अनुगूँज १६: (अति)आदर्शवादी संस्कार सही या गलत?
मिर्जा साहब, हमारे राजनीतिक सलाहकार है। कुवैत मे है, ये हमारे लिये वरदान और श्राप दोनो है, वरदान इसलिये कि इनसे अच्छा इन्सान दुनिया मे नही दिखता, दोस्ती निभाने मे दिन और रात नही देखते।श्राप ऐसा कि अपनी बात थोपने मे कोई कोर कसर नही छोड़ते। ना मानो, तो गुस्सा करते हैं।किसी भी मसले पर बात करवा लीजिये, सुनने वाला समझ जायेगा कि मिर्जा यूपी के है,काहे? अमां बात बात मे गाली गलौच जो करते है। गाली गलौच तो जैसे इनके गहने है।बस मुद्दा छेड़ दीजिये, बस फ़ूल बरसने चालू हो जायेंगे। वैसे मिर्जा का कैरियर पुलिस महकमे मे ज्यादा उज्जवल होता।मिर्जा के किस्से आप यहाँ पढ सकते है। मिर्जा साहब हमारे पिछले लेख को पढकर बमक गये और शुरु हो गये। आप भी सुनिये
मिर्जा बोले, “अमां मियां तुम अपने आपको समझते क्या हो? बहुत बड़ा लेखक?, समाज सुधारक? या बहुत बड़े विचारक? ये क्या अगड़म सगड़म लिखते रहते हो। ना सिर ना पैर, का है इ सब?” बात करते करते मिर्जा पत्थर उठा उठाकर समुन्दर में फ़ेंक रहा था, मेरे विचार से हर पत्थर मे उसे मेरी ही सूरत नजर आ रही थी, इसलिये हर बार वो उसे ज्यादा से ज्यादा दूर तक फ़ेंकने की कोशिश कर रहा था।हम समझ गये कि आज मिर्जा को कुछ भी समझाना, बहुत मुशकिल काम होगा।कंही ऐसा ना हो, कि मिर्जा हमे ही उठाकर समुन्दर मे फ़ेंक दे(हालांकि मिर्जा की गिरती हुई हैल्थ और मेरा बढता हुआ वजन देखकर, इसकी उम्मीद कम ही थी, लेकिन फ़िर भी काहे को रिस्क लें) इसलिये हम चुपचाप भाषण सुनते रहे। मिर्जा अनवरत बोलता रहा।
तुम्हारे नजरिये से मां बाप बच्चे को जो कुछ सिखाते है उसकी कोई अहमियत नही है ना? अबे आज तक जो कुछ तुम सीखे हो, क्यां खुदा के यहाँ से सीख कर आये थे? मां बाप चाहते है कि बच्चा एक अच्छा इन्सान बने, इसलिये उसे अच्छी शिक्षा और संस्कार देने की कोशिश करते है। तुम क्या कहते हो, मां बाप बच्चो को झूठ बोलना सिखायें? क्या इससे वो अच्छा इन्सान बन सकेंगे?
मै: लेकिन मिर्जा…..
मिर्जा : चुप, एकदम चुप, आज सिर्फ़ मै बोलूंगा और तुम सुनोगे, तुम्हारी लिखी एक एक बात का जवाब दूंगा, सिलसिले वार। पहली बात झूठ बोलने वाली.. बच्चों को हमेशा ये सिखाया जाना चाहिये कि सच्चाई की हमेशा जीत होती है और झूठ के पांव नही होते यानि झूठ ज्यादा दिन तक नही चलता, कभी ना कभी पकड़ा ही जाता है।हमेशा सच बोलना चाहिये, लेकिन…लेकिन अगर कभी झूठ बोलने की जरुरत पड़े तो बेहतर है चुप रहो।मत बोलो, लेकिन झूठ बोलकर अपनी स्थिति को खराब मत करो।
इसी तरह गलत बात, अन्याय और छल कपट मत करो, लेकिन साथ ही उसके विरुद्द आवाज बुलन्द करो, भले ही तुम्हारी बात आज नही सुनी जाय, लेकिन तुम अपनी राह पर अडिग रहो। छल-कपट से थोड़े समय के लिये तो लाभ उठाया जा सकता है लेकिन ज्यादा दिनो तक नही। कभी ना कभी कलई खुल ही जाती है।वंही दूसरी तरफ़, ईमानदारी की राह मे कांटे तो बहुत होते है, संघर्ष बहुत करना पड़ता है लेकिन मन का सकून होता है।
रही बात दारु पीने पिलाने की हर काम का एक समय होता है। एक उमर होती है, अगर बाप पी रहा है तो जरुरी नही कि बेटा भी गिलास लेकर पीने बैठ जाय। अनुसरण करो, लेकिन अच्छी बातों मे, माता पिता ने तुम्हे अच्छा बुरा सोचने समझने का ज्ञान दिया है, उस ज्ञान का उपयोग करो और अपने अंतर्मन से पूछा कि क्या सही है और क्या गलत। वैसे भी शराब कोई टानिक तो है नही और ना ही अमृत है कि पीकर अमर हो जाओगे, इसलिये अच्छा बुरा सोचो, तब ही गिलास की तरफ़ हाथ बढाओ।गुज्जू भाई वाली बात पर मै कमेन्ट नही करूंगा क्योंकि किसी भी धर्म के खिलाफ़ बोलना मेरी फ़ितरत मे नही है, बस इतना कहूंगा कि सारे संस्कार, धार्मिक विचारधारायें, समय और काल के हिसाब से प्रासंगिक होनी चाहिये।
रही बात, खुशबू की, तो भई, कई बाते सिर्फ़ समझी जाती है, यूं पब्लिकली शोर मचा मचाकर नही बताई जाती। सभी जानते है कि हम सब कैसे पैदा हुए, लेकिन कोई लाइव डिमान्स्ट्रेशन/कमेन्ट्री थोड़े ही करता है।सेक्स रिलेटेड डिसकशन अभी भी खुले आम नही किये जाते। यही तो फ़र्क है पश्चिमी सभ्यता और हमारी सभ्यता में, हम नंगा नाच नही करते। रही बात मस्तराम की, तो भैया, सब कुछ मिलता है बाजार में, अच्छी और बुरा साहित्य। जिसे रवीन्द्रनाथ टैगोर पढना होगा वो मस्तराम की तरफ़ भूलकर भी नही जायेगा, अगर गया तो तुरन्त ही वापस आयेगा। और फ़िर ये उम्र का तकाजा है, कच्ची उम्र मे ये गलतियां तो हो जाया करती है। जब जागो तभी सवेरा।
रही बात सेक्स शिक्षा की, हाँ ये एक मुद्दा है जिसे हम सभी को ध्यान देना है। लेकिन ये शिक्षा किस उम्र मे दी जानी चाहिये, ये एक बहस का विषय है।रही बात दोगलेपन की तो इसे दोगलापन नही विरोधाभास कहते है। विरोधाभास कहाँ नही है, जीवन मे हर तरफ़ है, जितने तरह के लोग, उतनी ही विचारधारायें। फ़िर जो तुम्हारी नजर मे अच्छा है कोई जरुरी नही दूसरी की नजर मे अच्छा हो। नजरिये तो एक तरह का चश्मा है, जो जैसा चाहे पहन ले। हमे अच्छी चीजे अपनाने से गुरेज नही करना चाहिये, वंही देखा देखी मे गलत चीजों को अपनाने से परहेज करना चाहिये। अगर हम तुम सही राह अपनाते है तो समाज अपने आप अनुसरण करेगा। आखिर समाज भी तो हमारे और तुम्हारे जैसे लोगों से बना है। इसलिये मेरा कहना यही है कि लिखने से पहले सौ बार सोचा करो और जब भी लिखो तस्वीर के दोनो रुख के बारे मे लिखो।
अब मै मिर्जा की कही कई बातो पर सहमत नही हूँ लेकिन मैने यही ठीक समझा कि मिर्जा का भाषण आपके समक्ष प्रस्तुत करूं और आप ही इसे पढकर अपनी राय बनाइये।ई-स्वामी जी चाहे तो इसे भी अनूगूँज मे शामिल करें चाहे तो ना करें।मिर्जा साहब को मैने पूरे पूरे दो घन्टे झेला, हालांकि बाद मे मिर्जा ने छुट्टन के हाथों के बने पकोड़े भी खिलवाये और चाय भी पिलवाई। अब समय काफ़ी हो चुका है और मै भी काफ़ी थक गया हूँ, इसलिये अभी के लिये खुदा हाफ़िज।
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