही कहा था रिस्क है, सारा पानी बाहर ना आ जाए) उधर मिश्राजी भी पहले कह चुके थे, वो सिर्फ़ इटैलियन सुन्दरियों के सामने ही स्वीमिंग करते है, अब हमारे पास इटैलियन सुन्दरियां तो थी नही इसलिए बाकी के तीन लोग तरण ताल मे उतर गए।एक बात हम और क्लियर कर दें कि मिश्राजी के हाथ मे कैमरा देखकर तरणताल मे स्वीमिंग कर रही दो सुन्दरियां भी भाग गयी (अमित ने इल्जाम हमारे उपर लगाया था, हमने इसलिए क्लियर किया ताकि सनद रहे और वक्त जरुरत काम आए)
नाश्ते के बाद हम जयपुर भ्रमण को निकले, रास्ते मे हमे एक सिन्धी गाइड मिला, जिसने हमे साठ रुपैए का चूना लगाया, सचमुच सिन्धी लोग चूना लगाने मे उस्ताद होते है।जयपुर मे बहुत गर्मी थी, इसलिए हमने बीयर का सहारा लिया, अब जहाँ बीयर हो वहाँ नीरज ना हो ऐसा कैसा हो सकता है।बीयर वगैरहा खरीद कर हम लोग वापस क्लब पहुँचे, काउन्टर वाले ने हमे एक और रूम की चाभी टिकायी(यही पर असली पंगा शुरु हुआ)। कमरे मे बीयर पीकर और खाना खाकर हम और मिश्राजी तो वहीं लेट गए।अमित किसी पहचान वाले से मिलने निकल गए। लेकिन नीरज और प्रतीक बगल वाले दूसरे कमरे मे चले गए। अब हुआ ये कि उस कमरे मे किसी का सामान रखा हुआ था, और काउन्टर वाले ने गलती से चाभी दे दी थी। इन लोगो ने कुछ देखा समझा नही और जाकर बैड पर लेट गए। तकरीबन दो घन्टे बाद हमने उनको फोन लगाया और बोला कि आओ यार चाय शाय पीते है,लेकिन ये लोग नही आए। थोड़ी देर मे चाय भी आ गयी तो हमने रुम ब्वाय को इन लोगों को जगाने भेजा, रूम ब्वाय बोला कि आपको जो दूसरा कमरा एलाट हुआ है वो तो बन्द पड़ा है, हम सकते मे आ गए, कि दोनो लोग, सोते सोते सपने मे ही कहाँ टहल गए। हम रुम ब्वाय के साथ गए तो वो हमको दूसरा कमरा दिखा रहा था, हम उसको जब बगल वाले कमरे मे ले गए तो वो बोला, “साहब जल्दी से इन लोगों को उठाओ और कमरा फटाफट बन्द करवाओ, नही तो बहुत बड़ा फ़ड्डा हो जाएगा।क्योंकि ये कमरा तो किसी और साहब का है, वो आ गया तो गज़ब हो जाएगा”।हमने दोनो को जल्दी जल्दी उठाया और सारा किस्सा समझाया। हम लोग बाल बाल बचे। कैसे?……..अगला पैराग्राफ़ पढे।
मान लीजिए(थोड़ी देर के लिये) कि बगल वाले कमरे मे कोई फैमिली या हनीमून वाला जोड़ा ठहरा होता, मिंया जी ताला लगाकर,क्लब के काउन्टर पर चाभी देकर, थोड़ी देर के लिये बाजार गए होते और पत्नी जी नहाने चली जाती।इस बीच ये ब्लॉगर टोली वापस आती है, और काउन्टर से बगल वाले रुम की भी (जहाँ उस बन्दे की पत्नी नहा रही होती) चाभी मिलती है, ये दोनो बन्दे बीयर पीकर टुन्न होते है और बगल वाले कमरे मे जाकर सीधे बैड पर लेट जाते है। पत्नी जो बाथरुम मे नहा रही होती है सोचती है कि उसका साजन वापस आया है और वो पति को सरप्राइज देने के लिये, सिर्फ़ टावल मे ही, अचानक बाथरुम से बाहर आती है…………और इन दोनो को देखकर जोर से चीखती है………..हाय दय्या……..बचाओ………………………………
(अगले दिन जयपुर के अखबारों मे इन दोनो ब्लॉगर बन्धुओं का फोटो छपता, साथ मे समाचार भी, और पिटाई होती सो अलग।रवि रतलामी जी भी तुरन्त एक व्यंजल लिख देते इस सब्जेक्ट पर।पुलिस का केस भी बहुत जानदार बनता, पीकर पड़ोसी की पत्नी को छेड़ा ।बहुत सही ब्लॉगर मीट होती, है ना? और चक्की पीसते कुछ इस तरह:)
शाम को हम लोग अपने सागर चन्द नाहर साहब का जन्मदिन मनाने के लिये चोखी धाणि चले गए। वहाँ पर जोखी धाणि वालो ने इतना खिलाया कि हम लोग बाहर आकर हिलने डुलने की हालत मे नही थे।बाकी की खबर आपको अमित के ब्लॉग से मिल ही गयी होगी, यहाँ तो आपको सिर्फ़ अन्दर की बाते ही बतायी जायेगी।चोखी धाणि मे क्या क्या है यहाँ नीचे देख लीजिए:
अगले दिन हम लोग आमेर के किले को देखने गए। वहाँ पर महल देखने गए, ऐतिहासिक बाते छोड़िए काम की बात सुनिए, राजा (नाम मे क्या रखा है?) की ढेर सारी रानिया थी, (आफिशयल थी, अनाफ़िशयल बाँदियों की गिनती नही कर रहा मै) लगभग बारह (नीरज अगर संख्या गलत हो तो करैक्ट करवा देना,नीरज को दो नम्बर की बातें ज्यादा याद रहती है।) और सभी एक महल मे रहती थी, लेकिन राजा इतना चालाक था कि उसने हर रानी के पास जाने के रास्ते अलग अलग बनवा रखे थे, ताकि दूसरी रानी को पता ना चल सके कि आज राजा कहाँ पर मौज मस्ती कर रहा है। काश! हम भी ऐसा जुगाड़ बना पाते? खैर… ना हम राजा है और ना ही हमारी इत्ती सारी रानियां।
आमेर का किला देखने के बाद अमित फैल गया(फैलने की विस्तृत परिभाषा शुकुल समझाएंगे) कि हम जयगढ का किला भी देखेंगे, अब जब औरते या छोटे बच्चे फैल जाए, तो पक्का समझो, आपको झुकना ही पड़ता है। सो भाई, जयगढ का किला भी देखा गया। जो आजकल प्रेमी प्रेमिकाओं के मिलने का अड्डा है, क्यों? अरे यार, एक तो शहर से दूर है ऊपर से अक्सर सुनसान रहता है, बहुत कोठरियां टाइप की है वहाँ पर, फिर वहाँ पर पुरातत्व विभाग के कर्मचारी भी बहुत कोआपरेटिव है।समझ गए ना आप? दिल्ली मे रहने वाले निराश ना हो, सफ़दरजंग के मकबरे पर आपकी मुंह मांगी मुराद पूरी होगी।
दिन भर की दौड़भाग के बाद हम दिल्ली के लिए निकले। हाँ इस बीच हमने कुछ राजस्थानी लोक संगीत की सीडी खरीद ली,काफी सही है यार! मजा आ गया।हम लोग रास्ते मे खाना खाते हुए, वापस दिल्ली के लिए निकले। रास्ते मे बाते करते करते भूत प्रेतों की बात निकली तो हमने अपना सच्चा किस्सा सुनाया। किस्सा सुनकर सभी लोग डर (शायद कार के एसी की ठन्ड ) से कांपने लगे। मैने फिर बच्चों को काँपना देखकर बन्द कर दिया क्या? किस्सा सुनाना नही…एसी।रात के साढे ग्यारह बज गए थे, इसलिए हम एक एक करके विदा हुए। इसे ब्लॉगर मीट जैसा भारी नाम देना नही चाहिए, लेकिन क्या करें, मिले तो हम लोग ब्लॉगिंग की वजह से ही थे ना। और इस तरह से मौजमस्ती की यह ब्लॉगर मीट सम्पन्न हुई।
इस ट्रिप के सारे फोटो यहाँ देखिए।
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