आइए आज कुछ सपनों की बात करें, और उन सपनों को हकीकत में बदलते देखने के उस अहसास को भी महसूस करें। मैं जितेन्द्र चौधरी, आज बात करते हैं मेरे बचपन की, मेरे घुमक्कड़ी के सपने की।
1979 या 1980 की बात है, मैं 7वीं कक्षा में था। वो उम्र, जब दुनिया की हर चीज़ नई और रोमांचक लगती थी। एक दिन, यूं ही बाजार में घूमते-घूमते मेरी नज़र एक पोस्टर की दुकान पर पड़ी। वहां ढेरों पोस्टर थे, लेकिन उनमें से एक पोस्टर ने जैसे मुझे अपनी ओर खींच लिया। वो एक तस्वीर थी, जिसने मेरे अंदर कुछ बदल दिया। ये गोल्डन गेट ब्रिज का पोस्टर था, सैन फ्रांसिस्को का।
जैसे ही मैंने उसका दाम पूछा, मेरी आंखों में चमक थोड़ी कम हो गई – कीमत मेरी जेब खर्च से दोगुनी थी। लेकिन चाहत इतनी तीव्र थी कि मैंने जितने पैसे थे, वो दे दिए और पोस्टर को एक कोने में रखवा दिया। उस वक्त दिल में सिर्फ एक ही ख्याल था, “किसी भी तरह से इसे हासिल करना है।” घर जाकर खूब हंगामा किया, अपने बचत के सारे पैसे निकाले और जैसे-तैसे घरवालों से मदद मांगकर बाकी रकम जुटाई। आखिरकार, वह पोस्टर घर ले आया और मेरे कमरे की दीवार पर सबसे खास जगह, मेरी स्टडी टेबल के ठीक ऊपर टांग दिया।
अब वो सिर्फ एक पोस्टर नहीं था, वो मेरी रोज़ की प्रेरणा बन गया था। हर सुबह सबसे पहले उसे देखता, हर रात सोने से पहले उसी को निहारता। मैं खुद से कहता, “एक दिन मैं यहां ज़रूर जाऊंगा।” उस वक्त मुझे यह तक नहीं पता था कि यह ब्रिज किस देश में है, कहां है। फिर जब मैंने अपने अध्यापक को पोस्टर दिखाया, तो उन्होंने बताया कि यह तो अमरीका में है। उस दिन मुझे पहली बार एहसास हुआ कि यह सपना पूरा करने का सफर आसान नहीं होगा, लेकिन उस पोस्टर को देखने के बाद मेरे इरादे और भी मजबूत हो गए।
वो पोस्टर मेरे बचपन का सबसे बड़ा सपना बन गया। रोज़ उसके सामने खड़ा होकर खुद से वादा करता था कि एक दिन इस ब्रिज के सामने मैं हकीकत में खड़ा होऊंगा। समय बीतता गया, सपने बदलते गए, लेकिन गोल्डन गेट ब्रिज की वो छवि मेरे दिल में अटल रही। जीवन के तमाम उतार-चढ़ावों के बीच भी वो सपना हमेशा मेरे साथ था, मेरी प्रेरणा बना रहा।
फिर आया 2016, जब आखिरकार मैं सैन फ्रांसिस्को पहुंचा। जिस दिन मैंने पहली बार गोल्डन गेट ब्रिज को अपनी आँखों से देखा, वो पल जीवन के सबसे खास पलों में से एक था। मैं वहीं खड़ा था, ठीक उसी ब्रिज के सामने, जो कभी मेरे बचपन का सपना था। आँखों में आंसू थे, लेकिन वो आंसू खुशी के थे, गर्व के थे। उस वक्त मुझे लगा कि ये सिर्फ एक यात्रा नहीं थी, ये उस सपने को साकार होते देखने का अनुभव था, जिसे मैंने सालों तक दिल में संजोए रखा था।
सपने देखना आसान है, लेकिन उन्हें हकीकत में बदलना – उसकी खुशी का कोई मोल नहीं। उस दिन जब मैं ब्रिज के सामने खड़ा था, तो जैसे मेरा सारा बचपन मेरी आँखों के सामने घूम गया। वो पोस्टर, वो बचपन की ज़िद, वो हर सुबह की प्रेरणा – सब कुछ जैसे सच हो गया था। गोल्डन गेट ब्रिज अब सिर्फ एक पुल नहीं था, वो मेरे बचपन, मेरे संकल्प, और मेरी जीत का प्रतीक बन चुका था। जब आपके सपने पूरे होते हैं, तो वो आपको एक नई ऊर्जा, नई शक्ति देते हैं। वो पल आपको एहसास दिलाते हैं कि सपने केवल देखने के लिए नहीं होते, उन्हें जीने के लिए होते हैं।
आपके भी कुछ घुमक्कड़ी के सपने होंगे, लिखिए उनके बारे में। आशा करता हूँ कि आपको लेख पसंद आया होगा। लेख पढ़ने के लिए शुक्रिया। घुमक्कड़ी का सफ़र यूँ ही जारी रहेगा, मेरे हमसफ़र बनने के लिए , मुझे फॉलो करना मत भूलिएगा। मेरी वॉल पर सारे पुराने लेख/रील्स, ज्यादा फ़ोटो के साथ, मिल जाएंगे। आपकी आलोचना, राय, सुझाव और टिप्पणियों का हार्दिक स्वागत है।
Photo : San Francisco 2016
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