दीदी तेरा भइया शर्मिन्दा

अरे भाई ये कोई गाना नही है, हकीकत है…अपने बाबू लाल गौर है ना? कौन? नही जानते? अरे मध्य प्रदेश के मुख्यमन्त्री, जिन्हे उमा दीदी ने कठपुतली मुख्य मन्त्री बनाया था, और ये डील हुई थी कि जब चाहो वापस मुख्यमन्त्री पद ले लो. अब जब उमा दीदी के खराब दिन शुरु हुए तो कठपुतली मे भी जान आने लगी. और मुख्यमन्त्री पद होता ही ऐसा है कि अमानत मे खयानत करके हाईकमान के पास अपनी गोटियां फिट करने लगे……अब दुश्मन का दुश्मन, दोस्त होता है, सो पार्टी मे ही कई लोगो ने उनको सहारा दिया तो बेचारे आत्मविश्वास मे गाहे बगाहे कुछ उल्टा सीधा बोल दिये, दीदी के खिलाफ, ये सोंच कर कि अब तो दीदी की पार्टी मे वापसी सम्भव नही है, साथ ही साथ मिठाई भी बँटवाये थे. अब उमा के निष्कासन पर खुद तो मिठाई बँटवाये ही, लेकिन जब उमा वापस पार्टी मे ले ली गयी तो एक बिचारे मन्त्री,सुनील नायक ने मिठाई बँटवायी तो उनसे नाराज हो गये, बोले मिठाई बाँटने का काम तो सिर्फ मुख्यमन्त्री का होता है, तुम काहे बाँटे, जो अब बाँट ही दिये हो तो जाओ, अब जाकर हलवाई गिरी करो, और बेचारे को बाहर निकाल फेंका मन्त्रिमन्डल से.

अब मन्त्री ठहरा, उमादीदी का वफादार…सो जाकर भर दिये कान.. उमा ने भी सोंचा वापस आने पर सबसे पहले तो गौर पर ही गौर करूंगी. सो जब उमा वापस आयीं तो उन्होने गौर को दिल्ली तलब करवाया, बाकायदा माफी परेड करवायी, आडवानी के सामने और बाद मे मीडिया वालों के सामने. बाबूलाल गौर समझे कि मामला खत्म हो गया…अरे नही…अभी तो शुरुवात है, दीदी जाते जाते बोल गयीं कि “आगे आगे देखिये होता है क्या”

आने वाले कुछ दिन बाबू लाल गौर के लिये ठीक नही है, वैसे भी वे मध्य प्रदेश मे उमा की मर्जी के बिना कुछ कर नही सकते सो बीजेपी भी लग गयी है ढूँढने मे सही उम्मीदवार.क्योंकि बाबूलाल गौर और रामप्रकाश गुप्त मे एक समान बात है, दोनो ही संयोगवश अचानक ही मुख्य मन्त्री बन गये थे, दोनो ने ही प्रदेश मे बीजेपी की छीछालेदर कर डाली थी.अब बिहार और झारखन्ड के चुनाव सर पर ना होते तो दीदी तो लटक हीं गयी थी, इनको लाइन हाजिर करने मे. अब मुख्यमन्त्री की दौड़ मे बहुत सारे उम्मीदवार लगे है, नाम गिनवाऊ क्या? नही नही दीदी नाराज हो जायेंगी. इसलिये आप इशारो इशारो मे ही समझ लीजिये. एक तो पाँच बार के विधायक है, जो पूर्व मुख्यमन्त्री से हार गये थे, एक इन्दौर की नामचीन नेता है, और एक तो पक्के भक्त है उमा के, ठीक वैसे जैसे भक्त प्रहलाद थे नारायण के.

समझ गये ना? अब भी नही समझे तो इसमे हमारी गलती नही है, आपका राजनीति का ज्ञान कमजोर है, और आपको मिर्जा साहब से मिलना पड़ेगा.

One response to “दीदी तेरा भइया शर्मिन्दा”

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