वाराणसी – संस्कृति, आस्था और जीवन का संगम

बनारस….. जिसका नाम लेते ही आँखों के सामने गंगा किनारे के विशाल घाट, संकरी गलियाँ और अद्वितीय आध्यात्मिक माहौल और बनारसी खानपान उभर आता है। बनारस केवल एक शहर नहीं, बल्कि जीवन की एक गहराई है ,मस्ती और ख़ुमार है , एक आत्मीयता है, जो सिर्फ यहाँ आकर ही समझ आती है। यहाँ जीवन और मोक्ष का अद्भुत संगम देखने को मिलता है।

बनारस का इतिहास जितना पुराना है, उतना ही अद्भुत और रहस्यमय भी। यह नगर प्राचीनता और आधुनिकता का संगम है। कहते हैं कि बनारस संसार के सबसे पुराने बसे हुए शहरों में से एक है, जो अपने आप में कई सभ्यताओं और संस्कृतियों की कहानी बयां करता है। इसका इतिहास हजारों साल पीछे तक जाता है और इसकी महिमा का उल्लेख वैदिक काल से लेकर आधुनिक भारत तक मिलता है। बनारस की स्थापना को लेकर कई मिथक और मान्यताएँ प्रचलित हैं। कहा जाता है कि यह नगर भगवान शिव के त्रिशूल पर स्थित है और इसे स्वयं शिव जी ने बसाया था। इस धार्मिक मान्यता के चलते बनारस का धार्मिक महत्व बढ़ा और यह नगर शिव की नगरी कहलाया जाने लगा। वाराणसी, काशी, शिव नगरी सभी बनारस के नाम हैं।

वैदिक काल में काशी एक प्रमुख शिक्षण और सांस्कृतिक केंद्र थी। ऋग्वेद और यजुर्वेद में काशी का उल्लेख मिलता है, जिससे इसका धार्मिक महत्व स्पष्ट होता है। यहाँ के आश्रमों में वैदिक शिक्षा दी जाती थी और ऋषि-मुनियों का निवास होता था। वाराणसी के इतिहास पर तो पूरी किताब लिखी जा सकती है। आइए आगे चलते हैं। आज हम बनारस के कुछ पहलुओं को सिर्फ छू कर निकल जाएंगे, बनारस है ही इतना विशाल कि एक पोस्ट में नहीं समेट सकते। भविष्य में बनारस के हर रस का वर्णन अलग अलग होगा और विस्तार से होगा।

बनारस के प्रमुख घाट:
बनारस के घाट शहर की आत्मा हैं। यहाँ आकर आप न केवल धार्मिक अनुभव प्राप्त करेंगे, बल्कि भारत की सांस्कृतिक विरासत का भी अनुभव कर पाएंगे

  • दशाश्वमेध घाट: यह सबसे प्रसिद्ध घाट है और यहाँ शाम को होने वाली आरती देखने के लिए हजारों लोग जुटते हैं।
  • मणिकर्णिका घाट: यह घाट अंतिम संस्कार के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ लोग अपने मृतक परिजनों का अंतिम संस्कार करते हैं।
  • अस्सी घाट: यह घाट छात्रों और युवाओं के बीच लोकप्रिय है। यहाँ कई कॉलेज और विश्वविद्यालय स्थित हैं।
  • पंचगंगा घाट: यह घाट पांच नदियों के संगम के रूप में जाना जाता है।
  • तैलिया घाट: यह घाट अपने तेल के व्यापार के लिए प्रसिद्ध है।

घाटों पर क्या करें

  • गंगा आरती देखें: यह एक अद्भुत अनुभव है। हजारों लोग शाम को आरती देखने आते हैं।
  • घाटों पर घूमें: घाटों पर घूमते हुए आप बनारस की सुंदरता का आनंद ले सकते हैं।
  • योग और ध्यान करें: कुछ घाटों पर योग और ध्यान कक्षाएं आयोजित होती हैं।
  • स्थानीय लोगों से बात करें: घाटों पर आप स्थानीय लोगों से बात कर सकते हैं और उनकी संस्कृति के बारे में जान सकते हैं।

सुबह ए बनारस
यहाँ की सुबह काशी विश्वनाथ के मंदिर की आरती से शुरू होती है, जहाँ घंटों की ध्वनि और मंत्रोच्चार से वातावरण दिव्यता से भर उठता है। फिर आप पहुँचते हैं दशाश्वमेध घाट पर, जहाँ गंगा आरती का दृश्य ऐसा होता है मानो स्वर्ग की देवियाँ खुद आशीर्वाद देने उतर आई हों। उस आरती में बैठकर बस गंगा माँ को निहारना… यही तो है जीवन का असली आनंद।

सुबह का नाश्ता
जब बात खाने की हो, तो बनारस अपने ठेठ स्वाद से आपका दिल जीत लेता है। कचौड़ी-जलबी, पूरी सब्जी का नाश्ता हो या ठंडई का मज़ा, यहाँ का हर निवाला आपको एक कहानी सुनाता है। अस्सी घाट की भांग वाली लस्सी का तो कोई जवाब ही नहीं! बनारस के ठेठ चाय के स्टॉल पर बैठकर अगर किसी बनारसी बाबा से गपशप कर ली, तो समझिए बनारस का दर्शन पूरा हुआ। बिना पान के बनारसी खानपान अधूरा है।

ऐसा भी है बाज़ार बनारस की गली में
बिक जाएँ ख़रीदार बनारस की गली में

यहाँ की गलियाँ भी अनोखी हैं – संकरी मगर रंगीन, जिनमें हर कदम पर कोई न कोई कथा छुपी हुई मिलती है। इन गलियों में भटकते हुए आप बहुत सारे ज्ञानी गुरु मिल जाएंगे, जो आपको इतना ज्ञान दे सकते हैं कि आप पूरे जीवन में नहीं पा सकेंगे। यदि आपको फोटोग्राफी का शौक़ है तो बनारस आपके लिए ख़ज़ाना है, हर तरफ आपको अलग अलग रंग मिलेंगे और अपना कैमरा तैयार रखिएगा।

बनारस घराना
बनारस की कला और संगीत की धारा भी उतनी ही प्रबल है जितनी गंगा की लहरें। बनारस घराने की शास्त्रीय संगीत परंपरा तो पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। और अगर आपको यहाँ के संगीत का आनंद लेना है, तो आपको कोई न कोई स्थानीय संगीत सभा ज़रूर मिल जाएगी। बनारस ने विश्व को पंडित रविशंकर, उस्ताद बिस्मिल्लाह खान जैसे नायाब कोहिनूर दिए हैं। बनारस के कला संगीत पर विस्तार से लिखेंगे कभी।

यहाँ सब गुरु हैं कोई चेला नहीं
इस शहर के लोग, यहाँ की भाषा, यहाँ की परंपराएँ—सब मिलकर एक ऐसा ताना-बाना बुनते हैं कि आप खुद को यहाँ से अलग कर ही नहीं सकते। जब भी बनारस की बात होती है, तो सबसे पहले जो चीज़ मन को छू जाती है, वो है यहाँ की खास बोली और ज़बान। बनारस की गलियों में आपको सुनाई देगा – “कइसन बा?” या फिर “अरे, कइसे हो भइया?” ऐसी ज़बान जो न केवल मीठी है बल्कि दिल से भी जुड़ी हुई है। इस बनारसी बोली में एक अपनापन है, जो किसी भी अजनबी को भी अपना बना लेती है। बनारस की बोली में मिठास भी है, चुटकीले अंदाज़ भी हैं और व्यंग्य भी। मसलन, अगर आप यहाँ किसी से पूछ लें, “भइया, कइसे पहुँचा जाए विश्वनाथ मंदिर?” तो जवाब मिलेगा, “अरे ई बनारस है, सब रस्ता मंदिर ही के ओर जात बा!”

यहाँ की भाषा में सिर्फ शब्द नहीं हैं, बल्कि गंगा की लहरों जैसा बहाव है, जो आपको अपने साथ बहा ले जाएगा। और वो मिठास? चाहे कुछ भी हो जाए, पर बनारसी कभी कड़वी बात नहीं कहेंगे। हर बात में रस भरा होगा, और यही बात बनारस को बाकी शहरों से अलग करती है।गालियाँ यहाँ की परम्परा है, अगर किसी बनारसी ने आपको गाली दी तो बुरा मत मानिएगा, ये उनका इजहार ए मोहब्बत है, बल्कि उसने आपको आत्मीयता दिखाई और अपने आप से जोड़ा है।

जाते जाते…

तू बन जा गली बनारस की, मैं शाम तलक भटकूँ तुझमें
तेरी बातें चटपट चाट सी हैं, तेरी आँखें गंगा घाट सी हैं
मैं घाट किनारे सो जाऊँ, फिर सुबह-सुबह जागूँ तुझमें
तू बन जा गली बनारस की, मैं शाम तलक भटकूँ तुझमें

बनारस की बातें अभी आगे भी होती रहेंगी, लेख पढ़ने के लिए शुक्रिया, बिना कमेन्ट किए मत जाइयेगा, आपकी कमेंट ही मेरा प्रोत्साहन है। घुमक्कड़ी का सफ़र यूँ ही जारी रहेगा, मेरे हमसफ़र बनने के लिए , मुझे फॉलो करना मत भूलिएगा।आलोचना, राय, सुझाव और टिप्पणियों का हार्दिक स्वागत है।

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