आज 09/09/09 है। यानि कि नौ सितम्बर दो हजार नौ। एक ऐसा दिन जो दोबारा मेरी जिन्दगी मे नही आएगा। वैसे आज का दिन कुछ खास भी है, क्योंकि आज के दिन ही मै पैदा हुआ था। अब कितने साल का हो गया, ये मत पूछना, मै शरमा जाऊंगा। वैसे दिल से तो मै अभी भी स्वीट सिक्स्टीन ही हूँ। ये आप लोगों का प्यार है तो जो मुझे सदा जवां रहने की प्रेरणा देता है।
एक शुकुल है जो हमारे बारे मे ढेर सारी अफवाहें उड़ाता रहता है, जिसमे से एक अफवाह ये है कि हम बड़े कलाकारी व्यक्ति है। ये तो शुकुल की आंखों का भ्रम है, शायद (उसके) बुढापे के कारण आंखो मे मोतियाबिंद उतर आया होगा, इसलिए ऐसी गलत सलत खयालात दिमाग मे आ गए होंगे। वैसे मै कोई कलाकार वगैरहा नही हूँ, इसलिए आप शुकुल के बहकावे मे ना आएं। अगर आ गए, तो रिस्क आपका। अब मै कोई महान आत्मा तो हूँ नही जो मेरी जीवनी लिखी जाए, इसलिए ये काम भी हम गाहे बगाहे स्वयं करते रहते है। अलबत्ता शुकुल ने दो एक बार जीवनी लिखने के नाम पर मेरी ढेर सारी खिंचाई की थी, आप उसके ब्लॉग पर जरुर पढना और खुद डिसाइड करना उसने दोस्ती निभायी है या ….। इंशा अल्लाह ऐसे दोस्त हो तो बाकी…. किसी चीज की जरुरत ही क्या।
मेरी जन्मदिन की यादों मे मुझे याद आता है कि आज का दिन विशेष हुआ करता था, आज के दिन घर मे मेरी पसंद का खाना बनता था, काफी कुछ पकवान वगैरहा बनते थे। जिसको हम सबसे पहले अनाथालय और मंदिर के बाहर बैठे भिखारियों को खिलाते थे। उस जमाने मे बर्थडे केक नाम की चीज नही हुआ करती थी, होती भी होगी, हमारे घर मे ये परम्परा नही थी। अलबत्ता मेरे इसरार करने पर मम्मी आटे का हलवा बनाती थी, जिसको हम चम्मच से काटकर खुश हो लिया करते थे। जन्मदिन पर हमारे लिए छूट थी कि हम चाहें तो स्कूल जाए अथवा ना जाएं, जाहिर है, हम स्कूल नही जाना ही पसन्द करते थे। आज के दिन खेलने के नाम पर भी हमे जल्दी आवाज नही दी जाती थी। अब अगर हम स्कूल नही जाते तो जाहिर है टिल्लू और धीरू भी स्कूल नही जाते, तीनो मोहल्ले मे धमाचौकड़ी मनाते। काश! फिर लौट आएं तो पुराने दिन। इसके अलावा आज के दिन मोहल्ले वालों की शिकायत पर भी कोई कान नही देता था। अब जन्मदिन वाले दिन बच्चें को पीटना कोई अच्छी बात थोड़े ही है।
ऐसे कई जन्मदिन आते गए, हलवे बनते रहे। माताजी के गुजरने के साथ साथ हलवा बनने की प्रक्रिया तो समाप्त हो गयी, लेकिन गाहे बगाहे परिवार वाले केक कटवाते रहे, इस बार मैने केक भी ना काटने का निर्णय लिया है। जन्मदिन पर मै अनाथालय और वृद्द आश्रम जरुर जाता हूँ और यथाशक्ति अपना सहयोग कर आता हूँ। ये आदत आजतक कायम है और ईश्वर करे हमेशा जारी रहे। हमारे स्वर्गीय चाचाजी ने ये आदत डलवायी थी, उनका मानना था जन्मदिन की पार्टी करना घोर अपराध है, उतने पैसे मे ना जाने कितने गरीबों का भला किया जा सकता है। इसलिए हम लोग भी (भले डर के मारे) चाचाजी की हाँ मे हाँ मिलाते हुए, जन्मदिन की पार्टी मनाने की जिद नही करते थे। वैसे भी आजकल जब भी कोई हमसे जन्मदिन की पार्टी मांगने की जिद करता है तो हम चाचाजी वाला रिकार्ड सुना देते है, लेकिन दोस्त यार और घरवाले मानते थोड़े ही है। कंही ना कंही कुछ खिचड़ी पक रही होगी, शाम को ही पता चलेगा।चलिए जी, अब लेख को यही समेटते है, यादें तो कभी खत्म नही होंगी, फिर बैठेंगे कभी यादों का पुलिन्दा लेकर। आते रहिए पढते रहिए, आपका पसन्दीदा ब्लॉग।
जाते जाते : जन्मदिन की गिफ़्ट
इस बार बच्चों ने जिद करके इस जन्मदिन पर हमारा मोबाइल नोकिया N70 विदा करवाया। अब हम ठहरे नोकिया प्रेमी इसलिए नोकिया का E71 (देखें नीचे वाला चित्र) खरीदवाया गया। इस तरह से एक जिन्दगी एक मोबाइल वाला सिद्दांत खत्म, आज से नोकिया E71 का प्रयोग शुरु। इस प्यारी गिफ़्ट के लिए बच्चों को ढेर सारा प्यार।
From MeraPannaPhoto |
फोटो सौजन्य से :Urbanmixer at Flickr
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