अभी पिछले दिनो मेरे भारत यात्रा के दौरान जयपुर मे हिन्दी चिट्ठाकारों का मौजमस्ती सम्मेलन आयोजित किया गया। आइए इसके बारे मे आपको जानकारी दें। लेकिन रुकिए पहले सम्मेलन मे आने वाले बन्धुओं के बारे मे तो जान लीजिए।
रामचन्द्र मिश्रा : रामचन्द्र मिश्रा उर्फ़ रा. च. मिश्रा, इटली से पधारे थे, अभी पिछले दिनो ही इन्होने इटली मे सुनील भाई से भेंटवार्ता की थी, इस नाते तो अनुभवी है ही।भोले भाले चेहरे वाले रामचन्द्र भाई बहुत अच्छे छायाचित्रकार भी है।बस बेचारे अपने मोबाइल फोन पर आने वाले अत्यधिक काल्स से परेशान रहते है।अक्सर घूमते घूमते यदि बन्दो की काउन्टिंग मे एक बन्दा कम हो तो समझ लीजिए रामचन्द्र पीछे छूट गए और किसी से फोन पर बात कर रहे है।फोन इनको इत्ता परेशान करता है कि पूछो मत, कई कई बार तो कैमरा कान पर लगाकर मोबाइल से फ़ोटू खींची है इन्होने(यहाँ ये बात नोट की जाए कि मोबाइल मे कैमरा नही है)।एक और बात, रामचन्द्र इस बात का विशेष ध्यान रखते है कि फोन करने वाले ने फोन कहाँ से किया, यदि फोन लैन्ड लाइन से किया गया है तो रामचन्द्र जी, वही पर खड़े होकर बात करते है, मजाल है कि एक भी कदम आगे बढा दे, आखिर लैन्डलाइन की भी तो कोई इज्जत है। अलबत्ता अगर किसी ने मोबाइल से फोन किया है तो कोई बात नही, चलते फिरते भी बात कर सकते है।हमे मिश्राजी का ये अन्दाज बहुत पसन्द आया।
प्रतीक पान्डे: प्रतीक पान्डे का फोटो जब मैने ब्लॉग पर देखा तो सोचा था, कि बुजुर्गवार होंगे, मिर्जा की उमर के, लेकिन यार! जब प्रतीक जयपुर पहुँचे तो मै हक्का बक्का रह गया, फिर भी मैने सोचा कि शायद प्रतीक भाई ने अपने बेटे को भेज दिया होगा। इसलिए पहले पहले तो इधर उधर की बात की, जब पक्का हुआ कि यही प्रतीक है,तब जाकर मैने मन को समझाया। प्रतीक अभी कुंवारे है और इनकी शादी की बातचीत चल रही है, इसलिए जहाँ भी कोई फोटो खींचता, प्रतीक भाई अक्सर बीच मे आ जाते। आप हर फोटो मे देखेंगे कि प्रतीक बीच मे होगा ही, अगर बीच मे नही तो किनारे तो पक्का खड़ा होगा। मनलुभावन सूरत वाले और फ़िल्मी हीरो जैसे दिखने वाले प्रतीक, मेरे से छिप छिप कर लड़कियों को लाइन मार रहे थे, इन्हे क्या पता था, हमने इसमे पीएचडी कर रखा है।अमां हमको दिखा देते तो तुम्हारा क्या बिगड़ जाता? खैर….. बाकी आगे बताते है।
नीरज दीवान : इनके साथ भी यही कुछ हुआ, रात मे जब हम इनके घर के पास इनको अगवा करने गए, तो हमे लगा कि हमने कोई गलत आदमी तो नही उठा लिया, हमने तीन तीन बार अमित से कन्फ़र्म किया। अमित अडिग था, बोला दिखता तो यही है, फिर भी अन्धेरा है, पक्का नही कह सकते।मुँह से कुछ बोले तो पक्का होगा। यही हुआ भी, एक बार जब नीरज बाबू खुले तो खुलते ही चले गए….अमां गलत मत समझो, विचारो मे।नीरज के बेबाक बातचीत का अन्दाज और बात बात पर चुटकुले सुनाने की कला के तो हम कायल हो गये। हमने भी सोचा, चलो भाई, सफर तो मजे से कटेगा।नीरज बाबू पेशे से पत्रकारिता से जुड़े है इसलिए नेताओ को बहुत करीब से जानते है, इत्ता करीब से की इनको पता है दारू पीने के बाद कौन कौन सा नेता थाली और चिमटा बजाकर “मेरा रंग दे बसन्ती चोला” गाता है। इधर हम भी राजनीतिक चर्चा के शौकीन, फिर क्या, सफर आसां हो गया।
अमित गुप्ता : इस ग्रुप मे सबसे छोटे, लेकिन दिखने मे सबसे बड़े अमित गुप्ता, इस ट्रिप के कर्ताधर्ता और कैशियर थे।कैशियर इन्हे इसलिए बनाया गया था कि इनका डीलडौल देखकर कोई दुकानदार इनसे ज्यादा पैसे मांगने की जुर्रत ना कर सके।अमित भाई तकनीकी चर्चा के शौकीन है, इनको बस छेड़ दो फिर देखो। आप एक दो नींद भी मार लोगे और जब जागोगे, तब भी आप अमित को बोलता हुआ पाओगे। हमने तो एक दो बार यही ट्राई किया, मुद्दा छेड़ दिया और मौका मिलते ही झपकी मार ली। लेकिन वैसे सब कुछ सही था, लेकिन ये तो मार पड़े खुर्राटों को कि चोरी पकड़ी गयी और बाकियो ने झिंझोड़कर उठा दिया, और बाकायदा पूरा तकनीकी लैक्चर पिलाया गया, पूरे कामा और फुलस्टाप के साथ।इसलिए आप भी कभी अमित को तकनीकी मामले मे मत छेड़ना, मै भुक्तभोगी हूँ, मेरे अनुभव से तो सबक लो यार!
और मैं यानि जीतेन्द्र चौधरी: मेरे बारे तो आप जानते ही हो, अपने मुँह अपनी तारीफ़ क्या करूं, इस ग्रुप मे सबसे बड़ा। इस ट्रिप का आइडिया मेरा ही था, अलबत्ता अमली जामा अमित ने पहनाया।
इसके अलावा कुछ और लोग है तो आखिरी समय मे कन्टी कर गए, सबसे पहले कन्टी किए थे, सृजनशिल्पी जी, फिर जगदीश भाटिया जी और आखिरी मे संजय बैंगानी और कोटा वाले युवा ब्लॉगर। इसके अलावा हमने फुरसतिया को भी कहा था, लेकिन वो झोला टिका गए और गुड़गाँव वाले हिमान्शु भाई भी थे, जो पहली एग्री करके फिर अचानक चैट से भी गायब हो गए।खैर यार! अपना क्या, हम जित्ते थे, उतने ही काफ़ी थे, जयपुर के लिए। बाकी आते तो मजा बहुत आता। तो भाई शुरु करें?
उत्तर भारत पहुँचते ही, अमित के फोन आने शुरु हो गए थे, बेचारे ने एक एक बात हमे बतायी, हम उसको बस एक बात नही बता सके कि उसकी एक एक काल पर जित्ते पैसे वो खर्च करता था, उससे दोगुने मै सुनने मे खर्च करता था, क्यों? अरे यार एयरटेल वालों की मेहरबानी से, मै बैंगलौर से कनैक्शन लिए था और उत्तर भारत मे रोमिंग पर था। एयरटेल वालो ने धो धो कर मारा, एक एक कॉल के प्रति मिनट, सालों ने बीस बीस रुपये काटे, और भी कोई हिसाब नही था, सुबह चार्ज करवाओ, अमित का एक फोन आ जाए तो सौ रुपये के चार्ज का भट्ठा बैठ जाता था। खैर, नम्बर हमने दिया था तो झेलना भी हमे ही था। सात तारीख को जब पता चला कि जगदीश भाई नही आ रहे, और प्रतीक का भी मन जयपुर सीधे आने का है, तो हमने प्रतीक को फोन मिलाया, फिर अमित को पूछा कि कहो तो कैन्सिल कर दें, या फिर दिल्ली मे ही रख दें, लेकिन अमित को तो रावत की कचौड़ी के अलावा कुछ सूझ ही नही रहा था, इसलिए बोला, चलेंगे जरुर, भले ही कम लोग चलें।हमने भी सोचा जब बच्चा इत्ती जिद कर रहा है तो चलो, जो होगा देखा जाएगा।
इस बीच मिश्रा जी भी चैट पर पधारे और अपने मोबाइल नम्बर टिकाए, हम दोनो सात तारीख को दिल्ली पहुँच रहे थे, मिश्रा जी, एयर डेक्कन की थकेली फ़्लाइट से (उसका वर्णन वे खुद करेंगे) और हम भारतीय रेल की शान की सवारी से। पैसे दोनो ने बराबर ही खर्चे किए होंगे लेकिन मिश्रा जी ने दिल्ली जल्दी पहुँचकर मेरे से ज्यादा समय धक्के खाए होंगे।है ना मिश्राजी? मिश्राजी हमे लेने प्लेटफ़ार्म पर आए, यहाँ ये बात नोट की जाए कि प्लेटफार्म पर, ना कि पटरी पर।हम उन्हे फुनवा मिला रहे थे, वो हमारे ठीक पीछे खड़े होकर हमारी बेताबी और सब्र का इम्तिहान ले रहे थे, और हाँ साथ मे फोटो भी खींच रहे थे। खैर जनाब फोटो मेरा खींच रहे थे, या मेरे पड़ोस मे खड़ी हसीना का हमे नही पता, अब फोटो दिखे तो पता चले कि हमारी पीठ कित्ती सैक्सी है।हमारे पास कुछ सूटकेस थे, इसकी कहानी बहुत अजीब है, बाद मे सुनाएंगे, उनको ठिकाने लगाने के लिये हमने अपने एक मित्र को भी बुलवाया था, जो बेचारा नाइटसूट मे सोते सोते ही स्टेशन आ गया था, हमने उनको सूटकेस टिकाए और मिश्राजी से मुखातिब हुए।मिश्राजी बताये कि अमितवा बाहर इन्तजार कर रहा है लेकिन उसे पहचानेंगे कैसे? हम बोले जो सबसे तगड़ा बन्दा हो वही अमित। बाहर आए तो अमित नेताओ जैसा कुर्ता पहने नो पार्किंग वाले जोन मे गाड़ी खड़ी किए इन्तजार कर रहे थे, बेचारे पुलिसवाले भी इनका डीलडौल और पहनावा देखकर कुछ कहने से घबरा रहे थे। हम तीनो गाड़ी मे सैट हुए, सैट इसलिए कि अमित को दरवाजे से अन्दर बैठने मे बहुत टाइम लगा।हमने डिक्की भी ट्राई की, लेकिन बेकार।खैर फिर यही डिसाइट हुआ कि अमित आगे की सीट पर बैठे और हम दोनो पीछे एडजस्ट हो जाते है।
मिश्राजी, पाँच बजे से दिल्ली मे थे, लेकिन डिनर नही किए थे, पता नही कहाँ कहाँ टहले थे? अब हमसे का पूछते हो, मिश्राजी जवाब देवें।अब कहते है ना जहाँ जाए भूखा वहाँ पड़े सूखा। जहाँ जहाँ हम उन्हे ले गए वहाँ वहाँ खाली बर्तन मिले।बेचारे मिश्राजी,दिल्ली मे भूखे ही रहे।अब बारी थी दीवान साहब को उठाने की। दीवान साहब ने नोएडा का अपने घर का पता दिया, हम लोग भटकते भटकते वहाँ पहुँचे, वहाँ एक बदनाम सिनेमा हाल है जहाँ हमेशा धार्मिक फ़िल्मे ही लगती है(धार्मिक बोले तो वो वाली) और साथ मे यदि मूड हो तो कीर्तन/सत्संग के लिये कन्याए भी उपलब्ध होती है। उसी के आसपास ही कंही दीवान साहब रहते है। अब उनके रहने के ठिकाने से आप उनकी शौंक का अन्दाजा लगा लीजिएगा, हम तो बस चुप ही रहेंगे।दीवान साहब तो बस किसी और गाड़ी मे बैठते बैठते रह गए, ये तो अमित ने ऐन वक्त पर आवाज लगा दी थी, नही तो दीवान साहब कंही और होते, और हम किसी और को दीवान साहब समझकर अगवा कर लेते।
अब बन्दे पूरे हो गए थे, सो हम लोग निकल पड़े जयपुर की ओर। मौसम सुहाना था(एसी गाड़ी मे सुहाना तो हौबे करी), रात जवां थी, तारे टिमटिमा रहे थे और….. मिश्रा की पेट मे चूहे कूद रहे थे। आखिर गुड़गाव के बाद कंही जाकर ढाबा मिला जहाँ मिश्रा जी ने भोजन किया जहाँ ट्रकवाले ड्राइवरों ने मिश्रा का साथ दिया, बाकी हम सबने चाय पी।फिर हम आगे बढ लिए।हमको लग रहा है लेख बहुत लम्बा हो रहा है इसलिए इसको टुकड़े टुकड़े करके लिखा जाए, नही तो ये लेख नही, फुरसतिया का पुराण हो जाएगा जिसे लोग पहला और आखिरी पैराग्राफ पढकर , जबरदस्ती वाह वाह लिख देते है(नही तो फुरसतिया का भूत पीछे लग जाता है)। तो भक्तजनो…. अगला भाग थोड़ी देर बाद लिखा जाएगा।तब तक पढते रहिए, मेरा पन्ना।
इस बीच फोटो अपलोड कर दिए गए है, यहाँ देखिए।
इस ट्रिप की दास्तान आगे भी जारी है।
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