ज़ख्म़ जो आप की इनायत है इस निशानी को क्या नाम दें हम
प्यार दीवार बन के रह गया है इस कहानी को क्या नाम दें हम
आप इल्ज़ाम धर गए हम पर एक एहसान कर गए हम पर
आप की ये मेहरबानी है मेहरबानी को क्या नाम दें हम
आप को यूं ही ज़िन्दगी समझा धूप को हमने चांदनी समझा
भूल ही भूल जिस की आदत है इक जवानी को क्या नाम दें हम
रात सपना बहार का देखा दिन हुआ तो गु़बार सा देखा
बेवफ़ा वक़्त बेज़ुबां निकला बेज़ुबानी को क्या नाम दें हम
-सुदर्शन फाकिर
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