जन्म से कानपुरी, मन से घुमक्कड़। रोटी की तलाश में मिट्टी से दूर, पर जब भी मन बेचैन होता है, कागज़ पर कलम खुद-ब-खुद चल पड़ती है। कोशिश रहती है उन बिखरे हुए पलों को शब्दों के धागे में पिरोने की—कुछ यादें, कुछ अनुभव, कुछ विदेशों के किस्से, कुछ अपनी मिट्टी की महक, कुछ अनकही बातें, और कुछ पहचाने ज़ज्बात।यूं ही लिखते हुए आपका हमसफ़र, जितेंद्र चौधरी, फिर से हाज़िर हूँ, एक नए सफ़र पर। इस बार अपने शहर कानपुर की यात्रा के साथ।
चाहे कर लो, दुनिया टूर, अजब गजब है कानपुर
चिकाई, भौकाल, बकैती, कन्टाप, हपक, लब्भड़, चिरांध, मठाधीश, झाड़े रहो कलक्टरगंज जैसे शब्द आपको सुनाई दिए तो समझो कि आप कानपुर शहर में हैं।यह कानपुर की अपनी बोली है, जो आज भी नित नए शब्द गढ़ रही है। कानपुर सिर्फ शहर नहीं है, ये एक जीवनशैली है, यहां की मिट्टी में सिर्फ़ धूल नहीं, बल्कि वो अनुभव बसा है जिसने हमें जिंदगी का असली मतलब सिखाया। कानपुर की गलियां, जिनमें मेरे बचपन की यादें बसी हुई हैं, आज भी वैसे ही जीवित हैं। लगता है जैसे वक़्त थम गया हो और पुरानी स्मृतियों की किताब फिर से खुल गई हो।
कानपुर – लोग, एहसास और अपनापन
यहां की बोली में जो ठेठपन है, वो सिर्फ़ कानपुर का ही हिस्सा है। ‘कहां हो भईया?’ या ‘का हाल गुरु?’ में जो अपनापन झलकता है, वो कहीं और नहीं मिलता। कानपुर के लोग दिल के इतने बड़े होते हैं कि पराए को भी अपना बना लेते हैं। हमारी बातें बड़ी साधारण सी होती हैं, पर उनके पीछे छिपा भाव विराट होता है। यही वजह है कि कानपुर की बोली सुनते ही दिल खुश हो जाता है।यहाँ की ठेठ बोली में वो अपनापन है, जो कंही नहीं मिलता। कानपुर के लोग फक्कड़ होते हैं, सीधी बात, सरल जीवन। यहां कोई दिखावा नहीं, कोई बनावट नहीं। दोस्ती के लिए यहां के लोग जान लुटा देते हैं, और ये दोस्ती सिर्फ़ जुबान से नहीं, दिल से निभाई जाती है। यही सादगी और साफगोई कानपुर को खास बनाती है।
बिना खाए कैसे जाओगे गुरु!
और यहां का खानपान? कानपुर का खाना सिर्फ पेट नहीं भरता, वो दिल भर देता है। परेड में चाट खाते वक्त मसाले की खुशबू आपको पुराने दिनों में ले जाती है। ठग्गू के लड्डू और बनारसी की चाय का स्वाद, बादशाह की बिरियानी, बिरहाना रोड की मलाई मक्खन, शंकर के गोलगप्पे , जलाराम की नमकीन, बुद्धसेन की कचौड़ी या शिखरचंद की लस्सी, शब्दों में बयान करना मुश्किल है। अब चूँकि हम खान-पान के शौकीन लोग हैं इसलिए हर गली में स्वाद बिखरा हुआ है।
संस्कृति, त्यौहार और जीवनशैली
कानपुर सिर्फ़ एक शहर नहीं, यह एक जीवंत संस्कृति है। यहां के घाट, विशेषकर गंगा घाट पर होने वाली आरती, आपको आध्यात्मिकता से भर देती है। परमट में बाबा आनंदेश्वर का शिवालय या पनकी में बजरंग बली की शरण, इस्काॅन मंदिर हो या शनि धाम। शाम को जेके मंदिर के प्रांगण में फव्वारे के सामने बैठकर, आप अपनी सारी चिंताएं भूल जाते हैं। कानपुर की संस्कृति और परंपराएं भी इस शहर की पहचान का अभिन्न हिस्सा हैं। यहां का त्योहारों का उत्सव, चाहे वह हफ्ते भर चलने वाली होली हो या बेहतरीन दिवाली, ईद, मोहर्रम या फिर दशहरा और गंगा मेला – यहां की खुशियों में पूरे शहर की भागीदारी होती है।
एतिहासिक विरासत
अगर हम कानपुर के इतिहास पर नज़र डालें, तो यह शहर सिर्फ़ एक शहर नहीं, बल्कि स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा है। 1857 की क्रांति में कानपुर ने अपनी अमिट छाप छोड़ी। नाना साहेब पेशवा की अगुवाई में इस शहर ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ़ जो आवाज़ उठाई, उसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। कानपुर का ‘बीबीघर कांड’ और ‘नाना साहेब की हवेली’ जैसे स्थल आज भी उन वीर गाथाओं की गवाही देते हैं, जिन्होंने हमें आज़ादी की ओर कदम बढ़ाने की प्रेरणा दी।
औद्योगिक क्रांति का प्रणेता
इतिहास की इन गहराइयों से निकलते हुए, कानपुर ने औद्योगिक क्रांति की दिशा में भी अपनी पहचान बनाई। कभी इसे ‘पूर्व का मैनचेस्टर’ कहा जाता था, क्योंकि यहां का कपड़ा उद्योग और चमड़ा उद्योग पूरे देश में प्रसिद्ध था। 19वीं और 20वीं शताब्दी में कानपुर देश का प्रमुख औद्योगिक केंद्र बन गया। ‘लाल इमली’ और ‘एल्गिन मिल्स’ जैसी कपड़ा मिलें, और जाजमऊ का चमड़ा उद्योग – ये सब कानपुर की औद्योगिक धरोहर का हिस्सा हैं। इन उद्योगों ने हजारों लोगों को रोज़गार दिया और कानपुर को आर्थिक रूप से सशक्त बनाया। आज भी कानपुर अपने चमड़ा उद्योग के लिए विश्व भर में जाना जाता है। जाजमऊ में स्थित टेनरियों से निकलने वाला चमड़ा विदेशों मे निर्यात होता है। कानपुर का पान मसाला उद्योग पूरे देश में मशहूर है। बाजारों की रौनक? यह शहर अपने छोटे-बड़े थोक और खुदरा बाज़ारों के लिए जाना जाता है। पूरे प्रदेश से लोग यहाँ पर माल खरीदने आते हैं। बिरहाना रोड से लेकर, जनरल गंज, सीसामऊ, गुमटी से लेकर जाजमऊ। कपड़े से लेकर चमड़े के उद्योग तक, हर बाज़ार की अपनी एक अनूठी पहचान है। कानपुर की रग रग में व्यापार बसता है।
शिक्षा का केंद्र
औद्योगिक विकास के साथ-साथ कानपुर ने अपनी शिक्षा और विज्ञान की दिशा में भी कदम बढ़ाए। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT Kanpur), HBTI और ढ़ेर सारे प्रतिष्ठित संस्थानों ने इस शहर को देश की शिक्षा और शोध के क्षेत्र में नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया। यह संस्थान न केवल कानपुर बल्कि पूरे भारत के छात्रों के लिए एक प्रेरणा का स्रोत है। यहां से पढ़ने वाले छात्र विश्व स्तर पर देश का नाम रोशन कर रहे हैं। एक तो ये लेख ही लिख रहा है 😜
कानपुर की व्यथा-कथा
एक समय था पूर्वी उत्तर प्रदेश के लगभग हर एक घर से एक व्यक्ति कानपुर में काम करने आता था। शहर में लाल इमली जैसी बड़ी कंपनी और सैकड़ों छोटी बड़ी टेक्सटाइल मिलें हुआ करती थी। लेकिन गंदी राजनीति इस शहर के उद्योग को ले डूबी, बची खुची कसर लेबर यूनियन ने पूरी कर दी और इस तरह एक विकसित औद्योगिक नगर को मिलों के कब्रगाह में तब्दील कर दिया गया। शहर ने जाने कितने झटके झेले, ना जाने कितनी बार सौतेला व्यवहार हुआ, ना जाने कितनी बार बिजली कटौती हुई और ना जाने कितनी बार शहर के व्यापार को खत्म करने की साज़िशें हुई, लेकिन अलमस्त कनपुरिया लोगों ने अपनी जिंदादिली और मस्ती नहीं छोड़ी। यहां की मिट्टी की खुशबू और कानपुरियों की जिंदादिली ही उनकी पहचान हैं।कानपुर में रहना सिर्फ़ रहना नहीं, यहां की संस्कृति में डूब जाना है। ये शहर दिलों में बसता है, और इसके हर मोड़ पर ज़िन्दगी की एक नई सीख छिपी है। जो कानपुर का है, वो जानता है कि दिल से जुड़ना क्या होता है और वो जानता है कि कानपुर कभी दिल से नहीं निकलता। ये लेख समर्पित है उन सभी कनपुरिया को, जो दुनिया में कंही भी हैं, अपने शहर को याद करते है। अपने सभी कनपुरिया दोस्तों को इस लेख में टैग करिए।
वैसे तो कानपुर कोई बड़ा पर्यटन स्थल नहीं है, लेकिन एक बार कानपुर आना बनता है। ये शहर अभावों में भी जीवन जीने का सलीका सिखाता है। शायद भावनाओं में बहकर कुछ ज्यादा ही कह गया, लेकिन ये दिल के ग़ुबार थे। आशा है आप अन्यथा नहीं लेंगे। घुमक्कड़ी का सफ़र यूँ ही जारी रहेगा, मेरे हमसफ़र बनने के लिए , मुझे फॉलो करना मत भूलिएगा।
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