मै अभी रवि भाई के दसवीं अनूगूँज के विषय “एक पाती” पर लिखने का मन बना ही रहा था कि इन्टरनैट पर महावीर शर्मा जी की एक कविता दिख गयी, जो मुझे काफी अच्छी लगी. इस कविता के कुछ अंश आपके लिये भी हाजिर है.

ससुराल से पाती आई है !
बहुत हुए मैके में ही, सच तनिक न तबियत लगती है
भैया भाभी सो जाते हैं, लेकिन यह विरहन जगती है
कमरे की बन्द किवाङों से, मीठे मीठे स्वर आते हैं
वे प्यार की बातें करते हैं, अरमान मेरे जग जाते हैं
विश्वास करो मैं ने रातें तारों के साथ बिताई हैं
ससुराल से पाती आई है !
चिट्ठी के मिलते ही प्रियतम, पहली गाङी से आ जाना
छत पर चढ़ बाट निहारूंगी , आने पर खाऊंगी खाना
बस अधिक नहीं लिख सकती हूं , इतने को बहुत समझ लेना
त्रुटियां चिट्ठी में काफ़ी हैं, साजन न ध्यान उन पर देना
हे नाथ तुम्हारी दासी ने आने की आस लगाई है ।
ससुराल से पाती आई है !
महावीर भाई को बहुत बहुत धन्यवाद, बहुत सुन्दर और मजेदार कविता लिखी है.
इस कविता को पूरा यहाँ पर पढें.
और हाँ मेरी पाती अभी उधार रही, मै जल्द ही अपनी प्रविष्टि लिखूंगा
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