हमारे मिर्जा साहब की स्पेशल फरमाइशो पर इन्हे भी देखियें…..
दुख ने दुख से बात की बिन चिट्ठी बिन तार
छोटा करके देखिये जीवन का विस्तार
आंखो भर आकाश है बाहों भर संसार
–निदा फाजली
नज्म उलझी हुई है सीने मे
मिसरे अटके हुए है होठों पर
उड़ते फिरते है तितलियों की तरह
लफ्ज कागज पर बैठते ही नही
कब से बैठा हूँ मै जानम
सादे कागज पे लिख के नाम तेरा
बस नाम ही मुकम्मल है
इससे बेहतर भी नज्म क्या होगी
-गुलजार साहब
वक्त की शाख से लम्हे नही तोड़ा करते
जिसकी आवाज मे सिल्वट हो, निगाहो मे शिकन
ऐसी तस्वीर के टुकड़े नही जोड़ा करते
शहद जीने का मिला करता है थोड़ा थोड़ा
जाने वालो के लिये दिल नही थोड़ा करते
लग के साहिल से जो बहता है उसे बहने दो
ऐसी दरिया का कभी रूख नही मोड़ा करते
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