ठलुआ पार्टी

आप लोग पूछेंगे ठलुआ क्या होता है? ठलुवा बहुत विस्तृत शब्द है, ठलुआ मतलब बिना काम काज वाला बन्दा। वैसे तो अपने हिन्दी ब्लॉगजगत मे भी ठलुआ ब्लॉगर हुए है, जो बड़े शान से अपने आप को ठलुआ कहलाते है, ये बात और है कि अपने (ब्लॉग के) नाम के अनुरुप, व्यवहार नही कर रहे, मतलब कि ब्लॉगजगत को ही बॉय बॉय कर दिए। खैर जनाब हम बात कर रहे थे ठलुवा/फोर्स्ड बैचलर पार्टी की। चलिए पहले थोड़ी प्रस्तावना हो जाए।

रमण कौल ने पूछा था फोर्स्ड बैचलर कौन सी टर्म है? तो आप सभी भी सुनिए और समझिए। कुवैत मे गर्मी बहुत पड़ती है, इसलिए गर्मियों के तीन महीने (जून, जुलाई और अगस्त) स्कूल बन्द रहते है। इसी समय सभी लोग छुट्टियां मनाने अपने अपने देशों को जाते है, अब जाएंगे नही तो इत्ती गर्मी (50 डिग्री) मे इहियां रहकर क्या रेत के महल बनाएंगे? तो जनाब बच्चे और महिलाएं तो दो तीन महीने के लिए निकल लेते है, अब रह जाते है बेचारे पुरुष। ऑफिस से तीन महीने की छुट्टी तो मिलने से रही, सो सभी लोग किसी तरह से एक आध महीना अपने देश को हो आते है, बाकी समय यहाँ पर अकेले रहते है। इस स्थिति को हम लोग फोर्स्ड बैचलर यानि जबरन कुँवारापन कहते है। कुल मिलाकर यह ठलुवेपने की स्थिति होती है।

अब परम्परा की बात कर ली जाए। जब किसी की बीबी(बच्चों समेत) स्वदेश जाती है तो इस खुशी को सेलीब्रेट करने के लिए पति बाकी दोस्तों को पार्टी देता है, यानि ठलुवा पार्टी का होस्ट होता है। हर हफ़्ते इस परम्परा का निर्वाह होता है। जिस हफ़्ते उसकी बीबी आती है, तो उसकी पूर्वसंध्या पर उसको बाकायदा सीऑफ पार्टी दी जाती है और ठलुवा क्लब से उसको अलग कर दिया जाता है। इस तरह से ठलुवा क्लब के कुछ अलिखित नियम है। एक नियम ये भी है कि किसी भी महिला मित्र को पार्टी मे नही बुलाना है, कारण? अमां गाली गलौच पर लगाम लग जाती फिर ना, इसलिए।

इस ठलुवा पार्टी मे होता क्या है? अजी होता क्या है, वही मौजमस्ती खाना पीना। वैसे काफी कुछ होस्ट पर निर्भर करता है कि वो अपनी पार्टी को थीम पार्टी बनाए, या फिर कुछ और। अब कुवैत मे पीना पिलाना ऑफिशली बैन है, इसलिए उस बारे मे कुछ भी ना लिखा जाएगा। ठलुवा पार्टी मे कॉलेज की यादें ताजा हो जाती है, जब दोस्त यार मिलकर पूल (चन्दा करके) पार्टी करते थे। बहुत मस्ती होती थी, जी भर करके गाली गलौच होता था। एक दूसरे से गिले शिकवे दूर किए जाते थे, दबी हुई कुंठाए बाहर निकाली जाती थी। कुल मिलाकर दोस्ती और गहरी की जाती थी। अब चूंकि हम इसी हफ्ते अपनी फैमिली को भारत छोड़कर आए थे, इसलिए इस बार की ठलुवा पार्टी के होस्ट हम ही थे।

इस बार की ठलुवा पार्टी गुरुवार को हमारे घर पर हुई। अब वही रुटीन ठलुवा पार्टी देख देखकर हम बोर हो गए थे, इसलिए इस बार कुछ नया सोचा था। हमारे एक मित्र है (आब्वियसली आजकल ठलुए है), उनके पास कराओके सिस्टम है। कराओके सिस्टम तो जानते ही होंगे आप। इसमे गीतों के बोल आपके टीवी स्क्रीन पर दिखाई देते है, संगीत बैकग्राउंड मे चलता रहता है (लेकिन गायक/गायिकाओं की आवाज नही सुनाई देती) और आप माइक पकड़कर एक गायक की तरह गीत गाते है। तो हमने उस मित्र को आमंत्रित किया और इस बार की ठलुआ पार्टी की थीम थी कराओके। ये रहा सेम्पल आप खुद देखिए और मौज कीजिए।

अब अपने सारे मित्रगण गाने बजाने मे सब उस्ताद। मतलब की सभी कलाकार कोई श्रोता नही। इस तरह की कराओके पार्टी बहुत खतरनाक हुआ करती है। इसमे तू मेरी पीठ खुजा मै तेरी। मतलब मै तुम्हारा गाना झेलता हूँ, तू मेरा। लगभग हिन्दी ब्लॉगजगत वाला हाल है। खैर जनाब, अब ओखली मे सर दिया ही था तो मूसल से क्या डरना, अब झेलना ही है तो (मूसल) साइज डज नाट मैटर।

सात बजे पार्टी शुरु हुई, देसी समय के हिसाब से लोग साढे सात बजे तक आते रहे। आते ही लेट आने के बहानेबाजी, खैर धीरे धीरे पार्टी रंग मे आयी, ऐसे नही भाई, रंग मिलाना पड़ा, बिना रंग मिलाए पार्टी का मजा ही नही आता। सभी गायक धीरे धीरे मूड मे आ गए।सभी जवान मैदान मे थे। सभी एक से बढकर एक बाथरुम सिंगर थे। आज बड़ी मुश्किल से उनको फंसे हुए श्रोता मिले थे, फंसे इसलिए कि गिलास छोड़कर तो कोई उठने से रहा। इसलिए सभी को अपने अंदर छिपे कलाकर को बाहर लाने का नायाब मौका मिला था। अब जिसका कराओके सिस्टम था, वो भी कलाकर बन्दा था, इसलिए पहला झिलाने का पहला हक उसी का था। बन्दे की आवाज काफी अच्छी थी, लेकिन पार्टी का मूड संगीतमय नही था। खैर मामला किशोर कुमार के गानो से शुरु हुआ तो सुरैया, शमशाद बेगम तक जाकर भी नही रुका। सभी ने अपनी दिल की जमकर भड़ास निकाली। अब ये मत पूछना कि किसने अच्छा गाया, सभी कलाकार थे, श्रोता तो कोई था ही नही। अब किससे पूछते। जिससे पूछोगे वही कहेगा कि उसी ने अच्छा गाया।

खाने मे बहुत कुछ था। स्टार्टर मे समोसे, पकोड़े और ढेर सारी दूसरी चीजें थी। मेनकोर्स मे दाल और लजीज कबाब थे, जो शहर के सबसे नामी कबाबची से मंगवाए गए थे। इन कबाब को देखकर मुझे लखनऊ के शामी कबाब और काकोरी कबाब की याद आ गयी। यहाँ के कबाब वालों पर ईरान का ज्यादा प्रभाव है। ऐसा नही कि ये कबाब अच्छे नही होते, लेकिन भारतीय कबाब मे हर शहर (लखनऊ, काकोरी, भोपाल और हैदराबाद) के कबाबों का अपना अलग अलग ही स्वाद होता है। सिर्फ़ मसालों के फर्क से ही ऐसा स्वाद जगाया जाता है कि दिल बाग बाग हो जाता है। खैर जनाब! जो कबाब है उसको इन्वाय किया जाए, इधर उधर भटक कर, पार्टी का मजा क्यों खराब किया जाए।

लगभग एक ढेड़ बजे पार्टी खत्म हुई। पार्टी खत्म करने की भी एक अलिखित रस्म है, जब आपको ड्रिंक सर्व करनी बन्द कर दी जाए, समझो पार्टी समापन की तरफ़ है। फिर भी ठलुए तो ठलुए, दो बजे से पहले कौनो हिला तक नही। सभी को विदा करके, साफ सफाई करके हम भी बिस्तर मे गए। इस तरह से हमारी ठलुआ पार्टी सम्पन्न हुई। अगले हफ़्ते फिर किसी और ठलुए के घर। अब पत्नी तो आपकी भी होगी ही, मायके भी जाती ही होगी, तो फिर कर डालिए ठलुआ पार्टी आप भी इन्ही गर्मियों मे। चलो जी हम भी निकलते है, आप भी टिप्पणी करके ही निकलना। आते रहिए पढते रहिए आपका पसंदीदा ब्लॉग।

19 responses to “ठलुआ पार्टी”

  1. संजय बेंगाणी Avatar

    अच्छी ठेल रही. आइडिया दे दिया है तो अमल भी करके देख लेते है. वैसे यहाँ पड़ोसियों को बिलकुल मतलब होता है कि आप क्या कर रहे हो 🙁 फिर पीना पिलाना यहाँ भी बैन है.
    .-= संजय बेंगाणी´s last blog ..मात्र कानूनों से जानें नहीं बचती =-.

  2. काजल कुमार Avatar

    तो यूं हो रही है ठलुआें की बल्ले बल्ले 🙂

  3. विनय 'नज़र' Avatar

    यह पोस्ट तो बड़ी रोचक है, सच मज़ा आ गये नये आइडिए से…

    .-= विनय ‘नज़र’´s last blog ..सबसे दूर स्थित सुपरनोवा खोजा गया =-.

  4. अन्तर सोहिल Avatar
    अन्तर सोहिल

    आयडि्या बढिया लगा लेकिन आपने हमें बताने में देर कर दी
    हमें तो अब शायद १०-११ महिने इंतजार करना पडेगा, ठलुआ पार्टी देने के लिये
    हा-हा-हा-हा-हा-हा
    प्रणाम स्वीकार करें

  5. amit Avatar

    अब अपन तो ऑफिशियली वेरिफाईड ठलुए हैं, बाकी ठलुए मित्रों के साथ ऐसी पार्टियाँ होती थी, लेकिन अब न मित्र इधर शहर में रहे न ठलुए रहे, इसलिए बीते दिनों को याद कर ही खुश हो लेते हैं! 😉
    .-= amit´s last blog ..हनीमून की दुविधा ….. =-.

  6. दिनेशराय द्विवेदी Avatar

    ठलुआ पार्टी को हम तो हसरत भरी निगाहों से ही देख सकते हैं। पत्नी हमेशा साथ जो रहती है। कभी बाहर जाती भी है तो हमें और साथ ले जाती है।
    .-= दिनेशराय द्विवेदी´s last blog ..भौतिक परिस्थितियाँ निर्णायक होती हैं। =-.

  7. समीर लाल Avatar

    हमारे लिए कौनो मतलब की बात नहीं..ये कभी जाती ही नहीं..अगर गई भी तो हमें साथ लेकर. हमारी ऐसी किस्मत कहाँ!! 🙂
    .-= समीर लाल´s last blog ..इत्ते सारे..बाप रे!! =-.

  8. विवेक सिंह Avatar

    हमें तो पढ़कर ही बहुत अच्छा लगा , ऐसी पार्टी में होंगे तो बहुत मज़ा आयेगा .

    अगले इतवार को हमारी भी ठलुआ पार्टी ही है जिसके होस्ट वे लोग हैं जिनका अबकी बार प्रमोशन हुआ है !
    .-= विवेक सिंह´s last blog ..इन्द्र के नाम खुली चिट्ठी =-.

  9. Gyan Dutt Pandey Avatar

    हम तो ठलुआ नहीं, पोस्ट ठेलुआ ब्लॉगर हैं। बात बेबात पोस्ट ठेलक!
    .-= Gyan Dutt Pandey´s last blog ..नत्तू पांड़े का झूला =-.

  10. रंजन Avatar

    अच्छा आईडिया है.. मजेदार पार्टी..हमेने भी एन्जोए किया..

  11. विवेक रस्तोगी Avatar

    हमारे यहाँ इसे मठ्ठापना या मठ्ठाई करना कहा जाता है।

    ठलुआ पार्टी 🙂
    .-= विवेक रस्तोगी´s last blog ..चिन्डोगु.कोम http://www.chindogu.com आवश्यकता ही अविष्कार की जननी है। =-.

  12. Raman Kaul Avatar

    एक १० साल के बच्चे ने पापा से पूछा, पापा मैं कहाँ से आया हूँ। पापा ने सोचा बच्चे की उमर हो गई है, इसे बता दिया जाना चाहिए। यह सोच कर उसे सारी कहानी समझा दी कि किस प्रकार बच्चे की पैदाइश कैसे होती है। सारी कहानी बच्चे को तो रोचक लगी पर वह कुछ कन्फ्यूज़ हो गया, बोला पापा मेरी क्लास में नया लड़का आया है वह कहता है वह कानपुर से आया है, मैं वही पूछ रहा था कि मैं कहाँ से आया हूँ। इसी तरह मैं ने ट्विट्टर पर यह पूछा था कि पार्टी फोर्स्ड थी या बैचलर — यह नहीं पूछा था कि फोर्स्ड बैचलर क्या होता है। पर आप ने कहानी बता दी तो सुन कर बहुत मज़ा आया।
    .-= Raman Kaul´s last blog ..Use Google Apps for Free – Why Pay for Domain Email =-.

  13. vijay wadnere Avatar

    हा हा हा…
    जीतू दा, आपके पोस्ट पर नहीं, रमण दा के जवाब पर हंसी आई है।
    इसे ही कहते हैं:

    नेकी कर “दरिया में डाल”

    एक्चुअली में तो “जूते खा” है, पर क्या है ना कि बुजुर्गीयत का लिहाज है….. ही ही ही
    .-= vijay wadnere´s last blog ..आईये जाने गॉल्फ़ को-१ =-.

  14. सुरेश चिपलूनकर Avatar

    भई वाह मजा आ गया पढ़कर, कई बार मुँह में पानी भी आया गिलास-कबाब आदि पढ़कर। ऐसी ठलुआ पार्टियाँ हम लोग अक्सर होली या रंगपंचमी के दिन मना पाते हैं साल में सिर्फ़ एक दिन 🙁 (होली का त्योहार साल में ४-५ बार आना चाहिये, जिससे कि सारे ठलुए अपनी भड़ास निकाल सकें)
    .-= सुरेश चिपलूनकर´s last blog ..नारी का सम्मान, सामाजिक मूल्य और TRP के भूखे भेड़िये… Sach Ka Samna, Star Plus, TRP & Dignity of a Woman =-.

  15. Priyankar Avatar

    अरे अपने ठलुआ ब्लॉगर आए थे कलकत्ता . फ़ुरसतिया ने कहा कि मिलना . हमने कहा ठीक . उनके मामा श्री को जो हमारे मित्र भी हैं,फोन किया तो पता चला कि वे पिछले सोमवार को निकल लिए . थोड़ा हम आलस्य कर गए, थोड़ी वे जल्दी . सो मिलना नहीं हो सका . खैर अगली बार सही .

    एक तो ऐसी पार्टी करते हो फिर उसका रंगारंग विवरण देते हो, और कोई काम नहीं है हमें जलाने के अलावा . आगे से पार्टी-वार्टी का विवरण होगा तो हम नाहीं पढेंगे . बताए देते हैं .

  16. अनूप शुक्ल Avatar

    जलवे हैं कुंवारेपन के! लगे रहो। किस्से शानदार हैं! सुनाये रहो!
    .-= अनूप शुक्ल´s last blog ..गर्मी का सौन्दर्य वर्णन =-.

  17. सृजन शिल्पी Avatar

    ठलुवा पार्टी तो बड़ी ठसकदार रही. वर्णन भी जोरदार है. अपन तो ऐसे किस्से केवल सुन सकते हैं और ठहाके लगा सकते हैं.

  18. dhrmandra kumar Avatar

    thluo ki sbsha bhdiya said

  19. vinay kull Avatar

    ” यदि शब्दकोश के अनुसार ठलुआ का अर्थ बेकार और आवारा मान लिया जाय तो इस रूप में भगवान श्रीकृष्ण सबसे बड़े ठलुआ थे . रजा होकर भी बेचारे जीवन भर राजसुख नहीं भोग सके, उल्टे रथ हांकते रहे . आवारा तो खैर थे ही . ” – पंडित कमलापति त्रिपाठी.

    ” ठलुआ शब्द की उत्पत्ति समझना साधारण बात नहीं है . जिस प्रकार तरकारी में अलुआ, सावन में झलुआ , शाखामृग में मलुआ, कुत्तों में कलुआ, सेनापति में नलुआ, पकवान में हलुआ, जंगली जानवरों में भलुआ , रिश्तों में पलुआ, शरीर के अंगों में तलुआ , सौदा-सुलुफ में घलुआ का महत्व है, उसी प्रकार सर्वसाधारण में ठलुआ का महत्व है. ” – पंडित शिव प्रसाद मिश्रा रूद्र

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