क्योंकि आज दिवाली है,
मैंने भी एक दिया जलाया है।
अपने भूकंप और बाढ़ जैसी प्राकृतिक, और दंगे फसाद जैसी
मानवीय आपदाओं को झेल
खण्ड़हर हुए उजड़े मकान के
उखडे उखडे आंगन में
भूख, बेकारी और लाचारी के बावजूद,
अपने पडौसी से उधार लेकर, एक दिया जलाया है,
क्योंकि आज दिवाली है।
रोशनी तो मुझे सड़क पर लगे
सरकारी लैपपोस्ट से भी मिल जाती है।
यह दीपक तो आशादीप है जो आशा की किरणे फैलाता है।
मैं हर वर्ष इस आशा में लगाता हूं कि
कभी न कभी किसी न किसी दिवाली पर तो
हजारों वर्षों के वनवास के बाद राम जरूर आयेंगे
और एक बार फिर इस देश में रामराज्य जरूर आयेगा।
( एस.के.भन्डारी जी की कविता)
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