अभी पिछले दिनो दिल्ली में बम धमाके हुए थे, (आशा है आप चौंके नहीं होंगे, अब हमे आदत जो हो गयी है।) फिर जैसा की हमेशा होता है, हमारे गृहमंत्री चिदम्बरम साहेब टीवी पर पधारे। टीवी चैनल वालों ने सवालों की झड़ी लगा दी, हमने महसूस किया कि उनके पास जवाबो की कमी थी, इसलिए उनकी सुविधा के लिए हम कुछ रेडी जवाब दे रहे है। चिदम्बरम साहब यदि चाहें (और यदि मंत्री बने रहे तो) अगले धमाको के समय जैसे चाहे वैसा प्रयोग कर लें। हमारा इन बहानो पर कोई कॉपी-राइट नहीं है। मिर्ज़ा साहब कि प्रतिक्रिया साथ में दी जा रही है।
- हमे धमाको की पहले से ही जानकारी थी। (अगर थी तो क्या चाहते थे, पहले हो जाये फिर कोई एक्शन लें? )
- हमने तो राज्य सरकार को पहले ही कह दिया था, अब उन्होने कोई कदम नहीं उठाए। (इसे कहते हैं, हाथ धोना)
- हम इन धमाकों के दोषियों को बख्शेंगे नहीं। (पकड़ कर जेल में बिरयानी खिलाएँगे। )
- ये तो लश्कर का ही काम है। (कोई नयी बात बताओ)
- इसमे तो हूजी का हाथ लगता है। (किसी का भी नाम लो, कौन सा आतंकवादी आकर विरोध करेगा)
- बम बनाने की तकनीक से तो ये आई एम का काम दिखता है। (भैया पहले डिसाइड कर लो, एक ही आप्शन चुनो)
- आतंकी सीमापार से आए थे। (अच्छा! इत्ती जल्दी पता चल गया)
- बम रखने वाला जल्दी से आकर जल्दी चला गया। (अबे वहाँ बैठेगा क्या?)
- घटनास्थल की कई कई बार रेकी हुई थी।
- हम आतंकवादियों को जल्द पकड़ लेंगे। (बस खबर लग जाए, कि ये लोग कहाँ छिपे है।)
- इसमे नाइट्रोजन का प्रयोग किया गया था।
- ये वाला बम दो किलो का था।
- बम रखने वाला साइकल से आया था। लेकिन वापस कार से गया था।
- सभी देशवासी एकजुट है। (और कोई विकल्प है क्या? )
- हमने 99% प्रतिशत धमाके तो रोक लिए, ये 1% वाला है।
- लोगों को सावधानी बरतनी चाहिए।
- पुलिस पर विश्वास रखें, और जांच में सहयोग दे।
- खबरी चैनल वाले बम धमाके वाली खबर बार बार न दिखाएँ। (साँप नेवले की कुश्ती दिखाएँ)
- ये तो केसरिया बम दिखता है।
- इसमे तो आर एसएस का हाथ दिखता है।
- मेरे पास तो बम फटने के पाँच मिनट पहले फोन आया था। (दिग्विजय सिंह)
- अगली बार ऐसा नहीं होगा।
- हमने पुख्ता इंतजाम किए हैं। (बहाने तलाशने के?)
क्या आपके पास भी कोई और बहाना है, यदि है तो मंत्रीजी को सुझाये। नहीं तो अपनी प्रतिक्रिया ही दें।
लेकिन क्या कभी हमने सोचा है? हम क्यों फिजूल की बाते करते हैं, क्यों नहीं कायदे से जांच करते हैं। क्यों नहीं आतंकवादियों को समय से सजा देते हैं। इन बम धमाकों में मरने वाले भी इंसान होते है, मरने वाला भी किसी का भाई, बेटा, बेटी, पिता होता है। लेकिन इन संवेदनहीन नेताओं को कौन समझाये। काश! हम इंसान की जान की कीमत समझ पाते।
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