आप सभी की टिप्पणियों और आलोचनाओं का बहुत बहुत धन्यवाद। यह बात सही है मुझे पहचान मिर्जा,छुट्टन, मोहल्ला पुराण जैसे लेखों से ही मिली है, जुगाड़ी लिंक जैसे टापिक से नही।लेकिन आप इस बात को भी ध्यान मे रखिए कि नारद,परिचर्चा, जुगाड़ी लिंक जैसे प्रयास भी हिन्दी को आगे ले जाएंगे।अगर परिचर्चा की ही बात करें, क्या चिट्ठाकारों मे इतना मेल जोल सिर्फ़ ब्लॉग पर सम्भव था? क्या नारद/चिट्ठा विश्व के बिना आप नित नये जन्म लेने वाले हिन्दी चिट्ठों को खोज पाते? क्या बिना जुगाड़ी लिंक के सीधे साधे इन्टरनैट प्रयोक्ता को नयी नयी साइटें देखने को मिल पाती? खैर आपके जवाब अलग अलग हो सकते है।मैं अपने उन सभी पाठकों से माफ़ी चाहूंगा जो मेरे प्रिय पात्रों का इन्तजार करते रहे।तो जनाब हम बात कर रहे थे, आपके प्रिय पात्रों की, तो इन्तजार खत्म अब झेलिए मिर्जा पुराण को:
उस दिन जब मिर्जा हमको घर पर टपका कर चलते बने, तो हम समझे कि मुसीबते खत्म हो चुकी है और हम अपने घर की तरफ़ निकल चले।अभी घर पहुँचकर श्रीमतीजी का भाषण(पूर्वघोषित) सुनने ही वाला था कि मोबाइल टनटना उठा, हमने देखा, मिर्जा का ही नम्बर था। हम फिर समझे कि कोई पंगा हुआ है, और हमारा शक गलत नही था।दूसरी तरफ़ छुट्टन मियां थे, बोले यार फ़लाना पुलिस स्टेशन पर आ जाओ, मिर्जा और मेरे को पुलिस हवालात ले गयी है। बाकी चीजे वहीं पर आकर समझ लेना। हमने श्रीमती जी को लौट कर आकर भाषण सुनने का वादा किया, जैसे परचून वाले लाला को, अगले महीने पूरा हिसाब चुकता करने का वादा किया जाता है ना, ठीक वैसा ही। लेकिन ना तो कभी लाला का हिसाब चुकता होता है और ना श्रीमती जी का भाषण।अब शाम तो खराब हो ही चुकी थी, अब रात की बारी थी।
हम ढूंढते ढूंढते पुलिस स्टेशन पहुँचे, वहाँ मिर्जा एक तरफ़ बैठा था, छुट्टन बेसब्री से मेरा इन्तजार करते हुए टहल रहा था।मैने पूछा मसला क्या है।छुट्टन हमे धीरे से किनारे ले गया और बताया कि आपको छोड़ने के बाद मिर्जा सारे रास्ते गाली गलौच करता रहा था, छुट्टन को कंही से कार मे ही पान का एक बीड़ा दिख गया, मिर्जा को चुप कराने के लिये इससे अच्छा रास्ता नही दिखा उसे। इधर बीड़ा मिर्जा के मुंह में दाखिल उधर, गाली गलौच कुछ देर के लिये बन्द। लेकिन मिर्जा का भी दिन सही नही था, सारा रोड ट्रेफ़िक जाम से भरा पड़ा था।ये मिर्जा की किस्मत कहें या कुछ कि पुलिस की गाड़ी को जो पीछे से ओवरटेक करती हुई, ट्रेफ़िक के चक्कर मे मिर्जा की गाड़ी के आगे आगे चलने लगी।
पुलिस की गाड़ी के पीछे पीछे चलना कोई गुनाह नही है। लेकिन पुलिसिए भी इन्सान होते है,ट्रेफ़िक मे रुक रुक कर चलने से आदमी बोर हो जाता है, सो पुलिस वाला भी बोर हो गया, उसने भी इधर उधर नजर घुमाई। उसे पीछे वाली गाड़ी मे कोई हसीना तो नही दिखी, अलबत्ता एक मिर्जा साहब दिख गए, साक्षात, वो भी मुँह मे पान की गिलौरी दबाए।(यहाँ मै यह बताना अपना फ़र्ज समझता हूँ कि कुवैत मे पान और पान मसाला खाना प्रतिबन्धित है।) बस जनाब फिर क्या था, पुलिसिए को तो बैठे बिठाए एक केस मिल गया। उसने मिर्जा की गाड़ी किनारे लगवायी। अब मिर्जा तो वैसे ही छुट्टन पर भन्नाया हुआ था, झल्लाहट में पुलिस वाले से भिड़ गया, खामंखा में। अब यहाँ के पुलिस वाले, पढे लिखे होते है, हिन्दुस्तान के होते तो मिर्जा को एक आध कन्टाप रसीद कर दिया होता, तो हम लोग इस समय हवालात मे नही, बल्कि हस्पताल मे बैठकर ब्लॉगियाते। खैर पुलिसिए ने उनसे गाड़ी के कागज लिए, ड़्राइविंग लाइसेन्स और सिविल आई(रेसीडेन्सी पहचान पत्र) लिया और उनको थाने पहुँचने का आदेश दिया, बोला बाकी बातें वहीं करेंगे। ये दोनो हवालात मे तो पहुँच गए, लेकिन पुलिस वाला अभी तक नही पहुँचा था, सो वो लोग उसी का इन्तजार कर रहे थे।इसी बीच छुट्टन मे मौके की नजाकत को समझते हुए हमे फुनियाआ था, और हम यहाँ पर है। ये तो रही अब तक की कहानी, अब आगे का झेलो।
पुलिस वाला भी शायद सोचे बैठा था कि मिर्जा को झिलाएगा,इसी लिए अपने सारे काम निबटाता हुआ आया।इस बीच हम अपने वकील मित्रों से पता किए कि क्या क्या पेनाल्टी हो सकती है।पुलिसवाला आया, उसने हमे अन्दर बुलाया।मिर्जा को हम पहले ही ट्रेलर दे चुके थे, कि पुलिस वाले के सामने मत फ़ैलना, नही तो रायता हो जाएगा, हम नही समेट पाएंगे। फिर हो सकता है दो चार दिन,हवालात में रहकर, चिकन बिरयानी खानी पड़े। जेल और बिरयानी की बात पर मिर्जा के चेहरे के रंगो को हमने बदलते देखा। आखिर यह तय हुआ कि मिर्जा सिर्फ़ चुप रहेंगे, बात एक ही आदमी करेगा।हमने पुलिसवाले से बात की और बताया कि मिर्जा बीमार आदमी है उसे उल्टी आती रहती है।(वाकई मिर्जा ने बीमार वाली झकास एक्टिंग करी) इसलिये मुँह में कुछ माउथफ़्रेशनर चाहिए होता है।पुलिसवाला सारी बात मान गया, लेकिन इस बात पर अड़ गया कि हम लोगों ने पान का जुगाड़ कहाँ से किया। वो बोला “ये बता दो, पान कहाँ से लाए, हम तुम लोगों को छोड़ देंगे”। मिर्जा अगर पाकिस्तानी पान वाले का नाम बता देता, बहुत बड़ा फ़ड्डा हो जाता,फ़िर दोनो लोग जेल के अन्दर ही पान बनाते और खाते।हमने मिर्जा को आंखो ही आंखो मे इशारा किए, मिर्जा पानवाले का नाम जुबान पर लाते लाते फिर निगल गए, मिर्जा बोले पिछले हफ़्ते मेरा एक दोस्त इन्डिया से लेकर आया था। बहुत दिनो से गाड़ी मे पड़ा था, आज जी मिचिलाया इसलिए खा लिया। पुलिस वाले को बात कुछ कुछ समझ मे आ गयी। मिर्जा की उमर का लिहाज करते हुए, उसने वार्निंग दी और आगे कभी पान ना खाने की ताकीद दी। मिर्जा के सारे कागजात वापस कर दिए।थोड़ी गपशप की और हम लोगों को चाय भी पिलवायी(यहाँ हिन्दुस्तान के थानों की तरह नही होता,जहाँ आपको ही लूट लेते है।)
हम और मिर्जा उस पुलिसवाले का शुक्रिया अदा करते हुए, हवालात से बाहर निकले।रात काफ़ी हो चुकी थी, इसलिए मिर्जा को घर पर छोड़ते हुए हम भी अपने घर पहुँच गये। आप लोगों ने भी काफ़ी झेल लिया, रात काफ़ी हो गयी है, अब आप लोग भी निकल लो।
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