अभी पिछले दिनो एक बहुत झक्की टाइप के निवेशक टकरा गए। झक्की इसलिए कि जब शेयर बाजार चढता है तो ये किसी की नही सुनते और जब बाजार गिरता है तो हर ऐरे गैरे नत्थू खैरे की सुनते है। अब जनाब ये निवेशक महोदय भरी महफिल मे निवेश की टिप्स देने लगे। हमने छूटते ही पूछ लिया कि भैया! आप जो टिप्स दे रहे है, वे सभी शेयर आपने अपने पोर्टफोलियो मे ले रखे है ना? बस फिर क्या था, वो जनाब बिदकने लगे। तकनीकी बातों पर बात अटकी कि बाजार क्यों गिर रहा है, वो बोले एफ आई आई के नए नियम से बाजार गिर रहा है। हमने जब एफ आई आई का फुल फार्म जानना चाहा तो ये जनाब बगलें झांकने लगे। बोले एफ आई आई, शेयर मे निवेश करने का नियम है। अब सांड की तरह बिफरने की बारी हमारी थी, ये तो मिर्जा ने सम्भाल लिया वरना वही……। मिर्जा बोला, जैसे ये निवेशक नासमझ है, वैसे ही ढेर सारे और है। कहाँ कहाँ तक भिड़ोगे, किस किस को सींग मारते फिरोगे? बेहतर होगा अपने ब्लॉग के माध्यम से उनको जानकारी दो, ताकि उस जानकारी से निवेशक सही निर्णय ले सके। तो जनाब ये तो थी इस लेख की प्रस्तावना, अब आगे झेलिए। (हमारी टीचर कहा करती थी, निबंध/लेख की प्रस्तावना बहुत महत्वपूर्ण होती है, इसलिए हम प्रस्तावना पर जोर ज्यादा देते है)
तो जनाब पहले जान लेते है कि एफ एफ आई(FII) क्या होता है?
विकीपीडिया की परिभाषा के अनुसार :
Foreign Institutional Investor (FII) is used to denote an investor – mostly of the form of an institution or entity, which invests money in the financial markets of a country different from the one where in the institution or entity was originally incorporated.
FII investment is frequently referred to as hot money for the reason that it can leave the country at the same speed at which it comes in. In countries like India, statutory agencies like SEBI have prescribed norms to register FIIs and also to regulate such investments flowing in through FIIs. FEMA norms includes maintenance of highly rated bonds(collateral) with security exchange. —
अगर साधारण भाषा मे समझाया जाए तो वो निवेशक जो शेयर बाजार मे निवेश करने के लिए अपने देश को छोड़कर दूसरे देश मे जाते है। पैसों से लबालब ये निवेशक, हमेशा मोटे मुनाफे के लिए बादलों की तरह दुनिया भर के शेयर बाजारों मे मंडराते रहते है। बादलों से तुलना इसलिए की है कि किसी भी शेयर बाजार मे ये जितनी जल्दी आते है उतनी जल्दी ही वापस भी जाते है। इनका एक मूलभूत सिद्दांत होता है, जहाँ पैसा बढने की गुंजाइश वहाँ पर ही ये डेरा डाल देते है। बढते हुए शेयर बाजार (Emerging Markets) जैसे चीन, कोरिया, भारत, रुस, ब्राजील जैसे देशो के शेयर बाजारों पर ये अक्सर छाए रहते है।
लेकिन क्या हर विदेशी निवेशक FII होता है?
नही, FII का मतलब है संस्थागत निवेशक। बड़े निवेशक, संस्थागत निवेशक। अमरीका मे ढेरी म्यूचल फंड कम्पनिया है। वहाँ का म्यूचल फंड बाजार, बहुत प्रतिस्पर्धा वाला है। इसलिए लगभग प्रत्येक म्यूचल फंड कम्पनी अपने निवेशकों को बेहतर रिटर्न देने के लिए उसका पैसा, विदेशी बाजारों, जैसे भारत, चीन वगैरहा मे लगाती है। फिर ढेर सारे वित्तीय संस्थान है, रिटायर्मेंट स्कीम वाले हाउस है, ढेर सारी बीमा कम्पनिया है, वे सभी दूसरे बाजारों मे निवेश करती है। ताकि ज्यादा से ज्यादा लाभ कमाया जा सका।
लेकिन इसमे परेशानी क्या है?
मैने कब कहा कोई परेशानी है। हर निवेशक लालची होता है। शेयर बाजार मे अगर लालच, आशा, धैर्य और पैसा ना होता तो कोई उधर फटकता क्या? परेशानी सिर्फ़ तभी आती है जब ये FII बाजार को फर्श से उठाकर अर्श पर ले जाते है फिर एक दिन पता चलता है FII अपना पैसा निकाल रहे है। फिर ये शेयर वापस फर्श पर आते है। इस तरह से चार दिन की चांदनी मे इन संस्थागत निवेशको की तो चांदनी होती है, लेकिन छोटे निवेशक अंधेरी रात मे डूब जाते है। लेकिन इस अंधेरी रात मे डूबने मे FII सिर्फ़ जरिया बनते है, दरअसल निवेशकों को उनका लालच ही डुबोता है।
तो क्या सरकार के पास कोई विदेश निवेश नीति नही है।
तो क्या सरकार आंख मूंद कर सोती रहती है? उसके पास इन संस्थागत निवेशकों को नियंत्रित करने के लिए कोई नीति नही है? है ना। सरकारी संस्था सेबी इन निवेशकों पर नजर रखती है। लेकिन आपको तो पता ही भारत मे नियम बाद मे बनते है, पहले उसकी काट बनती है। नियमों के बीच कुछ लूपहोल रहते है, जिनका ये फायदा उठाते है। फिर मुक्त अर्थव्यवस्था के दौर मे आप अधिक कड़े नियम बनाएंगे तो ये संस्थागत निवेशक आपके शेयर बाजारों के आसपास भी नही फटकेंगे। इसलिए बीच का रास्ता निकाला जाता है। इस तरह से वित्तीय नीति बनायी जाती है।
तो क्या इनको फालो करना चाहिए?
तो क्या आम निवेशक को FII का अनुसरण करना चाहिए? जब ये खरीदे तब खरीदें और जब ये बेचें तो हम बेचें क्या?
या इनके मॉडल को ही फालो करना चाहिए। इसका जवाब है हाँ और ना। मेरे विचार से FII के पास पैसों का इतना भंडार होता है कि उतनी खरीद आप और हम नही कर सकते। फिर ये अक्सर ऐसी कम्पनियों को उठाते है, जिनके बारे मे हम लोग सोच नही पाते। ये लोग इन शेयरों इतने सस्ते मे खरीदते है फिर काफी समय चुप्पी साध जाते है। जो निवेशको इनको फालो करते है, वे पहले तो अपना धैर्य खो देते है फिर बाद मे अपने बचे खुचे पैसे। किसी दिन ये FII अपना आना-पाई उस शेयर से निकाल लेते है, वो भी सूद समेत। भारतीय शेयर बाजार मे इनकी प्रतिदिन की गतिविधियों पर नजर रखने वालों की कमी नही। कई लोगों की कंसल्टेंसी की दुकान इस नजर रखने की वजह से ही चल रही है। इस सम्बंध मे भी निवेशको को यही सलाह होती है सुने सबकी, लेकिन करें अपनी मर्जी की। सबसे बड़ी बात, किसी भी शेयर को इसलिए मत खरीदें कि FII उसको खरीद रहे है, यदि खरीद भी लिया है, अपने विवेक के अनुसार, समय समय पर अपना लाभ वसूलते रहे। तेजी और मंदी हर बाजार मे आती है, बिना पूछे/बताए आती है, इसलिए ध्यान रखें और अच्छे/बुरे वक्त का सामना करने का संयम रखें।
लेकिन मिर्जा बिदक गया। बोला तुम तो बाजार के विशेषज्ञों की तरह बता रहे हो। थोड़ा और आसान तरीके से बताओ। महात्मा लोग कहानिया सुना सुना कर गम्भीर बात को सरलता से समझाते है कुछ वैसा समझाओ। अब मिर्जा, वेताल की तरह है, पीछा छोड़ने वाला नही, इसलिए उसके साथ आप भी इस कहानी को झेलिए: (इस कथा के पूरे भाग के प्रायोजक है, बंदर सर्कस वाला)
हे मिर्जा! ज्यादा पुरानी बात नही है, एक गाँव जो बहुत ही सुख शांति से अपनी जिंदगी बसर कर रहा था, वहाँ पर बंदरो ने थोड़ा उत्पात मचाया हुआ था। एक दिन शहर से एक सर्कस वाला गांव मे आया और उसने गाँव वालो को बोला, मुझे बंदरो की जरुरत है, क्या आप मुझे बंदर पकड़ कर दे सकते है। प्रत्येक बंदर के बदले मे आपको 10 रुपए दूंगा। गाँव वाले बड़े खुश, ढेर सारे बंदर पकड़े गए। सर्कस वाले ने सारे बंदरो को पकड़ कर एक पिंजरे मे बंद किया और लाने वाले को 10 रुपए/प्रति बंदर की दर से भुगतान कर दिया।
ये सिलसिला चलता रहा, बंदर पकड़े जाते रहे, गाँव वाले पैसे कमाते रहे। धीरे धीरे बंदरो की संख्या कम होने लगी, सर्कस वाले ने अपना प्रति बंदर रेट, 10 से 50 और फिर50 से 100 कर दिया। से सिलसिला भी चलता रहा, धीरे धीरे ये रेट 500 तक पहुँच गया। अब तक पिंजरे मे हजारों बंदर इकट्ठे हो गए थे। इस तरह से बंदर पकड़ने वाले, धन्ना सेठ बन गए। देखा देखी मे आस पास के गाँव वाले भी इस पकड़म पकड़ाई के खेल मे जुट गए।
एक दिन सर्कस वाला, कुछ दिनो के शहर गया और अपने पीछे एक प्रतिनिधि को छोड़ गया। प्रतिनिधि भी कुछ दिन तक प्रति बंदर 500 रुपए बाँटता रहा। एक दिन प्रतिनिधि ने बंदर पकड़ने वालो (जो अब तक धन्ना सेठ) बन चुके थे, के सामने एक प्रस्ताव रखा। प्रस्ताव यह था कि पिंजरे मे बंद, सारे के सारे बंदर, इन बंदर पकड़ने वालों को बेंच दिए जाए, वो भी 350 रुपए/प्रति बंदर के हिसाब से। जब सर्कस वाला शहर से लौट कर आएगा तो उसको यही बंदर 500 रुपए के भाव से बेंच दिए जाएं। बंदर पकड़ने वालों को यह प्रस्ताव अच्छा लगा, बैठे बिठाए उन्हे 150 रुपए प्रति बंदर का मुनाफा था, फिर बंदर तो हजारों की संख्या मे थे। गाँव वालों ने मौका गंवाना ठीक नही समझा और अपना सारा पैसा,धन दौलत लगाकर, बल्कि मकान गहने भी गिरव्री रखकर सारे के सारे बंदर 350 रुपए के हिसाब से खरीद लिए। सारे बंदर बिक गए, पिंजरा खाली हो गया। प्रतिनिधि भी पैसे जमा कराने शहर चला गया। उस दिन से लेकर आज तक गांव वाले सर्कस वाले और उसके प्रतिनिधि का इंतजार कर रहे है। उन्होने अपने ही गाँव के बंदर, जो 10 रुपए के भाव के भी नही थे, 350 के भाव से खरीदे। अपना रुपया पैसा लुटाकर, अपने पोर्टफोलियों मे चिढाते हुए बंदर रखे हुए है।
सो हे मिर्जा! इसी तरह से भारतीय निवेशक भी है। FII रुपी सर्कस वालो के मोहपाश मे पड़कर, फर्श पर पड़े शेयरों को आसमान छूते भावों पर खरीदे थे, बड़े खुश थे और सोच रहे थे कि ये भाव इसी तरह से बढते रहेंगे। एक दिन जब FII इनको खरीदेंगे तो अच्छे रेटों मे बेच देंगे। आज अपने पोर्टफोलियों मे चिढाते हुए बंदर (शेयर) रखे हुए है। सो हे मिर्जा! ये थी अथ श्री FII कथा। अब तो तुमको भी समझ मे आ गया होगा कि FII क्या होता है और कैसा होता है।
पाठकों को यह कथा और लेख कैसा लगा? हमे अवश्य लिखिएगा। और हाँ सर्कस वालों के चक्कर मे मत पड़िएगा, अपने विवेक से निवेश करिएगा।
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