आज इस मसले पर बवाल मच गया है, भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने पाकिस्तान जाकर कायदे आजम जिन्ना के बारे मे अपने विचार व्यक्त किये और भारतीय राजनीति मे तो मानो तूफान आ गया है. हालात यहाँ तक पहुँच चुके है कि आडवाणी को अपने अध्यक्ष पद से इस्तीफा तक देना पड़ा है. लेकिन क्या जिन्ना धर्मनिरपेक्ष थे? सबसे पहले तो मै यह कहना चाहता हूँ कि इससे क्या फर्क पड़ता है कि कायदे आजम मौहम्मद अली जिन्ना, धर्मनिरपेक्ष थे या नही. बँटवारे का दर्द तो सभी को थो, वो चाहे हिन्दू था, मुसलमान या फिर किसी भी धर्म का. हमने आजाद और खुशहाल हिन्दुस्तान चाहा था, ना कि भारत और पाकिस्तान. अब जब इतिहास की पर्ते उधेड़ी जा रही है, तो मुझे लगा कि मै जिन्ना साहब के भाषण के वो अंश यहाँ प्रकाशित करूँ जो उन्होने पाकिस्तान के राष्टपति बनने पर ११ अगस्त, १९४७ को पाकिस्तान की संसद मे कहे थे. वैसे तो जिन्ना साहब का भाषण काफी लम्बा था, मै सिर्फ कुछ अंश ही उद्दत कर रहा हूँ.
I cannot emphasize it too much. We should begin to work in that spirit and in course of time all these angularities of the majority and minority communities, the Hindu community and the Muslim community, because even as regards Muslims you have Pathans, Punjabis, Shias, Sunnis and so on, and among the Hindus you have Brahmins, Vaishnavas, Khatris, also Bengalis, Madrasis and so on, will vanish. Indeed if you ask me, this has been the biggest hindrance in the way of India to attain the freedom and independence and but for this we would have been free people long long ago. No power can hold another nation, and specially a nation of 400 million souls in subjection; nobody could have conquered you, and even if it had happened, nobody could have continued its hold on you for any length of time, but for this. Therefore, we must learn a lesson from this.
और अब वो अंश जिसका उदाहरण आडवाणी ने दिया था
You are free; you are free to go to your temples, you are free to go to your mosques or to any other place or worship in this State of Pakistan. You may belong to any religion or caste or creed that has nothing to do with the business of the State.
अब ये आप लोगों पर निर्भर करता है कि जिन्ना को धर्मनिरपेक्ष माने या नही…..वैसे मै फिर कहूँगा कि क्या फर्क पड़ता है?
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