गंगा यात्रा : उद्गम से समागम की यात्रा

भारत की सबसे पवित्र नदी गंगा, जो हिमालय के गौमुख ग्लेशियर से निकलकर, 2500 किलोमीटर का सफ़र तय करते हुए, उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल होते हुए, कुछ समय बांग्लादेश से गुज़रते हुए, सुन्दरवन की रास्ते, गंगा सागर में समुन्दर से जाकर समाहित होती है। आज इसी सफर पर चलते हुए, इसके किनारों पर बसे शहरों और महत्वपूर्ण स्थानों की बात करते हैं।

गौमुख : उत्पत्ति स्थल, यहॉं से गंगा नदी अपना लंबा सफर आरम्भ करती है, छोटी सी धारा, ग्लेशियरों से निकलकर, गौमुख पर अवतरित होती है। गोमुख तक पहुँचने का रास्ता कठिन है, लेकिन वहाँ का दृश्य विहंगम है, जरूर देखिए।

गंगोत्री : माँ गंगा का विशाल मंदिर और हमारे चार धाम का पहला और अत्यंत जरूरी पड़ाव। लाखों श्रद्धालु यहॉं के साफ़ सुथरे पानी में डुबकी लगाकर अपने पापों का प्रायश्चित करते हैं।

जोशीमठ : खूबसूरत हिल स्टेशन, गंगा का पहला बड़ा पड़ाव। यहाँ भी गंगा अठखेलियों करती हुई सरल धारा के रूप में दिखाई देती है।

रुद्रप्रयाग : यहॉं पर मंदाकिनी और अलकनंदा नदियाँ, गंगा की सहज धारा में मिलकर इसको एक विशाल नदी का रूप देती हैं। यहाँ से गंगा का विशाल रूप दिखना शुरू होता है।

ऋषिकेश : गंगा हिमालय से उतरकर पहली बार मैदानों का रुख करती है, यहाँ पर पहली बार गंगा के पारदर्शी पानी में, पहाड़ों के खनिज घुलने लगते हैं, जो इसके जल को जीवनदायिनी बनाते हैं।यहॉं पर गंगा का विशाल और विकराल रूप दिखना शुरू होता है। ऋषिकेश में गंगा किनारे की संध्या आरती जरूर देखें। यह एक अलौकिक अनुभव है।

हरिद्वार : धार्मिक राजधानी हरिद्वार में गंगा पहली बार, मैदानों में उतरती है। यहॉं तक गंगा का पानी पूर्णतः स्वच्छ है।दरअसल यहॉं से आगे की यात्रा में गंगा के पानी में शहरों और औद्योगिकीकरण का कचरा गिरने लगता है।इसकी शुरुआत हरिद्वार के बाहरी इलाके से ही होती है।

उत्तर प्रदेश में आगमन : हरिद्वार से चलकर , गढमुक्त्तेश्वर, बिजनौर होते हुए गंगा इत्र नगरी कन्नौज पहुँचती है। अब तक गंगा में खनिज के साथ साथ विषाक्त कचरा भी मिलने लगता है।लेकिन प्रवाह में प्रदूषण उतना नहीं घुल पता, इसकी असली परीक्षा अगले शहर में होनी है।

कानपुर : उत्तर प्रदेश का सबसे बड़ा औद्योगिक शहर, मेरा जन्म स्थान, यहॉं पर गंगा के पानी में सबसे ज्यादा प्रदूषण मिलता है। सरकारें आई और गई, गंगा साफ़ नहीं हुई, सभी शहरों ने बस इतना किया कि अपना कचरा, गंगा के शहर प्रवेश द्वार के स्थान की बजाय , शहर छोड़ने की जगह डाल दिया। अब अगला शहर झेले इस प्रदूषण को। कानपुर के चमड़ा उद्योग का, इस प्रदूषण में, सर्वाधिक योगदान है।

प्रयागराज (इलाहाबाद) : कुम्भ नगरी में गंगा, यमुना और सरस्वती नदी का मिलन स्थल। आस्था का स्थान प्रदूषण से ऊपर है, इसलिए लाखों लोग गंगा में डुबकी लगाते हैं। दरअसल गंगा की तेज धारा प्रदूषण पर भारी पड़ती है। फिर तीन नदियों का संगम अपने आप में एक अद्भुत नजारा है।

वाराणसी : धार्मिक नगरी, भगवान शिव की नगरी, यहाँ के अद्भुत घाट, मौज मस्ती वाली जीवनशैली और शानदार खान पान आपका मन मोह लेगा। लोग मनमौजी हैं, गाली गलौज यहाँ की प्यार वाली भाषा है, अगर कोई आपको गाली दे बुरा मत मानिएगा, ये आपस में भी ऐसे बात करते हैं। शानदार मंदिर और गंगा आरती जरूर देखियेगा।

पटना : वर्तमान में बिहार प्रदेश और पौराणिक मौर्य साम्राज्य की पाटलीपुत्र राजधानी। भाषा यहाँ बदलने सी लगती है। यहाँ के लोग अत्यंत मेधावी, मिलनसार, सरल और मृदुभाषी होते हैं। यहाँ का लिट्टी चोखा जरूर ट्राई करियेगा।

मुंगेर : मुंगेर एक जरूरी पड़ाव है, यहॉं पर सोन नदी, गंगा में आकर मिलती है।

कोलकाता : अब गंगा अपने आखिरी पड़ाव पर पहुँचने वाली है, आखिरी बड़ा शहर, अंग्रेजों की पुरानी राजधानी और विविधता से भरा शहर।

सुन्दरवन : दुनिया का सबसे उपजाऊ नदी वाला डेल्टा और बंगाल टाइगर रिजर्व स्थान।

गंगासागर : बंगाल की खाड़ी में, गंगा सागर अंतिम स्थान है जहाँ गंगा अपने सागर समागम को मिलती है। 2500 किलोमीटर की लंबी यात्रा करके, गंगा समुंदर में समाहित होती है। गंगा पूरे संसार में सबसे पवित्र नदी मानी जाती है, इसके किनारे पर लाखों लोग रहते हैं, ये सचमुच भारत के लोगों के लिए जीवनदायिनी है। इस तरह गंगा की उद्गम से सागर समागम की यात्रा यहाँ समाप्त होती है।

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