आज एक समाचार पढकर काफी दुख हुआ, कि देश को बेशुमार इंजीनियर्स देने वाली भारतीय प्रोद्योगिकी संस्थान (IIT) दिवालिएपन के कगार पर है। इन संस्थानों के पास इतना पैसा नही कि अपने कर्मचारियों को वेतन दे सकें। दरअसल इन संस्थानों की सरकारी सहायता मिला करती थी, जो धीरे धीरे कम होते होते, लगभग समाप्त हो गई है। इन संस्थानो ने मानव संसाधन मंत्री अर्जुन सिंह को पत्र लिखकर मदद की गुहार की है। इन संस्थानों के पूर्व छात्रों ने जो कि देश विदेश मे बड़ी बड़ी कम्पनियों के ऊंचे पदो पर रहकर देश और संस्थान का नाम ऊंचा कर रहे है, ने काफी सहायता की है। आईआईटी कानपुर इसका अच्छा उदाहरण है, लेकिन ये सहायता नाकाफी है।
एक तरफ़ सरकार जहाँ भारत रत्न के पचड़ों मे उलझी है, देश को हजारों भारत रत्न देने वाले इन संस्थानों की किसे परवाह है। मेरे विचार से इन संस्थानों को आर्थिक रुप से स्वायतत्ता मिलनी चाहिए। पुराने छात्रों को आगे आकर, इन संस्थानों को डूबने से बचाना होगा, लेकिन उसके लिए सबसे पहले इन संस्थानों को सरकारी चंगुल से आजाद होना पड़ेगा। तकनीकी संस्थानों को भी व्यवसायिक सेवा देने के लिए अपनी प्रयोगशालाओं को खोलना होगा। इसके लिए पूर्व छात्रों, संस्थानो और व्यवसायिक घरानों को मिलकर काम करना होगा, ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके, ये संस्थान भविष्य मे भी भारत रत्न दे सकें। व्यवसायिक सहयोग के बिना इनका भविष्य उज्ज्वल नही दिख रहा। रही बात सरकार सहायता की, तो सरकार सहायता देने के साथ-साथ दखलंदाजी भी बहुत करती है जो किसी भी तरह से उचित नही। देखिए ऊंट किस करवट बैठता है।
लेकिन मै यह सोच रहा हूँ, जब देश के नामी संस्थानों का यह हाल है तो छोटे छोटे संस्थानों की क्या हालत होगी? आपका क्या सोचना है इस बारे में?
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