आओ नववर्ष दो हजार पाँच,
तुम्हारा स्वागत है.
मगर याद रखो,
तुम्हारे कार्यकाल मे भी यदि
होती रही हत्यायें, दुर्घटनाए,
लुटती रही बालाए, ललनाए
नेताओ की लड़ाई मे मरती रही जनता
तो कलंकित हो जाओगे
और दो हजार चार की ही तरह
सिर झुकाये विदा हो जाओगे.
माफ करना साफगोई मेरी आदत है.
और कलमनवीसी ही मेरे लिये
पूजा और इबादत है!
-डा.सुधान्शु मोहन अग्निहोत्री , बांगरमऊ, उन्नाव
(अमर उजाला के २ जनवरी मे अंक मे प्रकाशित)
Leave a Reply to us mazda Cancel reply