अपने वादे के अनुसार, मै हाजिर हूँ, फिल्म सहर की समीक्षा
सहर..मतलब सुबह……. फिल्म पूर्वांचल के माफिया डान की कार्यशैली और स्पेशल टास्क फोर्स के जीवन पर आधारित है. फिल्म का केन्द्रबिन्दु है 1997-98 का मध्य, जब उत्तरप्रदेश के पूर्वांचल इलाके मे माफियाओं के बीच रेलवे की ठेकेदारी और इलाके पर वर्चस्व की वजह से आपस मे ठन गयी थी. फिल्म सच्ची घटनाओं पर आधारित है, लेकिन ना जाने क्यों पात्रों के नाम काल्पनिक रखे गये है.फिल्म में अपराधियों के राजनीतिज्ञों से साँठगाठ और पुलिसवालों की मजबूरियों को बहुत अच्छी तरह से दिखाया गया है.
निर्देशक कबीर कौशिक की यह पहली फिल्म है, जिसमे उन्होने अपने निर्देशन के कमाल दिखायें है. फिल्म के हर सीन पर मेहनत साफ दिखती है, लेकिन कई कई बार सीन मे निरन्तरता का अभाव दिखता है, हो सकता है जिस डीवीडी को मै देख रहा था, वो एडिटेड हो, लेकिन मुझे सीन दर सीन की कमी बहुत खली. एक्टिंग मे पंकज कपूर ने इस बार कथावाचक की भूमिका निभाई है और कहानी मे पूरी तरह से जुड़े रहे, जबरदस्त प्रभाव छोड़ा है उन्होने. अरशद वारसी ने अपनी इमेज से हटकर भूमिका की है, जिसमे वे सफल रहे है. अरशद वारसी ने दिखा दिया है कि उनमे प्रतिभा की कमी नही है, जरूरत है तो सिर्फ अच्छे रोल और सही निर्देशक की. लेकिन एक कलाकार जिसके जिक्र के बिना फिल्म की बात अधूरी रह जायेगी, वो है गजराज की भूमिका मे सुशान्त सिंह. सुशान्त सिंह ने इस रोल मे जान डाल दी है. निश्चय ही वो एक उदयीमान और प्रतिभासम्पन्न कलाकार है. गजराज के रोल के लिये एक क्रूर चेहरे वाला बन्दा चाहिये था, लेकिन इस चाकलेटी चेहरे वाले कलाकार ने अपने चेहरे के भावो और बाडी लेन्ग्वुएज से सबका मन मोह लिया है. उसकी आंखो मे क्रूरता झलकती है, जो उसके रोल को और ज्यादा उभारती है. महिमा चौधरी सुन्दर दिखी है,बाकी किसी कलाकार के बारे मे बात करना, समय खराब करना होगा.फिल्म का क्लाइमेक्स इतना अच्छा नही फिल्माया गया, इस पर कुछ ज्यादा काम किया जा सकता था.
संगीत अच्छा है, बैकग्राउन्ड म्यूजिक सही है, डैनियल जार्ज को इसका श्रेय दिया जाना चाहिये.फोटोग्राफी औसत है. फिल्म अच्छी बन पड़ी है, लेकिन कथावस्तु एक विशेष प्रदेश की होने के कारण, सिर्फ हिन्दी भाषी क्षेत्रो, विशेषकर उत्तर प्रदेश मे फिल्म का भविष्य उज्जवल दिखता है, बाकी जगहों के लोग, अपने आपको फिल्म से जोड़कर नही देख सकेंगे. खैर निर्देशक ने अपनी पहली फिल्म मे ही इतने बोल्ड विषय को लेकर फिल्म बनाने का जोखिम उठाया है वो काबिले तारीफ़ है.
आपको मौका लगे तो देखियेगा जरूर. फिल्म की आफिशयल साइट मेरे को नही दिखी, विस्तृत समीक्षा यहाँ देखिये और संगीत यहाँ सुना जा सकता है.
समीक्षा की अगली कड़ी मे है फिल्म “डी” अब आप सोचेंगे सारी की सारी माफिया वाली फिल्मे ही क्यों देख रहा हूँ, अब इसके लिये मै जिम्मेदार नही….जो परोसा जायेगा वही तो खायेंगे ना.
Leave a Reply