आजकल देश के पूरे राजनीतिक माहौल मे एक मुद्दा, १२३ एग्रीमेन्ट या दूसरे शब्दों मे कहे तो अमरीका के साथ परमाणु समझौता का मुद्दा ही छाया हुआ है। संसद से लेकर सड़क तक, चर्चा मे यही मुद्दा गर्माया हुआ है। कल टीवी पर इसी मुद्दे पर सांसदों के बचकाने और बेवकूफ़ाना बयान देखकर लग रहा था कि इनको अभी ना तो इस समझौते के बारे मे पता है और ना ही इन्होने इसका मसौदा पढा है। सत्ता वाले इसके पक्ष मे इसलिए गा-बजा रहे है क्योंकि इनको कहा गया है और विपक्ष वाले, वो भी इसलिए कर रहे है कि उन्हे कुछ ना कुछ तो करना ही है।
सबसे सही बात तो ये लगी कि इनमे से शायद ही किसी सांसद/विधायक को पता हो, कि भारत मे कितने परमाणु रिएक्टर है, कितने चालू है कितने बन्द पड़े है। ना ही इनको यह पता होगा कि १२३ एग्रीमेन्ट कितने पन्नों का है और शायद ही इनमे से किसी को हाइड एक्ट के बारे मे पता हो। मजा तो तब आता है जब बड़ी बड़ी राजनैतिक पार्टी के नेताओं से जब पूछा जाता है कि इस समझौते के क्या मायने है तो ये सभी लोग बगलें झाकते हुए, गोल-मोल जवाब देने लगते है। मेरे विचार से तो सभी टीवी चैनलों को इन सारे नेताओं के बयान रिकार्ड कर लेने चाहिए, फिर एक साथ दिखाने चाहिए, सवालों की फेहरिस्त हम दे देंगे।अच्छा खासा कामेडी का कार्यक्रम बन जाएगा।
ऐसा नही है कि विपक्ष वाले ही सिर्फ़ ऐसे पैदल है, सत्ता पक्ष मे भी किसी भी सांसद/विधायक को पकड़ लो, उससे पूछ लो कि भैया इससे क्या फायदा होगा, वो रटा रटाया जवाब देगा कि देश इससे आत्मनिर्भर हो जाएगा। लेकिन कैसे? इससे आगे ना वो बताने को राजी है और सच पूछो तो उसे भी नही पता। सबसे मजेदार स्थिति तो लेफ़्ट पार्टियों की है, वे इस मुद्दे को ना तो निगल पा रहे है और ना ही उगल पा रहे है। बेचारे बड़ी मुसीबत मे फंसे है। इनमे से किसी से पूछो कि अगर सरकार ने आपकी बात नही मानी, तो क्या आप समर्थन वापस लोगे? तो बेचारों की बोलती बन्द हो जाती है। अगर कुछ उल्टा सीधा बोले तो ज्योति बसु/कामरेड सुरजीत हड़काएंगे, समर्थन किया तो वोटबैंक नाराज हो जाएगा, और यदि चुप रहे तो, पत्रकार चुप रहने दे तब ना, वे तो सवाल कर कर के जान खा जाएंगे। ले देकर एक ही जवाब होता है, हम विचार करेंगे…..सोचेंगे और पार्टी निर्णय लेगी।
अब ये सांसद/विधायक जानकारी कहाँ से जुटाएं, ये तो भला हो विदेश मंत्रालय का जिसने अपनी वैबसाइट पर इस पूरे समझौते के सहमति वाले प्वाइन्ट (क्लिक करने से पहले ध्यान दें, यह एक पीडीएफ़ डाक्यूमेन्ट है।) उपलब्ध कराए। मेरे विचार से जितने भी राजनीतिज्ञ इस मुद्दे पर हल्ला मचा रहे है उन सभी को इस डाक्यूमेन्ट को ध्यान से पढना चाहिए, बिन्दुवार और उसके बाद ही अपना मुँह खोलना चाहिए, यही देश-हित मे होगा, और शायद उनके राजनैतिक कैरियर के भी।
Leave a Reply