इधर फिर से आरक्षण की बात शुरु हो गयी है। उच्च शिक्षण संस्थानो जैसे आई आई टी और आई आई एम में आरक्षण को 49% प्रतिशत से अधिक करने की चर्चा मात्र से छात्रों,शिक्षाविदों और टीवी चैनलों पर वाद विवाद शुरु हो गया है।थकेले अर्जुन सिंह के पास कोई दाँव नही था, चलाने के लिये, इसलिये इतिहास मे दर्ज होने के लिये आखिरी दाँव चला है। पता नही ये सठियाई उम्र का खेल है या फिर सोची समझी राजनीति, लेकिन कुछ भी हो है, बहुत गन्दी।मगर क्या करें “गन्दा है पर धन्धा है ये“।
अपने छोटे से फायदे के लिये ये राजनीतिज्ञ कुछ भी कर सकते है।अब अर्जुन सिंह को ही लो, उन्हे क्या हासिल हुआ? जब बीजेपी के मुरली मनोहर जोशी, शिक्षा का भगुवाकरण करने की कोशिश मे जुटे हुए थे, तब कांग्रेस वाले चीख चीख कर बवाल मचा रहे थे, अब देखिये, अर्जुन सिंह ने आते ही भगुवाकरण को मुसलमानो के तुष्टीकरण मे बदल दिया। बीच बीच मे मार्क्सवादियों ने भी अपनी अपनी चलाई। चलो यहाँ तक तो ठीक था लेकिन पंगा अब शुरु हुआ है, जब आरक्षण का भूत फिर से बक्से से बाहर निकला है, इसके जिम्मेदार है अर्जुन सिंह।
आज जब भारत तरक्की की राह पर आगे बढ रहा है तो उसे फिर से पीछे धकेलने की साजिश है ये।समाज को दो हिस्सों मे बाँटने की साजिश है।मै तो आरक्षण के औचित्य पर ही सवाल उठाता हूँ।आजादी के पचास साल बाद भी यदि हम आरक्षण की राजनीति करते रहे तो लानत है हम पर। मेरे कुछ सवाल है, शायद कोई आरक्षण समर्थक जवाब देना चाहे:
- क्या दलित आज भी पिछड़े हुए है? यदि पिछड़े हुए है तो आजतक के आरक्षण का किया धरा सब पानी मे गया। है ना? और यदि नही पिछड़े है तो काहे का आरक्षण?
- देश मे एक व्यक्ति एक संविधान क्यों नही लागू होता?
- आरक्षण से दलित वर्ग को आज तक कितना लाभ हुआ?
- हम हर जगह खुली प्रतियोगिता की बात करते है, तो फिर सभी नागरिको समान प्रतियोगिता का अवसर क्यों नही देते?
- कब तक हम वर्ग विशेष को आरक्षण प्लेट मे रखकर देते रहेंगे?
- सामजिक न्याय के नाम पर हम कब तक योग्य प्रतिभा का गला घोंटते रहेंगे?
- कब तक ये वोट की गन्दी राजनीति चलती रहेगी?
अर्जुन सिंह कोई समय सीमा निर्धारित कर सकते है क्या? कि कब तक दलित वर्ग और पिछड़ा वर्ग समाज की बराबरी कर सकेगा। यदि हाँ तो समय सीमा निर्धारित करें और यदि नही तो आरक्षण का कोई औचित्य नही।उच्च संस्थानों मे आरक्षण लाकर हम उन संस्थानों की शिक्षा स्तर के साथ समझौता करेंगे। इससे विश्व बाजार मे हमारे प्रोफ़ेशनल्स की कीमत गिरेगी ही। दूसरी तरफ़ आरक्षण लाकर हम परोक्ष रूप से छात्रों को विदेश मे पढने के लिये प्रोत्साहित करेंगे। जिसका मतलब ये हुआ कि एक तरफ़ तो हम विदेशी मुद्रा खर्च करेंगे और दूसरी तरफ़ प्रतिभा पलायन का रास्ता खोल रहे हैं।
इस मसले का सीधा सीधा समाधान ये है कि अर्जुन सिंह को आरक्षण विरोधी छात्रों के समुह मे छोड़ दिया जाना चाहिये(बिना सुरक्षा के)। वे अगर छात्रों को कन्वीन्स कर सकें तो ठीक, नही तो अर्जुन सिंह तो पूरी तरह से कन्वीन्स कर ही दिए जायेंगे।आप अपनी राय टिप्पणी मे जरुर व्यक्त करें।
Leave a Reply to अश्वनी त्रिपाठी Cancel reply