कहते है, पुरातन काल मे देवताओं के यहाँ स्वर्गलोक में सोमरस यानि दारु की नदियां बहती थी, वे पी पा कर टुन्न रहते थे और स्वर्ग की अप्सराओं का डान्स देखने मे मस्त रहते थे। अब ये बात कितनी सच है या कितनी काल्पनिक कोई नही जानता। लेकिन वैज्ञानिकों की माने तो उन्होने अंतरिक्ष में 463 बिलियन किलोमीटर (अब आप करोड़ों मे खुद तब्दील कर लेना,इत्ता बड़ा जोड़ घटाना कौन करे?) बड़ा शराब का बादल ढूंढ निकाला है। मेरी ना मानो तो लिंक पर क्लिक करके खुद ही पढ लो।हमको तो बस उस दिन का इन्तजार है कि जब वैज्ञानिक लोग इस बादल को पकड़कर धरती पर कंही बारिश करवा देंगे।फिर शुभा मुदगल जी(मेरी सबसे पसंदीदा गायिका) झूम झूम कर गायेंगी
अबकि सावन ऐसा बरसे, बह जाए रंग मेरी चुनर से
भीग तन मन, जियरा तरसे
ऋतु सावन की….घटा सावन की ऐसे जम के बरसे
जम के बरसो जरा…..(गाना यहाँ सुनिए)
लेकिन एक बात समझ मे नही आई,अंतरिक्ष मे इत्ती ज्यादा शराब का क्या इस्तेमाल? कंही देवताओं वाली कहानी सच तो नही? अगर हाँ तो भैया अपना अपना टिकट कटवा लो, चलो अप्सराओं को ढूंढते है, जब दारु है तो अप्सराओं का स्टाक भी वही कंही होगा। है कि नही, तो बोलो शुकुल चलते हो?
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