सिंधु घाटी सभ्यता की सीरीज में आपका फिर से स्वागत है, आशा है आप विषय को पसंद कर रहे होंगे। मेरा मानना है हमे अपने इतिहास के बारे में जानने का पूरा हक है, भले ही हमे उसके बारे में आधा सच बताया या पूरा छुपाया गया हो। अगर इतिहास की बात करें तो हमारे यहॉं सारी किताबें मुगलों से शुरू होकर उनके काल तक ही समाप्त हो जाती हैं, गोया कि हमारी कोई अपनी सभ्यता ही नहीं थी, इसी उपेक्षा ने मुझे और मुझ जैसे हज़ारों लोगों को अधिक से अधिक पढ़ने और शोध करने के लिए प्रेरणा दी, जिसका रिजल्ट ये सीरीज है। मेरी कोशिश है कि गूढ़ से गूढ़ विषयों को सीधी साधी भाषा में पाठकों तक पहुंचाया जाए, बाकी जिसकी जिज्ञासा और जगे, वो उस पर विस्तृत गहन कर सके। यदि इस सीरीज से मैं कुछ लोगों को भी आगे शोध करने और इन सभ्यताओं के अवशेषों को विजिट करने के लिए प्रेरित कर सका, तो मैं अपना प्रयास सफल समझूँगा। अब तक हमने सिंधु घाटी सभ्यता की निम्न बातों पर विचार किया :
1. प्रस्तावना
2. आरंभ
3. सामाजिक व्यवस्था
4. खोज का इतिहास
अब आगे चलते हैं। आज हम बात करते हैं सिंधु घाटी सभ्यता की रहस्यमय लिपि की।
हडप्पा और मोहेनजोदाड़ो जिसे हम सिंधु घाटी सभ्यता के नाम से जानते है, सबसे पुरानी और विकसित सभ्यता थी। जितनी सम्पूर्ण और विकसित इनकी दुनिया थी, उससे भी कंही ज्यादा परिपक्व इनकी भाषा लिपि थी। लेकिन अफसोस, आज तक इनकी लिपि को कोई भी पूरी तरह से डिकोड नहीं कर सका। इंडस स्क्रिप्ट का इतिहास और अध्ययन दुनिया भर में उत्कृष्ट रहा है, लेकिन इसे समझना और पढ़ना आज भी एक बड़ी चुनौती है।आज भी हम इस लिपि को डिकोड नहीं कर सके हैं। इस स्क्रिप्ट के बारे में कई विवाद और सवाल उठे हैं। कुछ विश्वविद्यालयों और अनुसंधान संस्थानों में तो इसके अध्ययन का कार्य अभी भी जारी है। इसमें कुछ महत्वपूर्ण प्रगति हुई है, लेकिन इसे पूरी तरह से समझना अभी बाकी है।
यह लिपि पूरी तरह से चित्र आधारित है, इसमे अब तक लगभग 4000 लिपि चित्र मिले हैं, जिनका अर्थ हर जगह अलग अलग है। कुछ अद्वितीय (Unique) चित्र लगभग 500 हैं। सबसे बड़ा वाक्य या चित्र समूह 34 चित्रों का है और औसत वाक्य 4.5 चित्रों का। अभी तक, कोई भी बड़ा लेख नहीं मिल सका है। एक विशेष चुनौती यह है कि इंडस स्क्रिप्ट का कोई व्यावसायिक उपयोग नहीं हुआ है, इसलिए इसके अक्षरों, चित्रों और शब्दों का मतलब समझना और इसे अनुवादित करना बहुत मुश्किल है।
आखिर समस्या कहाँ है?
किसी भी भाषा को समझने के लिए उसकी कुंजी की आवश्यकता होती है, ये कुंजी कोई चाभी नहीं होती, बल्कि एक कोई शिलालेख, पत्र या कोई तामपत्र होता है, जिसमें एक से ज्यादा भाषाओं में एक समान चीज लिखी होती है। उदाहरण के लिए जब हम किसी पुरातात्विक स्थल पर जाते हैं, उस स्थल के बारे में जानकारी कई भाषाओं में किसी पत्थर पर अंकित होती है। जिसको जो भाषा आती है, वो उसमे पढ लेता है। ऐसी ही कुंजी से समाधान निकल सकता है। 1798 में नेपोलियन की सेना ने मिश्र पर आक्रमण किया, उनके सैनिकों को रोसेटा नामक शहर में एक किले की खुदाई में एक शिलालेख मिला, जिसमें एक ही पैराग्राफ तीन भाषाओं (प्राचीन मिश्र चित्र लिपि, मिश्र की बोलचाल वाली भाषा और ग्रीक भाषा)। यकीनन यह एक बड़ा ख़ज़ाना था, इसको रोसेटा स्टोन कहा गया। अब ग्रीक भाषा लोगों पहले से को आती थी, उसके द्वारा मिश्र की प्राचीन भाषा को डिकोड किया गया। सिंधु घाटी सभ्यता के लिए कोई भी रोसेटा स्टोन नहीं मिला अभी तक। यदि ऐसी कुंजी कंही से अगर मिल जाए तो हमारी महान सभ्यता के गहरे रहस्यों से पर्दा उठ सकता है।
विवाद
सबसे पहले तो यह पता करना था कि यह भाषा बायें से दाएँ (हिंदी) या दाएँ से बाएँ (ऊर्दू) लिखी जाती थी। क्योंकि अभी तक जो भी मिला है ये मोहरें ही मिली हैं, कुछ मोहरों में बाएं में जगह कम बचने के कारण अगली लाइन पर लिखा गया है, इसलिए अंदाजा ये लगाया जा रहा है कि, ये लिपि दाएँ से बाएँ लिखी जाती थी। इसके विरोध में ये कहा जाता है, चूंकि ये सभी मोहरे थी, और उनका प्रतिबिंब ही बर्तनों और वस्तुओं पर अंकित होता था, इसलिए ये मानना है कि लिपि दाएँ से बाएं है, ये कहना जल्दबाजी होगी।
दूसरा विवाद है कि ये भाषा इंडो-यूरोपियन (जैसे संस्कृत) अथवा द्रविड़ियन परिवार (तमिल) की है। दोनों पक्षों के अपने अपने तर्क है। दोनों पक्ष अपनी अपनी थ्योरी से शोध कर रहे हैं। लेकिन मेरा व्यक्तिगत विचार है कि आप निष्पक्ष रूप से शोध करे, ना कि पहले आप डिसाइड कर लो, फिर उसी अनुसार अपने तथ्य ढूंढो और दूसरे वाले तथ्यों को इग्नोर करो।
हम जानना क्या चाहते हैं?
सिन्धु घाटी सभ्यता के ढ़ेर सारे सवाल अनुत्तरित है, जैसे
ये लोग कौन थे,
कैसे इन्होंने व्यवस्था बनाई,
उस समय की तकनीक कैसी थी,संचार व्यवस्था, शासन व्यवस्था और वास्तुकला ज्ञान कहाँ से आया ?
जब इतने मेधावी लोग थे तो, ऐसा कैसे हुआ कि आने वाली पीढ़ी के लिए कुछ इतिहास नहीं लिखकर गए,
फिर अचानक ये लोग कहाँ चले गए,
किन परिस्थितियों में उनको जीना या पलायन करना पड़ा।
क्या कोई विदेशी आक्रमण हुआ था,
क्या आर्यन वाली थ्योरी सही है?
इन सारे सवालों के जवाब हमे सिंधु घाटी सभ्यता की भाषा में मिलेंगे। जितना मैंने पढ़ा है, उसके अनुसार मैं निश्चित तौर पर कह सकता हूँ कि इस सभ्यता के लोगों ने कुछ ना कुछ जरूर लिख रखा होगा, जो उत्खनन हुआ है, अभी वह सिर्फ़ हमारी जिज्ञासा बढ़ाने के लिए है, अभी और ख़ज़ाना मिलना बाकी है।
आगे का रास्ता
मेलुहा लोगों का व्यापार मेसोपोटामिया और चीन की सभ्यताओं से होता था, उनके इतिहास में काफी कुछ मिल सकता है, जो सिंधु घाटी के उत्खनन से मेल खा सकता है। कुछ शब्द होंगे जो दूसरी सभ्यताओं से लिए गए होंगे, कुछ तामपत्र, कुछ और शिलालेख, कुछ और वस्तुएं मिल सकती है जिससे आगे की राह आसान होगी। AI के आने से हमे कुछ और शोध करने में आसानी होगी, क्योंकि नई तकनीक से ही पुरानी सभ्यता का रास्ता निकलेगा। निष्पक्षता, प्रतिबद्धता और एकाग्रता से इस शोध को आगे बढ़ाने की आवश्यकता है।
हाल ही में, कुछ अनुसंधानकर्ताओं ने इस स्क्रिप्ट के कुछ तत्वों को समझने में सफलता प्राप्त की है। इससे आशा है कि आने वाले समय में हम इस स्क्रिप्ट को और अधिक समझेंगे और उसका अध्ययन तेजी से आगे बढ़ेगा। भविष्य में, इस स्क्रिप्ट को अधिक समझने के लिए अधिक अनुसंधान और उन्नत तकनीकी उपकरणों की आवश्यकता है। इससे न केवल हमारे पुराने समय के इतिहास को समझने में मदद मिलेगी, बल्कि हम कई रहस्यों से पर्दा उठा सकते हैं।
आज के लिए बस इतना ही, लेख को यहीं समेटते है। यदि आपको लेख पसंद आए तो इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों और ग्रुप में शेयर करिए, मेरे और लेखों के बारे में जानने के लिए, मुझे फॉलो करना मत भूलें।
Disclaimer : लेख में व्यक्त किए गए विचार, लेखक के व्यक्तिगत हैं जो विभिन्न स्त्रोतों से एकत्र की हुई जानकारी पर आधारित हैं।आधिकारिक विचारों से भिन्नता सम्भव है, इस लेख को जानकारी या जिज्ञासा के लिए पढ़े, अधिक शोध के लिए अपने स्वयं के स्त्रोतों पर निर्भर रहें।
चित्र : विकीपीडिया और अन्य सार्वजानिक स्त्रोतों से लिए गए हैं
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