कल रात को कुवैत मे काफी बारिश हुई थी….नींद खुल गयी,तो अचानक मेरे को गुलजार साहब की यह नज्म याद आयी
शाम से आंख मे नमी सी है
आज फिर आप की कमी सी है
दफन कर दो हमे कि सांस मिले
नब्ज कुछ देर से थमी सी है
वक्त रहता नही कहीं छुपकर
इसकी आदत भी आदमी सी है
कोई रिश्ता नही रहा फिर भी
एक तस्लीम लाजमी सी है
-गुलजार साहब
आज सुबह सुबह ही इन्टरनेट पर गुलजार साहब की यह नज्म दुबारा पढी, कई कई बार पढी,फिर कोई याद आया, फिर मौसम गमगीन हुआ,
आज फिर आप की कमी सी है
दफन कर दो हमे कि सांस मिले
नब्ज कुछ देर से थमी सी है
वक्त रहता नही कहीं छुपकर
इसकी आदत भी आदमी सी है
कोई रिश्ता नही रहा फिर भी
एक तस्लीम लाजमी सी है
-गुलजार साहब
आज सुबह सुबह ही इन्टरनेट पर गुलजार साहब की यह नज्म दुबारा पढी, कई कई बार पढी,फिर कोई याद आया, फिर मौसम गमगीन हुआ,
फिर सावन रुत की पवन चली, तुम याद आये तुम याद आये
फिर पत्तो की पाजेब बजी तुम याद आये,तुम याद आये.
फिर पत्तो की पाजेब बजी तुम याद आये,तुम याद आये.
क्या कभी आपको भी कोई याद आता है, इस तरह………………..
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