अक्षरग्राम अनुगूँजः दसवाँ आयोजन
“एक पाती ‘…’ के नाम”
मेरे पाठकों और मित्रों मे आजकल ज्यादा ही चिन्ता है कि मेरा पन्ना पर ब्लाग क्यों नही लिखे जा रहे है? दरअसल आजकल मै कुछ ज्यादा ही व्यस्त चल रहा हूँ, क्योंकि कुछ तो आफिस की व्यस्तता, फिर घर परिवार के साथ समय निकालने की बाध्यता. दरअसल मई का महीना आते आते कुवैत का माहौल बदलने लगता है, बच्चों के स्कूल मई के आखिरी तक चलते है और लोग बाग जून के पहले दूसरे हफ्ते से अपनी अपनी वार्षिक छुट्टियों पर निकल जाते है. इसलिये आफिस मे जो भी काम होना होता है, फरवरी से मई/जून तक जोरशोर से होता है. और आफिस से बाहर का माहौल पूछो तो क्या बताये….मई की झुलसाई गर्मी मे भी बाजार लोगों से खचाखच भरे रहते है, क्यों? शापिंग के लिये भई, और क्या. अब हर वैवाहिक जीवन की कुछ बाध्यताये होती है, कि भई जब पत्नी को ड्राइवर चाहिये तो पति को ड्राइवर बनना पड़ता है,सामान उठाने के लिये कुली बनना पड़ता है और उससे बड़ी बात, सारे खर्चों को वहन करने के लिये कैशियर तक बनना पड़ता है. इसलिये आफिस, घर परिवार के बाद ब्लाग का नम्बर आता है और पिछले काफी दिनों से ब्लाग का नम्बर ही नही आ पा रहा था.आशा है अब दुनिया भर के पति लोग मेरी बात को समझेंगे.
जब रवि भाई ने ख़त लिखने के लिये आदेश किया, तो पहले तो सोचा कि चलो रामाधार हलवाई के बेटे शिब्बू का ख़त यहाँ लिख दूँ, फिर ना जाने क्या सोच कर नही लिखा, क्योंकि उस ख़त के लिखने से जो बवाल होता, वो थामे ना थमता, फिर मामला ख़त का था, और वो किस्सा तो मोहल्ला पुराण के लायक था, इसलिये उसको मोहल्ला पुराण के लिये छोड़कर फिर कुछ और सोचना पड़ा. अब मसला था कि कौन से ख़त को सार्वजनिक किया जाय, या फिर नया ख़त लिखा जाय. अब मै कोई खुला ख़त लिखकर कोई मसला खड़ा नही करना चाहता था इसलिये सोचा कि चलो अपनी जिन्दगी से रिलेटेड ही कुछ बताया जाय.अब पहले प्यार की बातें तो मै आपको बता ही चुका हूँ, लेकिन मेरा इरादा किसी भी ख़त को सार्वजनिक करने का नही है, बस मै तो आपको उस ख़त से सम्बंधित बाते बताना चाहता हूँ. तो जनाब ख़तो खिताबत तो हमने भी बहुत की, लेकिन जो मजा पहले प्यार के ख़तो खिताबत मे आया वो बात ही कुछ और थे. उस जमाने मे ख़त सांसो का काम करते थे, ख़त फूल थे, खुशबू थे, सितारे थे,पैगाम थे,नजारें थे. अगर ख़त नही आता तो दिल बैचेन होता था और ख़त आता था कि दिल इस तरह धड़कता था जैसे कलेजा मुँह को आने को होता. एक ही सांस मे ख़त को पढा जाता, फिर उसी पल ख़त का जवाब देने का जुनून सवार होता, ना जाने कितने ख़त लिखे जाते, फाड़े जाते, फिर लिखे जाते………… और ये दौर तब तक चलता जब तक जवाबी ख़त का मजमून तैयार नही हो जाते. खैर जनाब, जब इश्क अपने इन्तहाई मंजिल यानि जुदाई तक पहुँचा तो हमारे माशूक ने सारे ख़तों की डिमान्ड कर डाली या कहा गया उन सारे ख़तो को जला दिया जाय. मैने काफी सोच विचार के बाद एक जवाबी ख़त लिखा जिसके आखिरी मे यह नज्म लिखी, आप भी नोश फरमाइये.
प्यार मे डूबे हुए खत मै जलाता कैसे
तेरे हाथों के लिखे ख़त मै जलाता कैसे
जिनको दुनिया की निगाहों से छुपाये रखा
जिनको एक उम्र कलेजे से लगाये रखा
दीन जिनको जिन्हे ईमान बनाये रखा
तेरी खुशबू मे बसे ख़त मै जलाता कैसे…..
जिनका हर लफ्ज मुझे याद पानी की तरह
याद थे मुझको जो पैगाम ए जुबानी की तरह
मुझको प्यारे थे, जो अनमोल निशानी की तरह
तेरी खुशबू मे बसे ख़त मै जलाता कैसे
तूने दुनिया की निगाहों से जो बचकर लिखे
साल हा साल मेरे नाम बराबर लिखे
कभी दिन मे तो कभी रात को उठकर लिखे
तेरे खुशबू मे बसे ख़त मै जलाता कैसे
प्यार मे डूबे हुए खत मै जलाता कैसे
तेरी खुशबू मे बसे ख़त मै जलाता कैसे…
तेरे हाथों के लिखे ख़त मै जलाता कैसे
तेरे खत आज मै गंगा मे बहा आया हूँ
तेरे खत आज मै गंगा मे बहा आया हूँ
आग बहते हुए पानी मे लगा आया हूँ…………..
रवि भाई, माफी चाहूँगा, समय की कमी से इस बार की अनुगूँज मे सक्रिय रूप से शामिल ना हो सका और इस ख़त वाले मुद्दे पर ज्यादा प्रकाश नही डाल पाया, वैसे शिब्बू के ख़त का किस्सा पैन्डिंग रहा, उस बारे मे समय मिलते ही लिखूँगा.
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