सिंधु घाटी सभ्यता की खोज किसने की, ये भी काफी विवादित विषय है, इसके पहले समझते हैं थोड़ा बैकग्राउंड। साल 1827, ईस्ट इंडिया कंपनी में एक सैनिक हुआ करता था, नाम था जेम्स लुइस उर्फ चार्ल्स मेसन, अफगानिस्तान, पूर्व भारत और आखिरी में आगरा में तैनात था। इसका मन पुराने खजाने ढूँढने में लगा रहता था, इसलिए ये सेना से भाग गया और पूरे क्षेत्र में नाम बदल बदल कर खुदाई (उत्खनन) करता, पुराने ज़माने के सिक्के इकट्ठे करता। 1829 में, ये पहुंचा पंजाब के सहीवाल (अब पाकिस्तान में ), वहाँ पर खुदाई में उसको सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेष मिले, जिसका जिक्र उसने अपनी किताब में किया था। ये तो थी अनाधिकृत खोज। आइए आगे बात करते हैं।
साल 1856,लाहौर से कराची के बीच रेल्वे लाइन बिछाने का काम चल रहा था, हडप्पा के आस-पास के स्थानीय लोगों को पता था, यहाँ पर अच्छी किस्म की ईंटों का भंडार है, फिर क्या था जी, लूटपाट शुरू हुई, स्थानीय निवासियों से लेकर ठेकेदारों ने जम कर यहॉं से ईंटें चुराई, सरकारी निर्माण तक में उन ईंटों का प्रयोग हुआ। आप कह सकते हैं, भ्रष्टाचार हमारी रगों में बहुत पहले से है। किसी ने भी नहीं सोचा कि हम एक प्राचीन सभ्यता के अवशेषों को बरबाद कर रहे हैं। ये चोरी चलती रही, बार बार पूछे जाने लगातार अगले 5 सालों तक।
साल 1861, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग का गठन हुआ और अलेक्जेंडर कैनिंघम इसके डाइरेक्टर बनाए गए, उन्होंने भी खाना पूर्ति करी और इसको पुराने बौद्ध स्तूप माना और अपने रिकॉर्ड में लिखा। जो मोहरें मिली, उसको भारत से बाहर से आयी, करार देकर मामले को रफा-दफा किया गया। किसी की भी इच्छा नहीं थी कि इसकी तह में जाकर और जानकारी इकट्ठा करें। यहाँ पर अंग्रेजों की राजनीति भी हुई। ये विवादित विषय है, इस पर कई लोगों को मिर्ची लग सकती है, इसलिए उसको भी साइड करके आगे बढ़ते हैं।
साल 1904, जॉन मार्शल एएसआई के डायरेक्टर बने उन्होंने भी सर्वे किया और दया राम साहनी को हडप्पा उत्खनन का काम सौंपा। उसी समय मोहेनजोदाड़ो भी अस्तित्व में आया उसका जिम्मा डी आर भंडारकर और आर डी बनर्जी को दिया गया। 1923 में दोनों टीमों की रिपोर्ट मिली, उनका मिलान किया गया और पाया गया कि ये सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेष हैं, 1924 में आधिकारिक रूप से इसकी घोषणा हुई। कुल मिलाकर देखा जाए 1829 से 1924, पूरे 95 साल तक के ये संस्कृतिक धरोहर पूरी तरह से अनदेखी की गई, ना जाने कितना सामान लूटा गया और ना जाने कितना बर्बाद हुआ। आज अगर हम इस सभ्यता के बारे में आधी अधूरी जानकारी के साथ बहस कर रहे हैं, लेकिन वो 95 साल बहुत महत्वपूर्ण थे। शायद इतिहास हमे कभी माफ़ नहीं करेगा।
अब तक कितनी साइट मिली?
विभाजन के पहले 40 साइट मिली थी। अब तक कुल मिलाकर 1400+ साइट मिली हैं, उसके से 475 साईट पाकिस्तान में हैं और बाकी 925 भारत में। अब पाकिस्तान के पास खाने को पैसा नहीं, उत्खनन और शोध कहाँ से करेगा। अलबत्ता भारत में अभी भी उत्खनन और शोध जारी है। सिंधु घाटी सभ्यता की सबसे बड़ी साइट राखीगढी, हरियाणा में स्थित है। अभी बहुत कुछ मिलना बाकी है और ढ़ेर सारे रहस्यों से पर्दा उठना बाकी है।
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