अब कहते है कि मुसीबत कभी अकेली नही आती संगी सम्बंधी भी साथ लाती है.ऐसे ही एक छुट्टी वाले दिन शुक्रवार को सवेरे सवेरे किसी ने कालबैल दबायी,हमने अलसाये हुए, यूपी स्टाइल मे हड़काते हुए पूछा “कौन है बे? छुट्टी वाले दिन सुबह सुबह पंगा ले रहा है.”. जवाब मे बाहर से सिर्फ हंसी सुनायी पड़ी और कालबैल फिर दबायी गयी, इस बार कुछ ज्यादा देर तक और वैरीयेशन के साथ. हम दरवाजे तक तो पहुँच ही चुके थे, हमने गरियाते हुए दरवाजा खोला तो सामने दो महानुभावो पप्पू भइया और स्वामी को साक्षात सफेद कपड़ों मे पाया, जैसे फरिश्ते आसमान से ऊतर आयें हो. बेतकल्लूफी मे पप्पू भइया ने मेरा कन्धा दबाया और पूछा “क्यों भइया अभी भी सो रहे हो? चलो जल्दी से कपड़े पहन लो, अभी चलना है. मैने मन ही मन पप्पू,स्वामी और उनकी आने वाली सात पुश्तों की यूपी की मातृभाषा मे घोर घोर तारीफ की और झल्लाते हुए पूछा “क्यो? कहाँ, और अचानक कैसे?”
अब तक पप्पू और स्वामी अन्दर पधार चुके थे, इस बीच स्वामी किचन मे घुसकर फ्रिज से पानी की बोतल उठा लाया और हमेशा की तरह गिलास ढूंढने के चक्कर मे दो चार बर्तन गिरा आया था, बर्तन गिरने की आवाज सुनकर तब तक बैडरूम मे श्रीमती जी की नींद भी उचट चुकी थी. हमको बैठरूम से ही हाजिर होने का सम्मन जारी किया गया, हमने हुक्म की तामील करते हुए अन्दर जाकर मामला एक्सप्लेन किया और श्रीमती जी से चाय बनाने का विनम्र आग्रह किया जो शुक्रवार होने की वजह से ठुकरा दिया गया. भारी मन से हम वापस किचन की तरफ बढे, तो देखा कि पप्पू ने पहले से ही कैटल मे चाय का पानी चढा दिया था और मेरे चेहरे पे बजे बारह देखकर मुस्कराते हुए बोला, “यार तुम अकेले नही हो, हम लोग भी ये सब घर पर झेलकर आयें है, अब तुम बस नित्य क्रिया से निबट लो, मै चाय बनाता हूँ, फिर फटाफट निकलते है.”
मै नित्यकर्म से निबटकर बाथरूम से बाहर निकला तो देखा श्रीमती जी किचन मे पहुँच चुकी थी.शायद उनको हमारी कम और अपने किचन के बरबाद होने की ज्यादा चिन्ता थी.चाय तो खैर बन ही चुकी थी, बस उसको कप मे डालना बाकी था, सभी लोग डाइनिंग टेबिल पर बैठ गये और स्वामी वो तो आदत के मुताबिक मिठाई के डब्बे को ढूंढकर उस पर हाथ साफ कर रहा था.श्रीमती जी को देखते हुए ही खिसियाते हुए डब्बा एक किनारे रख दिया.तब तक श्रीमती जी ने मिठाई,बिस्कुट और नमकीन वगैरहा की प्लेटे लगा दी.और हाँ इस बार मिठाई की प्लेट स्वामी से कुछ दूरी पर रखी गयी और सब लोग चाय पीने बैठ गये. चाय के दौरान मैने पूछा “ऐसी क्या कयामत आ गयी कि सुबह सुबह ही आ टपके, अबे फोन तो कर दिया होता”, स्वामी बोला, “प्रोग्राम ही जल्दी का बना है, अब जल्दी से तैयार हो जाओ, क्रिकेट खेलने चलना है.”
क्रिकेट की बात सुनकर श्रीमती जी के चेहरे के भाव बदलने लगे, दरअसल क्रिकेट खेलने के चक्कर मे मै कई बार अपनी टांगे और हाथ तुड़वा चुका था, सो इस बार भी उसी का अन्देशा दिख रहा था.अब पप्पू और स्वामी के सामने तो हमे कुछ नही कहा गया लेकिन ईशारो ही ईशारो हमे समझा दिया गया, कि अबकि बार टांग या हाथ टूटा तो हम सिंकायी नही करेंगे. अब दोस्ती यारी का लिहाज करते हुए हमने कपड़े पहने और दोनो के साथ निकल लिये.
रास्ते मे पप्पू और स्वामी ने समझाया कि कैसे वे लोग एक मलयाली क्रिकेट टीम के लिये खेलने जाते थे, वहाँ पर उनके साथ तब तक तो अच्छा बर्ताव होता रहा जब तक उनके अपने बन्दे कम होते थे, लेकिन जब उनके अपने बन्दे पूरे हो गये तो पप्पू को आखिरी मे बैटिंग दी गयी और स्वामी को तो एक मैच मे बाहर ही बिठा दिया गया. बस इस तौहीन को झेलकर दोनो के दिमाग मे अपनी टीम बनाने का कीड़ा लग गया, जोश जोश मे पप्पू ने जो एक दीनार भी अपनी जेब से खर्च करना अपनी तौहीन समझता था, जाकर एक सौ पचास दीनार की क्रिकेट किट खरीद लाया और बस मामला शुरु. इससे पहले मै आपको कुछ एक्सप्लेन कर दूँ. कुवैत मे क्रिकेट ज्यादा पापुलर नही है,यहाँ पर ज्यादातर लोग फुटबाल और टैनिस ही खेलते है, हाँ कुछ फिलीपीनी लोग बीच बालीबाल जरुर खेलते है. क्रिकेट खेलने वालों मे ज्यादातर पाकिस्तानी,भारतीय और श्रीलंकन ही होते है. इसलिये क्रिकेट का सामान भी दुकान पर ज्यादातर उपलब्ध नही होता और जो होता है बहुत महंगा होता है.लोग बाग अपनी अपनी अपनी क्रिकेट किट अपने अपने देश से खरीद कर लाते है. पप्पू ने सारा सामान किसी पाकिस्तानी से खरीदा था जो क्वालिटी मे इतना अच्छा तो नही था लेकिन फिर भी ठीक था.अब चूँकि यहाँ पर मिट्टी नही होती इसलिये क्रिकेट खेलने के लिये या तो कंक्रीट की पिच चाहिये होती है या फिर मैट जरूरी हो जाता है.खैर इन लोगो ने सारा जुगाड़ कर रखा था सो मेरे लिये किसी काम की गुंजाइश नही थी, सिवाय मिर्जा साहब को तैयार करने के लिये, तब तक गाड़ी मिर्जा के घर तक पहुँच ही गयी थी. स्वामी ने गाड़ी से बाहर आने से इन्कार कर दिया था.पप्पू के साथ हम मेन डोर की तरफ बढे और हमने हिचकिचाते हुए कालबैल के बटन पर हाथ रख दिया …………………..
शेष अगले अंक मे…….. (क्योंकि मेरे दाँये हाथ मे चोट लग चुकी है, जी हाँ क्रिकेट की वजह से ही…इस बारे मे पूरी कथा अब कल ही लिख पाऊँगा.)
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