लंदन के ब्रिटिश म्युजियम में मुझे एक बुजुर्ग अंग्रेज मिला था, जब उसको पता चला कि मैं कानपुर से हूँ और सिंधी हूँ तो ठेठ अवधी में शुरू हो गया, वो यूपी की पैदाइश था और पाकिस्तान के दादू में नौकरी कर चुका था। उसको सिंधी भी अच्छी आती थी कम से मेरे से ज्यादा अच्छे ‘डायलेक्ट’ के साथ। उसने मुझसे पूछा कि मोहनजोदाड़ो का क्या मतलब होता है? मैं अचकचा गया, कि सिंधी होते हुए भी, मुझे सिंधु घाटी सभ्यता के बारे में, कुछ नहीं पता था। उसने बताया कि ये मोइन-जो-दड़ो है, मतलब मरे हुए लोगों का टीला। उसने काफी कुछ बताया था, जो हमने इतिहास की क्लास गोल करके मिस किया था।
मोहेंजोदड़ो की सभ्यता बहुत विकसित थी, उनकी तकनीक काफी उन्नत थी, आज से 4500 साल पहले ईंट के मकान, वो भी शानदार किस्म के, बनाने की कल्पना भी नहीं की जा सकती। शहर की प्लानिंग, पानी की निकासी और संचय का सिस्टम, किसी भी बड़े शहर के लिए प्रेरणा है।
यहाँ की मिट्टी में छिपी हुई कहानियाँ, गलियों के कोनों में भटकते हुए, अब भी महसूस होता है कि हमारे पुरखे कितने उन्नत थे।उसकी बातों से मैं भी कल्पना करते हुए, ईसापूर्व ज़माने की सैर कर आया। सिंधु नदी के किनारे स्थित इस व्यवसायिक नगरी में प्राचीन सभ्यता की कहानी छुपी है। अभी भी इस पर शोध अधूरा है।
उसके बाद मैंने बाकायदा सिंधु घाटी सभ्यता पर काफी अध्ययन किया, अलबत्ता पाकिस्तान जाने का कोई चांस नहीं है, फिर भी उम्मीद करता हूँ, एक दिन जरूर जाऊँगा।
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