आज दिल व्यथित है, बहुत ज्यादा। कुछ चिट्ठेकारों द्वारा नारद संचालकों की निन्दा किए जाने और अनर्गल आरोप लगाने के बाद और कुछ लोगों द्वारा उसको बढावा दिए जाने के बाद। आज मै आत्मचिन्तन करने पर मजबूर हो गया हूँ, कि आखिर हम इतना सब किसके लिए कर रहे है, ऐसे लोगों के लिए, जिन्हे इतनी समझ नही कि वे अपनी मनमानी ना होने पर, किसी की भी बेइज्जती करने से ना चूकें या उनके लिए जो इन लोगों को परोक्ष रुप से उकसा रहे है या फिर उनके लिए जो मूकदर्शक बने सब कुछ देख रहे है। सवाल तो कई है, लेकिन जवाब अभी नही मिल सके है। ये खुला पत्र बहुत बेतरतीब लिख रहा हूँ, शायद मै शब्द ही नही ढूंढ पा रहा हूँ।
हमने जब नारद शुरु किया था तब लोगों ने विश्वास की भावना थी, लोगो ने काम करने की लगन थी, एक दूसरे की इज्जत थी और सबसे बड़ी बात आपसी समझ थी। किसी भी मुद्दे पर हम खुलकर सामने आते थे। कई बातों पर हम सहमत नही भी होते, लेकिन सामूहिक बात पर हमेशा एक दूसरे का साथ देते। नारद की साइट बनाकर और सफलतापूर्वक चलाकर, हमने दिखा दिया कि हाँ ऐसे सामूहिक प्रोजेक्ट भी सफ़ल हो सकते है। अपने दिन का चैन और रातों की नींद, घर परिवार की लानते पाकर भी टीम नारद ने इस प्रोजेक्ट को बनाया। क्या यह साइट बनाने मे किसी एक व्यक्ति या टीम का हित था?
नारद हमेशा सही निर्णय करे ये सम्भव नही। एक अकेले व्यक्ति का निर्णय कभी कभी गलत भी हो सकता है, इसी वजह से मै हमेशा सामूहिकता का पक्षधर रहा हूँ। इसी वजह से मै निर्णयों मे सभी को शामिल करने की वकालत करता रहा हूँ। हमने कोशिश की भी। नारद के निर्णयों से कोई जरुरी नही कि नारद सभी सहमत हो, लेकिन यदि आलोचना की भी एक सीमा होती है। और पक्षपात का आरोप तो कतई सहन नही किया जाएगा।
आज के माहौल मे मुझे नही लगता कि सामूहिकता नाम की कोई चीज बची है। हर व्यक्ति के मन मे जो आता है बोल देता है, बिना कुछ आगा पीछा सोचे। मेरे विचार से, अपनी निजी व्यस्तताओं के बावजूद, नारद पर मैने सबसे बहुत ज्यादा समय दिया है। लेकिन इन सब बातों को नए लोगों को कोई सरोकार नही। हमने अपना काम कर दिया है, आगे भविष्य के कर्णधार आकर दिखाए कि उनमे कितना माद्दा है।
आज मै बहुत गम्भीरता पूर्वक नारद और अक्षरग्राम से सम्बंधित दूसरे प्रोजेक्ट्स से हटने की सोच रहा हूँ।
आत्म मंथन जारी है…….जल्द ही किसी निर्णय पर पहुँचता हूँ।
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