सबसे पहले तो एक डिसक्लेमर: यह एक काल्पनिक लेख है, इसका उद्देश्य लोगों को हँसाना है, ना कि किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाना। इसलिये कोई चप्पल जूता लेकर हमारे द्वारे ना आये। और एक आवश्यक सूचना यदि इस डिसक्लेमर के बावजूद आप आवेश मे आकर अपने चप्पल हमारी तरफ़ फ़ेंक कर मारे तो कृप्या करके दोनो पैरो की चप्पले फ़ेंके, अन्यथा एक चप्पल हमारे किसी काम की नही, उसे वापस आपकी तरफ़ उछाल दिया जायेगा।
अभी कुछ दिनो पहले मेरे को किसी ने एक मेल फ़ारवर्ड की थी, जिसमे भगवान श्रीराम द्वारा,त्रेता युग मे लंका पर चढाई के लिये रामेश्वरम से श्रीलंका तक बनाये गये पुल की सैटेलाइट इमेज के चित्र थे, बाद मे पता चला किसी रामभक्त ने बहुत जतन से उन चित्रों को असली रूप देने की कोशिश की थी। ताकि रामायण की सत्यता सिद्द की जा सके। अब मै यहाँ पर उन चित्रों की सत्यता और असत्यता सिद्द करने नही बैठा हूँ बल्कि मै तो बस ये अन्दाजा लगा रहा था कि यदि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम ने वो पुल त्रेता युग की जगह कलियुग मे बनाया होता तो क्या नजारा होता। जरा आप भी देख लीजिये, तो जनाब पेश है, किस्सा ए लंका सेतु।
चित्र साभार : डीएनए अखबार
राम बड़े हैरान परेशान से इधर उधर टहल रहे थे, समुन्द्र देवता भी कुछ कोआपरेट नही कर रहे थे, लक्ष्मण ने भाई को चिन्तावस्था मे देखा तो पूछा “ऐसा क्या मसला है बिग ब्रदर, व्हाई आर यू सो टेन्सड?” राम ने दु:खी अवस्था मे कहा ” ये समुन्दर देव हमारी बात सुन ही नही रहे, लगता है इनको कुछ डोज देना ही पड़ेगा।” इतना कहकर उन्होने अपने हाई टेक धनुष बाण को उठाया और गाइडेड तीर को समुन्दर की तरफ़ तान दिया। समुन्दर पानी पानी से धुंआ धुंआ हो गया, बहुत विचलित हो गया, उसने भी सुन रखा था, यदि बाण, धनुष से निकल गया तो फ़िर कुछ नही किया जा सकता, इसलिये मान्ड्वली करने मे ही भलाई है। लेकिन क्या करे, एक तरफ़ रावण (सो काल्ड भाई॒!) और दूसरी तरफ़ कल के लड़के।इधर कुंआ और उधर खाई, पिटाई तो दोनो तरफ़ से ही होनी थी, लेकिन फ़िर भी समुन्दर ने बीच का रास्ता निकालते हुए राम को पुल बनाने का सुझाव दिया। ये सुझाव हजार बवालों की जड़ थी, मुझे आज तक समझ मे नही आया, पुल बनाने के सुझाव को क्यों एक्सेप्ट कर लिया गया।बीच से समुन्दर को सुखाकर अपने आप रास्ता बनाने का सुझाव तुलसीदास को क्यों नही आया। राम को पुल बनाने मे ट्रेप तो दिखा, लेकिन फ़िर भी मौके की नजाकत को देखते हुए एग्री कर गये। क्योंकि गाइडेड मिसाइल भी लार्ज प्रोडक्शन मे नही थी, सब यंही खतम करते तो रावण पर क्या बरसाते।अब परेशानी थी, आर्किटेक्ट की, नल और नील (क्या कहा, नील एन्ड निकी, अमां नही यार, वो तो बिस्तर से बाहर ही नही निकले !,पिक्चर आयी भी और गयी भी गयी, देख नही सके, सिर्फ़ पोस्टर से ही सन्तोष करना पड़ा।चलो ज़ी सिनेमा या किसी टीवी चैनल पर अगले महीने देख लेंगे) आगे बढकर, राम को कन्वीन्स कर दिए कि हम पुल बना लेंगे। लेकिन बोले कि मसला गम्भीर है इसलिये अलग अलग सरकारी विभागों से नो आब्जेक्शन सर्टिफ़िकेट लेना पड़ेगा।
राम ने सोचा, एक पंगे से बाहर निकले और दूसरा सामने खड़ा हो गया। जब दुनिया भर में सेतु बनने की बात फ़ैली तो सबसे पहले ग्रीनपीस वाले आये (अक्सर यही लोग सबसे पहले पिलते हैं, तू कौन खांम खा तरीके से) वो अपनी बोट लेकर रामेश्वरम कि किनारे कैम्पिंग कर दिये, बोले हम इस पुल के निर्माण प्रोसेस का अध्ययन करेंगे और इन्श्योर करेंगे कि इससे पर्यावरण पर कोई खतरा तो नही है। राम की सेना को उनका खर्चा भी उठाना पड़ गया। अभी इस पंगे से बाहर निकले ही थे, तो मछुवारों का एक एनजीओ (जिनकी एक मल्टीनेशनल फ़िशिंग कम्पनी से सैटिंग और बैकिंग थी) सामने आया और बोला कि पुल नही बनना चाहिये, नही तो समुन्दर के इस हिस्से में मछलियों का अकाल पड़ जायेगा। इसलिये हम पुल के बनाने का विरोध करते है, फ़िर वही रोजाना धरना प्रदर्शन। अब रामजी भी बहुत सोचे, चार दिन तो समुन्दर देव खा गया, एक हफ़्ता ये लोग खा जायेंगे, फ़िर जामवन्त ने भी चुपके से बताया, कि रोजाना रात को ग्रीनपीस और एनजीओ वाले १०,००० की तो दारू पी जाते है, पाँच दिन का कुल मिलाकर पचास हजार तो हो ही चुका है,वो भी सब हमारे खाते में, इसलिये निगोशियेशन करके कोई आउट आफ़ कोर्ट सैटिलमेन्ट कर लो, कोर्ट कचहरी मे तो बहुत दिक्कत हो जायेगी यहाँ रामेश्वरम तो सेशन कोर्ट भी नही है, बहुत दूर जाना पड़ेगा। और तमिलनाडु के कोर्ट मे मामला भी बहुत लम्बा खिंचता है शंकराचार्य को ही लो।अभी तक पंगे से बाहर नही निकल सके हैं। आखिरकार रामजी को भी हथियार डालने पड़े और फ़िशिंग कम्पनी को १० साल के एक्सक्लुसिव फ़िशिंग राइटस का आश्वासन देने के बाद ही एनजीओ ने धरना प्रदर्शन बन्द किया। लेकिन फ़िर भी ये तय हुआ कि एनजीओ वाले पुल के बनने तक यहीं डेरा डाले रहेंगे,क्यों? अमां फ़्री की दारू और कहाँ मिलती?
अब मसला था, मन्त्रालयों से एनओसी लेने का। ये काम सौंपा गया लक्ष्मण को।वो हनुमान के कन्धे पर बैठ्कर दिल्ली चले गये।दिल्ली में पर्यावरण मन्त्रालय के सैक्रेटरी शुकुल बाबू फ़ाइल पर कुन्डली मारकर बैठ गये, बोले ये पुल तो पर्यावरण को नुकसान पहुँचायेगा फ़िर इत्ता बड़ा प्रोजेक्ट बिना फ़िजिबिलिटी स्टडी किये तो करा नही सकते। लगे हाथों अपने साले की सिविल कन्सल्टिंग कम्पनी का कार्ड थमाये और बोले जब तक फ़िजिबिलिटी स्टडी नही होती तब तक फ़ाइल आगे नही बढेगी। मरता क्या ना करता, लक्ष्मण ने कन्सल्टिंग कम्पनी को भी हायर कर लिया। अब कन्सलटेन्ट ने लम्बी चौड़ी फ़ीस और साले ने अपने जीजा का अच्छा खासा कट लेने के बाद सवालों की झड़ी लगा दी। विदेश मंत्रालय वाले पुत्तु स्वामी से पहले से ही शुकुल ने सैटिंग कर रखी थी। इसलिये सजेस्ट किया गया कि सबसे पहले तो विदेश मंत्रालय से एप्रोवल लिया जाय, क्योंकि पुल अन्तर्राष्ट्रीय सीमा मे बनेगा। उधर लंका की सरकार को पता चला तो उन्होने भी यूएन को प्रोटेस्ट दर्ज करवा दिया बोले कि ये पुल तो बहाना है, भारत अपने पड़ोसी मुल्क के शान्त माहौल को बिगाड़ना चाहता है। उधर राम की समस्यायें बढती जा रही थी, एक के बाद एक नये पंगे सामने आते जा रहे थे।इधर एक मिनिस्ट्री से एप्रुवल मिलता तो दूसरी मिनिस्ट्री टांग अड़ा देती, किसी तरह से सभी मिनिस्ट्री से एप्रोवल प्राप्त किया गया तो एक मनचले ने चिन्चपोकली मे जनहित याचिका दायर कर दी, और कहा कि राम की सेना के पास तो क्वालीफ़ाइड आर्किटेक्ट ही नही है, नल और नील ने तो किसी यूनिवर्सिटी से डिग्री नही ली, पता नही किसी किश्किन्धा यूनिवर्सिटी से पार्ट टाइम, करैस्पोन्डेन्स कोर्स किया है। इसलिये इतने बड़े पुल का काम दो नौसिखियों के हाथ मे नही दिया जा सकता। अब रामजी फ़िर से परेशान हैं।
आखिरी समाचार मिलने तक, राम की सेना रामेश्वरम मे डेरा डाले हए है, एनजीओ दारु पर दारु पिये जा रहे हैं, फ़िशिंग कम्पनी मछलियां पकड़े जा रही है, लंका सरकार ने सुरक्षा परिषद मे गुहार लगाई हुई है, अमरीका वाले आये दिन श्रीलंका और भारत का दौरा किये जा रहे हैं। दोनो जगह अलग अलग बयानबाजी कर रहे हैं।शुकुल ने लक्ष्मन से मिले माल से अपने बेटे को सिविल(पुल डिजाइन) मे डिप्लोमा करवाना शुरु करवा दिया है, इस आशा मे जब तक पुल का निर्माण शुरु होगा, तब तक तो बेटा डिप्लोमा कर ही लेगा, तब कंही ना कंही फ़िट करवा देंगे। विदेश मंत्रालय वाले पुत्तु स्वामी माल हजम कर गये, क्योंकि मन्त्री जी बदल गये, अब नया मन्त्री तो नया सेक्रेटरी, तो फ़िर से माल पानी पहुँचाना पड़ेगा।जनहित याचिका वाले मनचले को और कुछ नही राम एन्ड पार्टी को करीब से देखना था, इसलिये तारीख पर तारीख पड़वा रहा था, मामला अभी तक अदालत मे लम्बित है, और राम एन्ड पार्टी रामेश्वरम चिन्चपोकली के बीच शटलिंग कर रही है। और राम की समझ मे नही आ रहा कि पुल बने तो कैसे।
आपके पास है क्या कोई आइडिया?
(इस लेख का आइडिया(#$@? टोपो बोलो यार) रमेश सेठ के डीएनए मे छपे लेख से लिया गया)
Leave a Reply