अब जब सुनील भाई जी ने बात छेड़ी और स्वामी जी ने अपनी बात सामने रखी और फ़िर चर्चा छेड़ ही दी, हम ब्लागर हिन्दी मे क्यों लिखते है?
अमां यार क्यों ना लिखे, पढे हिन्दी मे है, सारी ज़िन्दगी हिन्दी सुनकर गुजारी है। हँसे, गाए,रोये हिन्दी मे है, गुस्से मे लोगो को गालियां हिन्दी मे दी है, बास पर बड़्बड़ाये हिन्दी मे है। हिन्दी गीत, हिन्दी फ़िल्मे देख देखकर समय काटा है, क्यों ना लिखे हिन्दी? मेरा हिन्दी प्रेम तो वैसे ही बहुत पुराना है, इसलिये उस बारे मे बताकर समय व्यर्थ नही करूंगा। हिन्दी मे लिखने के लिये सबके अपने अपने कारण होंगे, क्योंकि हम सभी अंग्रेजी मे भी लिखने की क्षमता रखते है, फ़िर भी हमने हिन्दी ही चुनी। मेरे तो निम्नलिखित कारण है:
हिन्दुस्तान को छोड़ते समय लगा था, शायद हिन्दी पीछे छूट गयी और अब तो बस अंग्रेजी से ही गुजारा चलाना होगा, लेकिन कुवैत मे आकर देखा कि पूरा का पूरा हिन्दुस्तान, या ये कहो को पूरा का पूरा साउथ ईस्ट एशिया(अविभाजित हिन्दुस्तान) एकजुट होकर, साथ साथ रह रहा है। सबके सुख दु:ख, खुशी गम, तीज त्योहार, सभी तो एक सा है।सभी लोगो हिन्दी/उर्दु बोलते है, जो लोगो को एक दूसरे से जोड़ती है। क्या इन्डियन,क्या पाकिस्तानी और क्या बांग्लादेशी, सब एक है। मज़हब अलग अलग है तो क्या बोली तो एक है।
इन्टरनैट पर हिन्दी पिछड़ी हुई है, इसमे कोई शक नही, हम हिन्दी ब्लागर, वैब पर हिन्दी मे लिखकर, उसे मरने से बचा रहे है।हम किसी पर कोई उपकार नही कर रहे है, बल्कि हम एक विशिष्ट पाठक वर्ग ढूंढ रहे है, जो सिर्फ़ हिन्दी मे ही सोचता है, हिन्दी बोलना,सुनना,देखना चाहता है और हिन्दी मे ही पढना चाहता है, लेकिन इन्टरनैट पर उसे हिन्दी दिखती ही नही।
मै शुरु शुरु मे सिर्फ़ अंग्रेजी के ब्लाग पढता था, लेकिन बाद मे पढना कम करदिये, क्योंकि अब मुझे हिन्दी मे ही अच्छा पढने को मिल जाता है। सीधी सीधी बात है, यदि मेरे सामने हिन्दी और अंग्रेजी की इन्डिया टूडे सामने पड़ी हो तो मै हिन्दी वाली पहले उठाउंगा।
हिन्दी बोलकर और हिन्दी मे लिखकर मुझे संतुष्टि होती है, एक दिन ब्लाग नही लिखता हूँ तो लगता है, कंही कुछ छूट रहा है। लेखन का ऐसा बुखार चढा है कि दोस्तो यारों को ब्लाग पढाकर ही दम लेता हूँ। और तो और, बहुत सारे कुवैती और मेरे कुछ पाकिस्तानी दोस्त जो हिन्दी नही पढ पाते, लेकिन समझ लेते है, वे भी रोजाना किसी ना किसी को पकड़कर हिन्दी ब्लाग पढवाते है। उनके द्वारा दिनोदिन की जाने वाली तारीफ़ बताती है कि हिन्दी चिट्ठाकारी दिन पर दिन जवां होती जा रही है।
दरअसल हिन्दी पढने वाले पढना तो चाहते है, लेकिन फ़ोन्ट वगैरहा के झमेले से डरते है। फ़िर क्या है कि अभी इन्डिया मे इन्टरनैट सिर्फ़ मनोरंजन,इमेल, चैट या जरुरी जानकारी के लिये प्रयोग होता है। अभी इन्टरनैट लोगो की जीवन शैली मे रचा बसा नही है, जैसा पश्चिम मे है, जिस दिन वो सब होगा, भारतवासी हिन्दी मे साइट ढूंढना शुरु करेंगे। सीधी सी बात है, यदि दाल रोटी सामने मिलगी तो बर्गर पिज्जा ज्यादा दिन नही तक पसन्द नही आयेगी।
मेरा अपना एक अनुभव है कि लोग बाग सेक्स, यौन और दूसरे कई अपशब्द ढूढते हुए, ना जाने कितनी साइटो को कूदते फ़ांदते मेरी साइट पर आते है। लेकिन एक बार मेरी साइट या दूसरे ब्लागर की साइट पर लिखे लेख पढने के बाद, हिन्दी चिट्ठाकारों की साइट को बुकमार्क करने के लिये मजबूर हो जाते है। अब ये तो नही कहूंगा कि ये शब्द ढूंढने वाले ठरकी है। लेकिन एक बात तो है, बुरी बात का प्रचार प्रसार जल्दी होता है। इसलिये मेरे ब्लाग को शायद कम ही लोग जानते होंगे, ठरकी और देसी बाबा को जानने वाले हजारों मिल जायेंगे।
अब बात करते है दूसरी भाषाओं की, इन्टरनैट पर किसी भी भाषा का विकास तभी सम्भव है, जब उसका ज्यादा से ज्यादा कन्टेन्ट उपलब्ध हो, अच्छा बुरा, कुछ भी। हर तरह का कन्टेन्ट होना चाहिये। आप फ़ारसी भाषा देखिये, चीनी और जापानी भाषाये देखिये, यूरोपियन भाषायें देखिये, हर भाषा मे आपको इतनी साइट मिल जायेगी कि कन्टेन्ट की कमी नही है। और हिन्दी, अभी तो शुरुवात है, हम तो अभी अभी फ़ोन्ट शोन्ट के पंगे से बाहर निकले है, थोड़ा समय लगेगा।
आज हम जो हिन्दी लिख रहे है, निश्चय ही, आने वाले समय मे इस हिन्दी पर शोध होगा। लोग प्रोजेक्ट बनायेंगे और कार्यशालाए आयोजित करेंगे। हम ना रहेंगे, तुम ना रहोगे, हमारा लिखा जरुर रहेगा। आज भले ही हमे कुछ गिनती के लोग पढ रहे हो, लेकिन एक दिन आयेगा, जब लोग हमे याद करेंगे और हमारे हिन्दी के योगदान को सराहेंगे। बस यही कहना चाहता हूँ।
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