लखनऊ: नवाबी तहज़ीब, नफ़ासत, नजाकत और मोहब्बत का शहर

वह आबो-हवा, वह सुकून कहीं और नहीं मिलता
मिलते हैं बहुत शहर, मगर लखनऊ सा नहीं मिलता

लखनऊ का नाम सुनते ही नवाबों की नजाकत, नफ़ासत, चिकनकारी और अवधी लजीज खाने की यादें ताज़ा हो जाती हैं। मैं, आपका हमसफ़र जितेंद्र चौधरी, कानपुर की यात्रा के बाद, आज आपको लखनऊ की सैर पर ले चलता हूँ। लखनऊ की हर गली, हर इमारत और हर अंदाज़ नवाबी तहज़ीब की गवाही देते हैं। यह शहर अपने इतिहास, धरोहरों, किस्सों और अनूठे खानपान के लिए मशहूर है। लखनऊ की रूह में बसा है अदब और नफ़ासत। चाहे नवाबों की महफ़िलें हों, इमामबाड़ों की शानो-शौकत, या गलियों में रची-बसी कहानियाँ – हर चीज़ में पुरानी दुनिया की महक है, जो इस शहर को ख़ास बनाती है।

लखनऊ का शानदार इतिहास और धरोहरें

लखनऊ का इतिहास सदियों पुराना है, जहाँ नवाबों ने सिर्फ़ शहर का निर्माण नहीं किया, बल्कि इसकी तहज़ीब और कलाओं को भी संवारा। नवाब वाजिद अली शाह और आसफ़-उद्दौला जैसे शासकों ने इस शहर को शानो-शौकत दी, जिसकी गूंज आज भी सुनाई देती है।
बड़ा इमामबाड़ा: नवाब आसफ़-उद्दौला द्वारा अकाल राहत के तौर पर बनाई गई यह भव्य इमारत वास्तुकला का एक बेहतरीन उदाहरण है। इमामबाड़ा की विशाल भूलभुलैया में खोकर आपको रोमांच का एक अलग ही अनुभव होगा।
छोटा इमामबाड़ा: जिसे हुसैनाबाद इमामबाड़ा भी कहते हैं, यह अपनी खूबसूरत सजावट और शानदार झूमरों के लिए जाना जाता है।
रूमी दरवाज़ा: तुर्की शैली में बना यह विशाल मुगलकालीन दरवाज़ा लखनऊ का प्रतीक बन चुका है।
रेजीडेंसी: लखनऊ की रेजीडेंसी 1857 के स्वतंत्रता संग्राम की गवाह है। यहाँ की वीरानगी उस दौर की याद दिलाती है जब अंग्रेज़ों और भारतीयों के बीच भीषण संघर्ष हुआ था।
हज़रतगंज: हज़रतगंज आज भी अपने पुराने जमाने की शानो-शौकत और आधुनिकता का अद्भुत मिश्रण पेश करता है। यहाँ आप पुराने और नए लखनऊ की झलक देख सकते हैं।

लखनऊ की गलियों में हर मोड़ पर किस्से और कहानियाँ बसती हैं। चौक और अमीनाबाद की पुरानी गलियों में चलते हुए ऐसा लगता है जैसे आप वक्त के साथ पीछे चले गए हों। चिकनकारी वाले कुर्ते यहाँ बहुत अच्छे मिलते हैं, अमीनाबाद मार्केट से खरीदे जा सकते हैं।

लखनऊ का लाजवाब खाना

अवधी खानपान की नफ़ासत लखनऊ की हर गली में दिखती है। यहाँ के कबाब, बिरयानी, और मिठाइयाँ जितने लाजवाब हैं, उतना ही दिलचस्प उनका इतिहास भी है।
गलावटी कबाब: ये लाजवाब कबाब आपके मुँह में घुल जाते हैं। इन्हें नवाब वाजिद अली शाह के दरबार में इस तरह तैयार किया गया था कि बिना दाँतों वाले नवाब भी इनका मज़ा ले सकें।
बिरयानी: लखनऊ की अवधी बिरयानी अनूठे मसालों और धीमी आँच पर पकने की वजह से खास होती है।
कुलचे-निहारी: लखनऊ में सुबह के नाश्ते की शुरुआत कुलचे-निहारी से होती है।
शीरमाल और मक्खन मलाई: सर्दियों में लखनऊ का मक्खन मलाई और शीरमाल का स्वाद दिल को गुदगुदा देता है।

लखनऊ के लोग और उनकी तहज़ीब

लखनऊ के लोग अपनेपन और नफ़ासत से बातचीत करते हैं। यहाँ की ज़ुबान में अदब बसा है। ‘पहले आप’ की तहज़ीब यहाँ की ज़िंदगी का अहम हिस्सा है। यही लखनऊ का असली जादू है।

शाम-ए-अवध: लखनऊ की सांस्कृतिक शामों का जादू

कहते हैं, सुबह-ए-बनारस और शाम-ए-अवध नसीब वालों को ही मिलती है। जैसे ही सूरज ढलता है, लखनऊ की फ़िज़ाओं में एक खास जादू बिखर जाता है। नवाबों के महलों में सजने वाली महफ़िलों की महक आज भी लखनऊ की शामों में मौजूद है। हज़रतगंज, गोमती नदी के किनारे, और चौक की गलियों में घूमते हुए आप शाम-ए-अवध का अनुभव कर सकते हैं।

शास्त्रीय संगीत और ठुमरी

लखनऊ के नवाबों ने शास्त्रीय संगीत को विशेष तवज्जो दी। ध्रुपद, ख्याल, ठुमरी, और ग़ज़लें यहाँ के दरबारों में प्रमुख रूप से गाई जाती थीं। नवाब वाजिद अली शाह खुद ठुमरी गायक थे और इस संगीत शैली को उन्होंने खूब बढ़ावा दिया।

कथक नृत्य: लखनऊ घराना

लखनऊ का कथक नृत्य, जिसे ‘लखनऊ घराना’ कहा जाता है, भारतीय शास्त्रीय नृत्य की एक प्रतिष्ठित विधा है। इसकी ख़ासियत इसकी लय, सौंदर्य और अभिव्यक्ति में देखी जा सकती है।

जाते-जाते

लखनऊ सिर्फ एक शहर नहीं, बल्कि एक खूबसूरत एहसास है। इसका इतिहास, तहज़ीब और स्वादिष्ट खाना दिलों में गहरी छाप छोड़ जाते हैं। जब भी लखनऊ आएँ, इसे ठहर कर महसूस करें।
क्योंकि जनाब, यह लखनऊ है – थोड़ी नफ़ासत, और थोड़ी तसल्ली से देखें… यक़ीन मानिए लखनऊ की मोहब्बत हमेशा आपके दिल में बसी रहेगी।

हर मंज़र एक इबादत हो, ऐसी जगह जाना है
मुझे जन्नत नहीं, लखनऊ शहर जाना है

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