पिछले लेखों में हमने सिंधु घाटी सभ्यता के विभिन्न विषयों पर बात की। यदि आपने वे लेख नहीं पढ़े तो, मेरे प्रोफाइल पर ढूँढे या नीचे वाले किसी हैशटेग पर क्लिक करें। आइए आज हम बात करते हैं, सिंधु घाटी की सामाजिक व्यवस्था की। दरअसल अब तक मोहेनजोदाड़ो के कुल 15% क्षेत्र का ही उत्खनन (excavation) हुआ है, जिसमें एक पूरा का पूरा शहर मौजूद है। सामन्यतः शहर दो ऊंचाइयों पर बसा हुआ था, उच्च क्षेत्र और निचला हिस्सा। ऊपर के हिस्से के , अक्सर पूर्वी क्षेत्र में एक किले (Citadel) के अवशेष मिले थे, नीचे के क्षेत्र में बाकी का शहर।
मकानों की बनावट, और क्षेत्र से इस बात का आसानी से अनुमान लगाया जा सकता हैं कि सिंधु घाटी सभ्यता में वर्ण व्यवस्था मौजूद थी लेकिन ये जाति आधारित ना होकर, कर्म आधारित थी। मुख्यतः कृषक, व्यापारी, व्यवस्थापक, कलाकार, शिकारी, मूर्तिकार और स्वर्णकार जैसे वर्ग थे। कुछ जगहों पर पहरेदारों के कमरे भी मिले हैं, लेकिन किसी राज व्यवस्था के कोई नामों निशान नहीं दिखते। समाज में सभी बराबरी का हक रखते थे। अलबत्ता आर्थिक रूप से कुछ लोग ज्यादा वैभवशाली थे, जैसा कि उनके अलग तरह के घरों से प्रतीत होता है।
किला चारो तरफ से ऊंची दीवारों से घिरा होता था, जो शायद बाढ़ से बचने के लिए था, ना कि किसी आक्रमण से बचने के लिए। किले में मूलतः अनाजों के भंडारण के गोदाम हुआ करते थे, जिन्हें अलग अलग कृषि उपज के हिसाब से वर्गीकृत किया गया था। किले के अंदर अन्न भंडारण मुख्यतः एक्सपोर्ट और प्राकृतिक आपदा के समय सामाजिक वितरण व्यवस्था के लिए किया जाता था। उस समय की सामाजिक वितरण प्रणाली से बहुत कुछ सीखने को मिल सकता है। दोनों क्षेत्रों में अलग अलग बाजार हुआ करते थे, कुछ विशिष्ट बाजार, लोगों के ठहरने की व्यवस्था और कुलीन समाज के लोगों के रहने का स्थान। कुल मिलकर बहुत ही व्यवस्थित और एकीकृत समाज था। किसी राजा या महल का कोई नामोनिशान नहीं दिखता, एक व्यक्ति की मूर्ति काफी स्थानों पर मिली, शायद वो एक पुजारी की है, इसमे भी काफी विवाद हैं।
धार्मिक विश्वास और मान्यताएं
सिंधु घाटी सभ्यता के लोग किसी धर्म विशेष को नहीं मानते थे, लेकिन प्रकृति के अनन्य उपासक थे। ये लोग पृथ्वी, जल, नभ,अग्नि, वायु, वृक्ष, पहाड़ और किसी अनजानी शक्ति को पूर्ण आस्था और सम्मान देते थे। कुछ स्थानों के अवशेष इस बात की ताकीद करते हैं। मोहेनजोदाड़ो में एक जल कुंड मिला है, जिसमें शायद पूजा आयोजित की जाती थी। इसने कुछ विवाद हैं, हम उनको दरकिनार करते हुए आगे बढ़ते हैं।इस जलकुंड के बारे में बात करते हैं, इसकी वॉटर प्रूफिंग इतनी वैज्ञानिक है कि आज भी लोग अचरज में कि हमारे पुरखे इतने विकसित थे। ऐसी ही ढेर सारी चीजों की वजहों से ही सिंधु घाटी सभ्यता की समकालीन सभ्यताओं में विशिष्ट पहचान थी.
समृद्ध नगर योजना का अद्भुत उदाहरण
भारतीय इतिहास में सिंधु घाटी सभ्यता का योगदान अत्यधिक महत्वपूर्ण है। लगभग 2500 से 1900 ईसा पूर्व के समय के दौरान, सिंधु घाटी क्षेत्र में निर्मित नगरों का योजनाबद्ध डिज़ाइन अकल्पनीय है, जो इस सभ्यता की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक संरचना को प्रकट करता है। घरों के निर्माण में एकरूपता थी, कंही कंही कुछ अलग तरह के घर थे, वो शायद विशिष्ट लोगों के घर थे। घर एक ब्लॉक की शक़्ल में हुआ करते थे, जिनके बीच से 10 फीट चौड़ी सड़क का रास्ता था जिनसे दो बैलगाड़ी आराम से निकल सकती थी। सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों के जल संसाधन प्रबंधन, संरक्षण और नियोजन में भी कुछ अनूठे प्रयोग किए थे।
जनसंख्या और रहन सहन
एक अजीब सी बात थी, गांवों का कोई नामों निशान नहीं मिला, सभी शहर ही मिले। शायद उस समय गाँव का कांसेप्ट नहीं था और लोग एक साथ एक जगह शहरों में रहते थे। इसलिए शहरों का विकास काफी व्यवस्थित तरीके से किया गया था।
नगर योजना:
सिंधु घाटी की नगर योजना एक उत्कृष्ट उदाहरण है। नगरों का योजनाबद्ध डिज़ाइन सड़कों, गलियों, वाटिकाओं और भवनों के विशेष अंतराल का ध्यान रखा गया था। इनके बनावट में एकरूपता आश्चर्य चकित करती है। नगरों की योजना उनके समृद्धि और सुरक्षा के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण थी। वहाँ के नगर शानदार तरीके से डिज़ाइन किए गए थे।उस समय ज्यामिति की इतनी अच्छी जानकारी, निसंदेह अचरज में डालती है। सबसे बड़ी बात ईंटों का प्रयोग बेहद शानदार है। उनका ईंटों का प्रयोग और सबसे बड़ी बात 1:2:4 का अनुपात काबिल ए तारीफ था। उनकी सड़कें, गलियां, और भवनों का अद्वितीय जाल था, उनमे समानता दिखती थी। यह समानता उस समय की तकनीकी प्रगति को दिखाता है। भवन निर्माण में रेत और लकड़ी का प्रयोग लाजवाब है।
साफ़ सफाई
सिंधु घाटी के लोग अपनी ताकत और कमजोरी को बखूबी पहचानते थे। भौगोलिक बनावट के अनुसार ही उन्होंने शहरों का निर्माण किया। हर घर में अलग से शौचालय की सुविधा, नालियाँ और उनकी भूमिगत निकासी (सीवरेज सिस्टम) आज भी प्रेरणास्रोत है। सबसे बड़ी बात, दो और बहु मंजिला इमारतों से भी नालियों की निकासी का विशेष ध्यान रखा गया था। ऊपर से नीचे की ओर बहती हुई नालियां, हर घर से निकली हुई, छोटी नालियों का गालियों की बड़ी नालियों से मिलना और उनका विस्तृत नेटवर्क और इन सभी का भूमिगत प्रबंधन अचरज में डालता है। इतनी शानदार सीवेज व्यवस्था दर्शाती है कि वो लोग साफ सफ़ाई के प्रति कितने जागरूक थे। भूमिगत सीवर सिस्टम पर तो आज भी शोध हो रहे हैं।
साधन सुविधाएं:
सिंधु घाटी सभ्यता में संसाधनों की पर्याप्त उपलब्धता थी। शहरों के निर्माण के लिए जल, रेता, मिट्टी, ईंट और लकड़ी के साथ उत्कृष्ट कारीगर भी उपलब्ध थे।यहॉं के लोगों को लकड़ी और कांसे के प्रयोग उच्च कोटि का था। सामुदायिक भवन, व्यापार केंद्र और यात्रियों के ठहरने की जगह, हर शहर में दिखती है। यह एक संपन्न सामाजिक सोसायटी की ओर इशारा करती है। इन सभी के स्थान और एकरुपता अचंभित करती है। ऐसा लगता है, किसी आर्किटेक्ट ने डिजाइन बनाकर बाकी सभी शहरों को वितरित किया और स्थानीय संसाधनों की उपलब्धता अनुसार उनका निर्माण किया गया।
समुदाय और सेवाएँ:
सिंधु घाटी समुदाय की सामाजिक और सांस्कृतिक विविधता थी। यहाँ विभिन्न वर्ग, भाषा, और व्यावसायिक समृद्धि का पूरा अनुभव होता था। सिंधु सरस्वती सभ्यता में समुदाय की अद्भुत एकता दिखाई देती है। उनका धर्म व्यापार था और एकता ही उनकी समृद्धि का एक सार था। यह सोच ही उनकी भौगोलिक, सांस्कृतिक और आर्थिक विकास का रहस्य था। वस्तु विनिमय सभी सेवाओं का आधार था। सभी किसान अपनी अनाज का एक बड़ा हिस्सा सामुदायिक भंडारण में देते थे, जिसका उपयोग सारी जनता मुसीबत के वक़्त करती थी। जो अतिरिक्त उपज होती थी उसको बड़े व्यापारी खरीदकर निर्यात करते थे।
जल संसाधन प्रबंधन:
सिंधु घाटी सभ्यता में जल संसाधनों के प्रबंधन पर विशेष ध्यान दिया जाता था। नगरों में स्थापित जल संरचनाएँ, सामुदायिक जल सेवाएं और जल संरक्षण के प्रयासों का सक्षम प्रमाण मिलता है। अकेले धौलावीरा में 18 जलकुंड मिले हैं, हर स्थान पर कुएं भी पाए गए हैं, बाकायदा इन कुओं की दीवारों पर टाइल्स देखी जा सकती है। उनकी जल संरचनाएं और सामुदायिक जल सेवाएं आज भी हमें उनकी उत्कृष्टता का प्रमाण देती हैं। पानी का संचय अद्वितीय था, जहाँ बारिश कम होती थी वहां संचय की सुविधा और जहां अधिक वहाँ पर बचाव के लिए बाँध। चूँकि कृषि आधारित अर्थव्यवस्था थी, इसलिए जल संस्थानों का कुशल प्रबंधन अनाज अधिक उत्पादकता में सहायक थी।
पशु पालन
सिंधु घाटी सभ्यता के लोग पशु पालन और उनका कृषि और घरेलु कार्यों में उपयोग करते थे। कांसे के कृषि यंत्र, लकड़ी के हल, बैलों से खेती और बैलगाड़ी से उपज का यातायात बहुत सुगम हुआ करता था। लकड़ी के पहिए का अविष्कार भी इनके समय हुआ था, इन बैलगाड़ियों को बाद में रथों की तरह प्रयोग किया गया। सबसे अचरज की बात ये है कि हर तरह के पशुओं का वर्णन मिलता है, लेकिन घोड़ों का कंही कोई उल्लेख नहीं दिखा। शायद सिंधु घाटी सभ्यता के लोग घोड़ों से अनभिज्ञ थे।
नगर प्रबंधन:
सिंधु घाटी सभ्यता में नगर प्रबंधन का व्यापक प्रणालीकरण था। नगरों में व्यवस्थित शासन, सुरक्षा, और सामाजिक न्याय की सुनिश्चितता के लिए एकीकृत प्रबंधन की व्यवस्था थी। कृषि आधारित व्यवस्था में अनाज का सुरक्षित भंडारण और निकासी व्यवस्था शानदार थी। सबसे अच्छी बात, हर शहर में प्रणाली लगभग एक जैसी थी, अलबत्ता कुछ स्थानीयकरण किया गया, लेकिन वो भी नाममात्र का। सब कुछ व्यवस्थित था, जैसे केंद्रीय प्रणाली हो, जिसको सभी शहरों में एक साथ, एक ही तरह से अमल में लायी गयी हो।
सिंधु घाटी सभ्यता का इतिहास हमें एक उत्कृष्ट नगर योजना, सामुदायिक संरचना और सामूहिक सेवाओं का जबरदस्त उदाहरण पेश करता है और विकसित, समृद्ध, और समृद्ध नगरों के लिए एक अद्वितीय मानक स्थापित करता है। इस सम्बंध में आपके यदि कोई सवाल हों तो टिप्पणी में जरूर लिखें, मैं पूरी कोशिश करूंगा, हो सकता है आपके सवालों से कुछ नया आयाम निकले और देखने सीखने को मिले।
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