मेरे कुछ मित्रो ने पूछा है कि मेरे को चिट्ठा(Blog) लिखने का शौक क्यो चर्राया, क्या पहले से चिट्ठा लिखने वाले कम थे जो आप भी कूद गये. मेरा उनसे निवेदन है कि इस कहानी को जरूर पढे.
मैने सुना है बंगाल मे एक समाजसेवी हुए, उनका नाम राजाबाबू था, पेशे से हाईकोर्ट के रिटायर्ड न्यायाधीश थे. सुबह के वक्त घूमने का बड़ा शौक था. आदत के मुताबिक एक दिन वो घूमने निकले, एक मकान के पास से गुजरे, अचानक उनके कानो मे एक आवाज सुनाई दी, आवाज किसी स्त्री की थी, जो अपने बेटे को नींद से उठा रही थी, उसे यह भी नही पता था कि बाहर कोई राजाबाबू उसकी बात सून रहा है,वह अपने बेटे को बोली…”उठो राजाबाबू उठो, बहुत देर हो गयी है, देखो सूरज निकल आया है, कब तक सोते रहोगे? अगर यूँ ही सोते रहे तो बहुत देर हो जायेगी”
बाहर से गुजर रहे राजाबाबू के ह्रदय पर इस बात का बहुत असर हुआ, उन्होने दरवाजे को नमस्कार किया और मन ही मन उस स्त्री का धन्यवाद किया, जिससे उनको अकस्मात ही प्रेरणा मिली.उस दिन से राजाबाबू ने समाजसेवा को ही अपना धर्म मान लिया और समाजकल्याण मे तन मन और धन से जुट गये.
कहने का मतलब है, इन्सान को प्रेरणा, कभी भी कही से भी मिल सकती है, बस आवश्यकता है तो सिर्फ दिल की आवाज सुनने की और उपयुक्त मौके की.
ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ, जिससे मुझे चिट्ठा लिखने की प्रेरणा मिली.अब मै कहाँ तक सफल हो पाया हूँ, आप ही बता सकते है
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