मेरा यह लेख, इंटरनैट पर उपलब्ध नयी हिन्दी व्यापार पत्रिका मोलतोल पर पूर्व प्रकाशित हो चुका है।
हमारे कई साथियों मे म्यूचल फंड के बारे मे जानने की इच्छा व्यक्त की है। लेकिन कई ऐसे मित्र भी है जो म्यूचल फंड के बारे मे विस्तार से जानना चाहते है। आइए इस बार बात करते है म्यूचल फंड की। लेकिन आगे बढने से पहले आपको जानना होगा कि शेयर, सरकारी प्रतिभूतिया बांड और म्यूचल फंड क्या होता है।
शेयर (Shares)
जैसा कि आपको पता है किसी भी व्यापार को चलाने के लिए पूँजी की आवश्यकता होती है। यदि व्यापार छोटा है तो निजी,पारिवारिक अथवा मित्रों के स्तर पर पूँजी की व्यवस्था की जाती है अथवा कंही ऋण लिया जाता है। लेकिन यदि व्यापार काफी बड़े स्तर पर हो, पूँजी की व्यवस्था सार्वजनिक रुप से की जाती है। ऐसे मे पूँजी को छोटे छोटे हिस्सों मे बाँट दिया जाता है जिन्हे शेयर कहा जाता है और इस शेयर को पब्लिक को खरीदने के लिए आमंत्रित किया जाता है। इसका मतलब है कि यदि आपने किसी कम्पनी के शेयरधारक है तो आप उस कम्पनी मे पूँजी के उतने हिस्से के हकदार है। कम्पनियां अपना मुनाफ़ा इन शेयरधारकों के बीच बाँटती है जिसे डिवीडेंड कहते है। इन कम्पनियों के शेयर, शेयर बाजार मे भी बिक्री खरीद के लिए उपलब्ध होते है। यदि कोई कम्पनी पहली बार अपने शेयर बाजार मे लाती है तो उसको इनीश्यल पब्लिक ऑफरिंग (IPO) कहते है। ये तो रही शेयर की बात, आइए अब बात करते है डिबेंचर की।
डिबेंचर (Debenture)
डिबेंचर भी शेयर की तरह होता है, बस फर्क इतना होता है कि यह पूँजी का हिस्सा ना होकर, कम्पनी द्वारा पब्लिक से मांगा गया ऋण होता है। इस डिबेंचर पर कम्पनिया प्रतिवर्ष, डिवीडेंड की जगह ब्याज देती है। कई कम्पनियां डिबेंचर को शेयर मे स्थानांतरित करने का भी प्रावधान रखती है। आजकल डिबेंचर का प्रचलन कम हो गया है।
सरकारी प्रतिभूतिया (Government Bonds)
जिस तरह व्यापारियों को व्यापार चलाने के लिए पूँजी की आवश्यकता होती है उसी प्रकार सरकारों को भी काम-काज चलाने के लिए पूँजी की जरुरत होती है। वैसे तो यह पूँजी सरकार टैक्स लगाकर इकट्ठा करती है, लेकिन कभी कभी किसी प्रोजेक्ट विशेष के लिए सरकार बॉन्ड भी जारी करती है। इसी तरह विभिन्न पूँजीगत संस्थाएं (Financial Institutions) भी बॉंड जारी करती है। सरकारी प्रतिभूतियों पर ब्याज थोड़ा कम मिलता है लेकिन इसमे पूँजी की गारंटी सरकार देती है, इसलिए यह एक सेफ इंवेस्टमेंट की तरह माना जाता है।
म्यूचल फंड ( Mutual Fund)
आइए अब बात करते है म्यूचल फंड की। जैसा कि आपको पता है कि शेयर बाजार मे निवेश करने के लिए आपको काफी समय, जानकारी और कुछ हद तक (अच्छी खासी) पूँजी की आवश्यकता होती है। अब बड़े निवेशक तो शेयर मार्केट के होने वाले उतार-चढावों पर नजर रखने के लिए समय निकालते है, लेकिन कई ऐसे छोटे निवेशक भी होते है जिनके पास समय और पूँजी की कमी होती है। उदाहरण के लिए मान लीजिए आप और आपके पाँच मित्रों के पास 50,000 रुपए (प्रति व्यक्ति) है जिनको आप शेयर बाजार मे लगाना चाहते है, लेकिन आपको शेयर बाजार के झंझटों के बारे मे कोई जानकारी नही है और ना ही इतना समय है कि आप अपने व्यापार/नौकरी से समय निकालकर इस निवेश पर नजर रख सकें। तो आपके पास विकल्प क्या है:
- आप किसी पहचान वाले बन्दे को पकड़े जो शेयर बाजार मे निवेश करता हो।
- किसी संस्था को पैसा दे दो, जो आपकी तरफ़ से शेयर बाजार मे निवेश करे।
- आप सभी अपना अपना पैसा मिलाकर एक साथ, एक जगह निवेश करें और किसी भी एक व्यक्ति जो इस बारे मे जानकारी रखता हो, उस पर निवेश की देखरेख करने के जिम्मेदारी लगा दें।
अब मान लीजिए आप लोग पाँच नही, बल्कि पूरे 5000 लोग है, तो ऐसे मे आपके पास विकल्प म्यूचल फंड का ही है। इसमे आप अपना निवेश म्यूचल फंड मैनेजमेन्ट कम्पनी (Asset Management Company) को दे देते है। आपके पैसे की देखभाल पेशेवर फंड मैनेजर करते है जो शेयर बाजार की बारीकियों को अच्छी तरह से समझते है। बदले मे ये म्यूचल फंड कम्पनिया आपसे कुछ हिस्सा अपने खर्चों सरकार अपनी नीतियो द्वारा इन म्यूचल फंड कम्पनियों पर निगरानी रखती है। इस पूरी प्रक्रिया मे म्यूचल फंड कम्पनिया अनेक प्रकार की स्कीम लाती है, हर स्कीम मे लगाए जाने वाली पूँजी को छोटे छोटे, बराबर के हिस्सों मे (शेयरों की तरह) बाँट दिया जाता है। निवेशक अपने अपने हिस्से के हकदार होते है जिन्हे यूनिट (Unit) कहा जाता है। इस तरह छोटे निवेशक भी शेयर बाजार मे अप्रत्यक्ष रुप से हिस्सा ले सकते है।
लेकिन म्यूचल फंड के क्या फायदे है और ये शेयरों से किस तरह से अलग है?
काफी अच्छा सवाल। लेख थोड़ा लम्बा हो रहा है इसलिए इस सवाल का जवाब इस लेख के अगले हिस्से मे समेटते है। आशा है इस लेख से आपकी म्यूचल फंड की जानकारी मे कुछ वृद्दि जरुर हुई होगी। म्यूचल फंड किसी भी सवाल के लिए टिप्पणी द्वारा सम्पर्क किया जा सकता है।
आगे भी जारी है……
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